
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उन्नाव बलात्कार पीड़िता की सीआरपीएफ सुरक्षा वापस लेने से इनकार कर दिया और कहा कि अभी भी खतरे की आशंका है. हालांकि, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पी बी वराले की पीठ ने पीड़िता के परिवार के सदस्यों और अन्य गवाहों को दी गई सीआरपीएफ सुरक्षा वापस ले ली और कहा कि मामले में दोषसिद्धि पहले ही हो चुकी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- "हमारा मानना है कि इस न्यायालय द्वारा संबंधित व्यक्तियों को प्रासंगिक समय पर दी गई सुरक्षा जारी नहीं रखी जा सकती, क्योंकि मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. हालांकि हम यह स्पष्ट करते हैं कि इस न्यायालय के अगले आदेश तक पीड़िता के लिए सीआरपीएफ सुरक्षा जारी रहेगी."
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, कोर्ट ने आगे कहा कि यदि परिवार के सदस्यों और अन्य गवाहों को अभी भी कोई खतरा महसूस होता है तो वे स्थानीय पुलिस से संपर्क कर सकते हैं. सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने प्रस्तुत किया कि मामले में दोषसिद्धि हो चुकी है और उन्होंने सीआरपीएफ सुरक्षा कवर वापस लेने की अनुमति मांगी.
बता दें कि केंद्र ने 2019 में न्यायालय के आदेश के बाद उन्हें प्रदान की गई सीआरपीएफ सुरक्षा वापस लेने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी. वहीं, उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 2017 में नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोप में निष्कासित भाजपा नेता कुलदीप सिंह सेंगर जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.
शीर्ष न्यायालय ने 1 अगस्त, 2019 को बलात्कार पीड़िता, उसकी मां, परिवार के अन्य सदस्यों और उनके वकील को सीआरपीएफ द्वारा सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया था. बलात्कार की घटना के संबंध में दर्ज सभी पांच मामलों को शीर्ष अदालत ने लखनऊ से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था और एक निर्दिष्ट विशेष अदालत को निर्देश दिया था कि वह रोजाना सुनवाई करे और 45 दिनों के भीतर उन्हें पूरा करे.
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को पीड़िता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी निर्देश दिया. उन्नाव बलात्कार मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली सेंगर की अपील दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है. उन्होंने ट्रायल कोर्ट के दिसंबर 2019 के फैसले को रद्द करने की मांग की है, जिसमें उन्हें शेष जीवन के लिए कारावास की सजा सुनाई गई थी.
13 मार्च, 2020 को सेंगर को पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में भी 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी. पिता को आर्म्स एक्ट के तहत एक मामले में गिरफ्तार किया गया था और 9 अप्रैल, 2018 को हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई.
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को हत्या का दोषी नहीं पाया और आईपीसी की धारा 304 के तहत गैर इरादतन हत्या के अपराध के लिए अधिकतम सजा सुनाई, क्योंकि यह माना गया कि हत्या करने का कोई इरादा नहीं था.