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रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को हटाने की मांग, स्वामी प्रसाद ने PM मोदी को लिखा पत्र

उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बयानों को लेकर खासे चर्चा में हैं. स्वामी प्रसाद ने रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को लेकर आपत्ति जताई और खुलकर विरोध किया है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा है. इस पत्र में रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को हटाने की मांग की गई है.

स्वामी प्रसाद मौर्य. (File Photo) स्वामी प्रसाद मौर्य. (File Photo)
समर्थ श्रीवास्तव
  • लखनऊ,
  • 08 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 4:36 PM IST

उत्तर प्रदेश में रामचरितमानस पर छिड़े विवाद के बीच समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा है. इस पत्र में रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को हटाने की मांग की है. स्वामी प्रसाद ने पीएम मोदी को भेजे गए पत्र में लिखा है कि भारत का संविधान धर्म की स्वतंत्रता और उसके प्रचार प्रसार की अनुमति देता है. धर्म मानव कल्याण के लिए है. ईश्वर के नाम पर झूठ, पाखंड और अंधविश्वास फैलाना धर्म नहीं हो सकता. 

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उन्होंने लिखा कि क्या कोई धर्म अपने अनुयायियों को अपमानित कर सकता है. क्या धर्म बैर करना सिखाता है. मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं, लेकिन धर्म के नाम पर फैलाई जा रही घृणा और वर्णवादी मानसिकता का विरोध करता हूं. इसलिए हमारी मांग है कि पाखंड और अंधविश्वास फैलाने वाले और हिंसा प्रेरित प्रवचन करने वाले कथावाचकों के सार्वजनिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया जाए और उन पर विधि सम्मत कार्रवाई की जाए.

'कब तक जीते रहेंगे विरोधाभासी जीवन'

स्वामी प्रसाद मौर्य ने लिखा कि इस विरोधाभासी जीवन को हम कब तक जीते रहेंगे? कब तक हम अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते रहेंगे? यदि हम इसे नकारना जारी रखते हैं तो हम केवल अपने राजनीतिक प्रजातंत्र को संकट में डाल रहे होंगे. हमें जितनी जल्दी हो सके, इस विरोधाभास को समाप्त करना होगा, अन्यथा जो लोग इस असमानता से पीड़ित हैं, वे उस राजनीतिक प्रजातंत्र को उखाड़ फेंकेंगे, जिसे इस सभा ने इतने परिश्रम से खड़ा किया है.

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'एकाधिकार ने छीन लिए विकास के अवसर'

स्वामी प्रसाद मौर्य ने आगे लिखा कि बाबा साहब ने अपने भाषण में यह भी कहा था कि इस देश में राजनीतिक सत्ता पर कुछ लोगों का एकाधिकार रहा है और बहुजन न केवल बोझ उठाने वाले, बल्कि शिकार किए जाने वाले जानवरों के समान हैं. इस एकाधिकार ने न केवल उनसे विकास के अवसर छीन लिए हैं, बल्कि उन्हें जीवन के किसी भी अर्थ या रस से वंचित कर दिया है.

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