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'बच्ची को कहीं और भेज दिया, हम खौफ में...', HC की 'रेप नहीं' वाली टिप्पणी के बीच कासगंज के पीड़ित परिवार की कहानी

घटना 10 नवंबर, 2021 की है, जब 11 वर्षीय बच्ची अपनी मां के साथ घर जा रही थी. परिवार के दो परिचित युवकों ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दी और रास्ते में रुक कर उसका रेप करने की कोशिश की.

कासगंज की नाबालिग पीड़िता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई. (प्रतीकात्मक तस्वीर) कासगंज की नाबालिग पीड़िता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • कासगंज ,
  • 28 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 11:43 AM IST

कासगंज टाउन से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित गांव अब सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी के केंद्र में है, जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश के बाद आई है, जिसमें कहा गया था कि कपड़े के ऊपर सेस्तनों को छूना और पायजामे के नाड़े को तोड़ना बलात्कार का प्रयास नहीं माना जाएगा. दरअसल, जिस मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट की एकल पीठ ने यह टिप्पणी की थी, उसकी पीड़िता इसी गांव की रहने वाली है. 

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टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में बताया कि माहौल तनावपूर्ण और चिंताजनक था. गांव के बाहर एक लिंक रोड पर मिले पीड़िता के चाचा ने बताया कि वह परिवार को बार-बार मिल रही धमकियों और उत्पीड़न से चिंतित हैं. उन्होंने कहा, 'मेरी भतीजी के साथ इसी सड़क पर छेड़छाड़ की गई थी. तब से, हमारे साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है, बंदूक की नोक पर धमकाया जा रहा है और जातिवादी गालियां दी जा रही हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाए जाने के बावजूद मुझे पता है कि हमें परिणाम भगुतने पड़ सकते हैं.' 

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पीड़ित परिवार को दी जा रही केस वापस लेने की चेतावनी

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करीब 200 परिवारों वाले इस गांव में हर कोई उस छोटी बच्ची के बारे में जानता है, जिसके साथ छेड़छाड़ की गई और लगभग बलात्कार किया गया. कोई छिपने की जगह नहीं है. पीड़िता के चाचा ने कहा, 'हम हमेशा खतरे में रहते हैं. वे कई बार हमारे घर आए हैं और हमें केस वापस लेने की चेतावनी दी है.' उन्होंने कहा कि आरोपी प्रभावशाली परिवारों से थे और उनके पास लाइसेंसी हथियार थे. गांव में गरीब परिवार रहते हैं जो ज्यादातर खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते हैं और उनके पास एक बीघा से भी कम जमीन है. उनके लिए दबंगों के खिलाफ लड़ना जोखिम भरा है. उनके लिए न्याय पाने का मतलब कानूनी संघर्ष से कहीं ज्यादा है. इसका मतलब है रोजाना का डर ​​और आर्थिक पतन.

पीड़ित लड़की फिलहाल गांव से बाहर चली गई है. उसके माता-पिता और दोनों चाचा सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली में कानूनी कागजी कार्रवाई में लगे हुए हैं. पीड़िता के एक रिश्तेदार ने कहा, 'वह यहां सुरक्षित नहीं है. हमने उसे उसके नाना-नानी के पास भेज दिया है.' पीड़िता के 70 वर्षीय दादा अपने छप्पर वाले घर के बाहर बैठे थे- उन्होंने अपनी हथेलियों को देखते हुए कहा, 'मुझे पूरी तरह से समझ में नहीं आया कि सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है. लेकिन मुझे बताया गया है कि हाई कोर्ट ने क्या आदेश दिया. अगर अदालतें हमारी लड़कियों के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकतीं, तो कौन करेगा?'

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सूद पर 2.5 लाख उधार लेकर केस लड़ रहा पीड़ित परिवार

कानूनी लड़ाई को जारी रखने के लिए परिवार ने सूद पर 2.5 लाख रुपये उधार लिए हैं. पीड़िता के दादा ने कहा, 'हमारे पास इस कर्ज को चुकाने का कोई रास्ता नहीं है. हमारे घरों को देखो, हमारे जीवन को देखो.' घटना 10 नवंबर, 2021 की है. पुलिस में की गई शिकायत और कोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक, '11 वर्षीय बच्ची अपनी मां के साथ घर जा रही थी, जब परिवार के दो परिचित युवकों- 25 वर्षीय पवन कुमार और 30 वर्षीय आकाश सिंह ने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट देने की पेशकश की.'

पीड़िता की मां के मुताबिक, 'चूंकि दोनों युवक परिचय के थे, इसलिए मैंने बेटी को उनके साथ मोटरसाइकिल पर जाने की अनुमति दे दी. लेकिन कुछ दूर जाने के बाद दोनों ने एक पुलिया के पास मोटरसाइकिल रोक दी. उन्होंने मेरी बेटी के स्तन पकड़े. आकाश ने उसके पजामे का नाड़ा तोड़ दिया. वह चिल्लाने लगी, जिससे राहगीरों का ध्यान उसकी ओर गया. लोगों को घटनास्थल की ओर आता देख दोनों युवक मौके से भाग गए. जब मैं पवन और आकाश से इस घटना के संबंध में बात करने गई, तो मुझे बंदूक दिखाकर धमकाया गया.'

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पुलिस ने कथित तौर पर कई बार एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया. इसके बाद मां ने पोक्सो कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट के निर्देश पर आखिरकार पुलिस ने मामला दर्ज किया. आरोपियों पर शुरू में आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और पोक्सो अधिनियम के संबंधित प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. अदालत में पीड़िता का पक्ष रखने वाले वकील अजय पाल सिंह ने कहा, 'आरोपी इसके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट गए, जिसने अपराध की प्रकृति को निर्धारित करते हुए फैसला सुनाया कि ये कृत्य बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के दायरे में नहीं आते. आरोपों को आईपीसी की धारा 354 बी और पोक्सो अधिनियम की धारा 9 (एम) के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न में बदल दिया गया.' 

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