
लोकसभा चुनाव के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में सियासत की तस्वीर बदल रही है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का कुनबा बढ़ रहा है तो वहीं विपक्ष को झटके पर झटके लग रहे हैं. राज्यसभा चुनावों के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रभावशाली पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने विपक्षी इंडिया गठबंधन को झटका देते हुए एनडीए का दामन थाम लिया है. जयंत चौधरी के इस झटके को अभी एक हफ्ते भी नहीं हुए कि अब सपा के भीतर ही सियासी घमासान मचता नजर आ रहा है.
अपने बयानों से विवादों में रहने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव को लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है. स्वामी ने कहा है कि हमने बस पद छोड़ा है. अब गेंद राष्ट्रीय अध्यक्ष के पाले में है. आगे कोई भी कदम उनके एक्शन पर निर्भर करेगा. स्वामी ने बयान के जरिए भी अखिलेश को यह संदेश दे दिया है कि वह पार्टी भी छोड़ सकते हैं. इस्तीफे वाले पत्र की भाषा भी कुछ ऐसी ही है. स्वामी ने इस पत्र के जरिए सपा को 45 से 110 विधानसभा सीट तक पहुंचाने का श्रेय लिया है तो साथ ही पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को बीजेपी के भ्रमजाल से निकालकर जागरुक करने के प्रयास भी गिना दिए हैं.
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स्वामी ने यह भी कहा है कि मैंने अपने तरीके से पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए प्रयास किया और लगे हाथ अपने बयानों से असहमति जताने वालों को छुटभैया नेता भी बता दिया. उन्होंने वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी पर भी सवाल उठाए और अपने बयानों को निजी बयान बताए जाने को लेकर नाराजगी भी जता दी. स्वामी ने अपने साथ व्यवहार को भेदभावपूर्ण और राष्ट्रीय महासचिव के पद को महत्वहीन भी बता दिया. स्वामी के इस्तीफे की भाषा का मजमून यही है कि उन्होंने विधानसभा में सपा की सीटें बढ़ने की क्रेडिट ली है, जनाधार बढ़ाने के प्रयास गिनाए हैं, अपने बयानों को निजी बता किनारा कर लेने को भेदभावपूर्ण और नेतृत्व की चुप्पी पर नाराजगी जताई है और पीडीए को लेकर प्रतिबद्धता की नसीहत भी दी है.
स्वामी की पार्टी से नाराजगी और महासचिव पद से इस्तीफे को राज्यसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. स्वामी प्रसाद को 2022 के विधानसभा चुनाव में हार मिली थी. कहा जा रहा है कि स्वामी को यह उम्मीद थी कि सपा उन्हें राज्यसभा भेज देगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसीलिए सपा उम्मीदवारों के नामांकन के ठीक बाद ही स्वामी ने अलग-अलग मसलों पर नाराजगी जाहिर करते हुए, सपा की सीटें बढ़ने का श्रेय लेते हुए महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया. स्वामी के महासचिव पद छोड़ने की खबर कुछ घंटे पुरानी भी नहीं हुई थी कि सपा को एक और बड़ा झटका दिया पार्टी की विधायक और अपना दल कमेरावादी नेता पल्लवी पटेल ने.
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पल्लवी पटेल ने राज्यसभा चुनाव में जया बच्चन और आलोक रंजन को उम्मीदवार बनाए जाने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि पीडीए का मतलब मैं पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समझती हूं लेकिन मदांध लोग इसे बच्चन और रंजन बना रहे हैं. जब ऐसा होगा तो इसके खिलाफ आवाज उठानी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि मैं बच्चन और रंजन को बिलकुल वोट नहीं करूंगी. मुझे अपनी सदस्यता की भी चिंता नहीं है. पल्लवी ने अखिलेश पर पीडीए के मूल मंत्र को फॉलो नहीं करने का आरोप लगाया और कहा कि आगे गठबंधन का भविष्य क्या होगा, यह कृष्णा पटेल तय करेंगी. उन्होंने लगे हाथ स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ भी सहानुभूति जता दी और कहा कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है.
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कहा यह भी जा रहा है कि पल्लवी अपनी मां और अपना दल कमेरावादी की राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल के लिए एक राज्यसभा सीट चाहती थीं. हालांकि, पल्लवी ने इस तरह की चर्चा को सिरे से खारिज कर दिया है. राज्यसभा चुनाव की घड़ी करीब आने के साथ ही पहले नौ विधायकों वाली आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी ने झटका दिया और फिर स्वामी का महासचिव पद से इस्तीफा और अब पल्लवी का सपा उम्मीदवारों को वोट देने से इनकार, राज्यसभा चुनाव के लिए विधायकों का गणित भी उलझता नजर आ रहा है.
फंस गई सपा की तीसरी सीट?
जयंत से लेकर पल्लवी पटेल तक के झटके का प्रभाव यूपी की 10 राज्यसभा सीटों के लिए हो रहे चुनाव पर भी पड़ता नजर आ रहा है. राज्यसभा चुनाव में 10 में से सात सीटों पर बीजेपी और तीन सीटों पर सपा की जीत तय मानी जा रही थी लेकिन पहले जयंत के किनारा करने और अब पल्लवी के ऐलान से गणित उलझ गया है. उत्तर प्रदेश विधानसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा के मुताबिक सदन की स्ट्रेंथ 399 विधायकों की है. ऐसे में 10 राज्यसभा सीटों के चुनाव में एक सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए 37 विधायकों के वोट की जरूरत होगी.
सपा के 108 विधायक हैं. इनमें से इरफान सोलंकी समेत पार्टी के दो विधायक जेल में हैं. बचे 106 में से पल्लवी पटेल ने पार्टी उम्मीदवारों को वोट नहीं करने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में सपा के पास 105 विधायकों का वोट बचता है. कांग्रेस के दो विधायकों का समर्थन भी जोड़ लें तो संख्याबल 107 तक ही पहुंच रहा है जबकि सपा को तीन सीटें जीतने के लिए 111 वोट की जरूरत होगी. आरएलडी अगर सपा के साथ होती तो वोटों का आंकड़ा 116 तक पहुंचता जो जरूरी वोट से 5 अधिक होता. लेकिन नौ विधायकों वाली पार्टी अब सपा का साथ छोड़कर एनडीए में जा चुकी है.
यूपी विधानसभा की तस्वीर क्या है?
यूपी विधानसभा की स्ट्रेंथ 403 है. यूपी विधानसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा के मुताबिक सदन की स्ट्रेंथ इस समय 399 विधायकों की है. बीजेपी 252 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. बीजेपी के सहयोगी दलों अपना दल (एस) के 13, आरएलडी के नौ, निषाद पार्टी के छह, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के छह विधायक हैं. सहयोगी दलों की सीटें जोड़ लें तो आंकड़ा 286 पहुंच जाता है जो आठ सीटें जीतने के लिए जरूरी 296 वोट से 10 कम है. सपा के 108 और कांग्रेस के दो विधायक हैं. इनके अलावा रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया की लोकतांत्रिक जनसत्ता पार्टी के दो और बहुजन समाज पार्टी का भी एक विधायक है.
राज्यसभा में वोट का फॉर्मूला क्या?
राज्यसभा चुनाव में एक सीट जीतने के लिए कितने वोट की जरूरत है, यह जानने के लिए प्लस वन फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है. इस फॉर्मूले के तहत विधानसभा की कुल सदस्य संख्या को रिक्त सीटों की संख्या में एक जोड़कर उससे भाग देते हैं. इससे जो परिणाम आता है, उसमें एक जोड़ लेते हैं. अब जो परिणाम प्राप्त होगा वही एक सीट जीतने के लिए जरूरी वोट है.