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उत्तर प्रदेश में जीएसटी छापेमारी पर फिलहाल ब्रेक लग गया है. राज्य के सभी जिलों में एक साथ जीएसटी विभाग की बड़ी छापेमारी से प्रदेश भर के व्यापारी परेशान थे. नगर निकाय चुनाव से ठीक पहले छापे से परेशान व्यापारियों को मानने में बीजेपी जुटी है. सीएम योगी ने जीएसटी की छापेमारी पर गलवार को 72 घंटों की रोक लगा दी थी. जबकि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को ट्वीट कर अधिकारियों को छापे न मारने की चेतावनी देनी पड़ी. शहरी निकाय चुनाव के चलते बीजेपी भले ही डैमेज कन्ट्रोल में जुट गई है, लेकिन जीएसटी छापेमारी पर कब रोक जारी रहेगी?
बता दें कि जीएसटी विभाग के तरफ से पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में ताबड़तोड़ छापेमारी कर व्यापारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही थी, जिसको लेकर प्रदेश भर के व्यापारियों में न सिर्फ नाराजगी थी बल्कि तमाम शहरों में बाजार बंद कर दिए गए थे. व्यापारियों के संगठनों ने जीएसटी अधिकारियों पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए छापे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. यूपी के बड़े शहरों से लेकर कस्बों तक के व्यापारियों ने अपनी-अपनी दुकाने बंद कर रखी थी.
उत्तर प्रदेश में जीएसटी अधिकारियों की छापेमारी ऐसे समय हो रही है जब सूबे में शहरी निकाय चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हैं. व्यापारी संगठन से लेकर विपक्ष तक ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. उत्तर प्रदेश आदर्श व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजय गुप्ता ने केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा तक से मुलाकात की. उन्होंने कहा कि छापेमारी का इस्तेमाल व्यापारियों को परेशान करने के लिए किया जा रहा है. अधिकारियों के छापों ने एक भय पैदा कर दिया है जिसके बाद कई व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठान बंद कर दिए हैं.
सपा ने किया था प्रदर्शन का ऐलान
वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी जीएसटी छापेपारी पर तुरंत रोक लगाने की मांग उठाई. उन्होंने कहा कि जो सरकार पहले जीएसटी के फायदे व्यापारियों को गिना रही थी, वो अब गलत व्यवहार कारोबारियों के साथ क्यों कर रही है. सपा के व्यापार सभा ने जीएसटी छापेमारी के खिलाफ सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करने का ऐलान कर दिया था. व्यापारी संगठनों ने बीजेपी विधायक और मंत्रियों का घेराव शुरू कर दिया था.
निकाय चुनाव और व्यापारियों की नाराजगी को देखते हुए बीजेपी नेताओं ने मुख्यमंत्री कार्यालय और बीजेपी प्रदेश नेतृत्व को जीएसटी की छापेमारी और इससे होने वाले राजनीतिक नुकसान की संभावना जतायी थी. व्यापारियों की बढ़ती नाराजगी के चलते योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को अधिकारियों से माल और सेवा कर की कथित चोरी को रोकने के लिए की जा रही छापेमारी को तीन दिनों के लिए स्थगित करने को कहा था.
यूपी में सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि व्यापारी वर्ग बीजेपी का बड़ा वोट बैंक है और अगर यही वोट बैंक बीजेपी से जीएसटी के छापे से नाराज हो जाएगा तो शहरी निकाय चुनाव में बीजेपी को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. माना जा रहा है निकाय चुनाव में होने वाले सियासी नफा-नुकसान को देखते हुए फिलहाल जीएसटी की कार्रवाई पर ब्रेक लगा दी गई है.
डिप्टी सीएम ने ट्वीट कर क्या कहा?
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बुधवार को सुबह ट्वीट कर कहा कि अगर अधिकारियों ने कारोबारियों को परेशान किया तो राज्य सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी. उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी व्यापारी समुदाय का सम्मान करती है और विपक्षी दल इस मामले का राजनीति कर रहे हैं. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जीएसटी छापे रुकवाने का श्रेय समाजवादी पार्टी को दिया है. उन्होंने कहा कि सपा के आंदोलन की धमकी से डरकर सरकार ने जीएसटी के छापे बंद किए गए हैं.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में इसी महीने शहरी निकाय चुनाव की घोषणा होनी है. हाई कोर्ट में अगर मामला न होता तो निकाय चुनाव की घोषणा भी हो चुकी होती. सूबे में 17 नगर निगम, 200 नगर पालिका और 517 नगर पंचायतों में चुनाव होने हैं. इन तमाम नगर निकायों में वार्डों के पार्षदों के लिए भी चुनाव होंगे. इस निकाय चुनाव को 2024 के चुनाव का लिटमस टेस्ट भी माना जा रहा है. ऐसे में व्यापारियों की नाराजगी बीजेपी के लिए शहरी निकाय चुनाव में चिंता का सबब बन सकती है.
सूबे के लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, गाजियाबाद, मेरठ, बरेली, मुरादाबाद, गोरखपुर और आगरा, सहारनपुर जैसे नगर निगम ही नहीं बल्कि नगर पालिका और नगर पंचायत में वैश्य समुदाय निर्णायक भूमिका में है. जीएसटी छापेमारी की सबसे बड़ी गाज इन्हीं वैश्य समुदाय के व्यापारियों को झेलनी पड़ रही है. वैश्य और व्यापारी समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. ऐसे में इनकी नाराजगी बीजेपी के लिए निकाय चुनाव में महंगी पड़ सकती है. खतौली उपचुनाव की हार से बीजेपी पहले से ही चिंतित है. ऐसे में वैश्य समुदाय अगर छिटकता है तो बीजेपी के लिए 2017 जैसे नतीजे भी दोहराना मुश्किल हो जाएगा?