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उत्तर प्रदेश की पांच विधान परिषद (एमएलसी) सीटों के चुनाव की मतगणना शुरू हो गई है. दो शिक्षक और तीन स्नातक कोटे की एमएलसी सीटों का चुनाव बीजेपी से कहीं ज्यादा सपा के लिए अहम है. वहीं, महाराष्ट्र विधान परिषद की पांच सीटों के लिए भी मतगणना जारी है. इन पांच सीटों में तीन शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र जबकि दो स्नातक निर्वाचन क्षेत्र की शामिल हैं.
यूपी की पांच एमएलसी सीट में से सपा एक सीट भी जीत लेती है तो विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी दोबारा वापस हासिल कर लेगी. ऐसे में देखना है कि बीजेपी और सपा में कौन बाजी मारता है? ऐसे ही महाराष्ट्र की पांच एमएलसी सीटों के लिए बीजेपी-शिंदे गठबंधन और महाविकास अघाड़ी के बीच मुकाबला है.
यूपी की विधान परिषद की जिन तीन खंड स्नातक सीटों पर मतदान हुआ, उनमें गोरखपुर-अयोध्या खंड स्नातक, कानपुर-उन्नाव खंड स्नातक और बरेली-मुरादाबाद खंड स्नातक सीट शामिल हैं. वहीं, शिक्षक कोटे की दो एमएलसी सीट पर इलाहाबाद-झांसी और कानपुर-उन्नाव सीट शामिल है.
महाराष्ट्र में पांच सीटों पर चुनाव
वहीं, शिक्षक कोटे की नागपुर सीट पर बीजेपी समर्थित उम्मीदवार नागो गाणार, कांग्रेस (एमवीए) समर्थित सुधाकर अदबले, आम आदमी पार्टी (आप) के डॉ देवेंद्र वानखड़े एवं निर्दलीय राजेंद्र जाडे प्रमुख उम्मीदवार हैं. अमरावती स्नातक सीट पर बीजेपी से रंजीत पाटिल. औरंगाबाद विभाग शिक्षक सीट से कांग्रेस से बीजेपी में आईं किरण पाटिल को मौका दिया गया है. ज्ञानेश्वर म्हात्रे को कोंकण विभाग शिक्षक सीट से बीजेपी ने टिकट दिया है.
यूपी की स्नातक कोटे की सीट
गोरखपुर-फैजाबाद सीट पर सपा के करुणा कांत मौर्य और बीजेपी देवेंद्र प्रताप सिंह के बीच मुकाबला है. मुरादाबाद-बरेली सीट पर सपा के शिव प्रताप सिंह और बीजेपी के जय पाल सिंह व्यस्त के बीच टक्कर है. जबिक कानपुर-उन्नाव सीट पर सपा के कमलेश यादव और बीजेपी के अरुण पाठक के बीच मुकाबला है.
शिक्षक कोटे की सीट
इलाहाबाद-झांसी सीट पर सपा के डॉ. एसपी सिंह और बीजेपी के डॉ बाबू लाल तिवारी के बीच मुकाबला है. जबकि कानपुर-उन्नाव सीट पर सपा के प्रियंका और बीजेपी बीजेपी के वेणु रंजन भदौरिया के बीच मुकाबला है.
सपा के लिए क्यों अहम
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही सपा की सियासी ताकत विधान परिषद में घटती गई और बीजेपी का कद बढ़ता गया. पिछले साल जुलाई में सपा ने विधान परिषद से नेता प्रतिपक्ष का पद भी गंवा दिया, क्योंकि विधान परिषद के कुल 100 सदस्यों में से सपा के पास सिर्फ 9 सदस्य हैं जबकि नेता प्रतिपक्ष के लिए कम से कम 10 फीसदी सदस्यों का होना जरूरी है. ऐसे में सपा एक विधान परिषद सीट जीत लेती है तो सदन में उसके 10 सदस्य हो जाएंगे. इसीलिए सपा की कोशिश है कि कम से कम एक सीट तो जीत ली जाए.
बीजेपी के लिए क्यों अहम
विधानसभा की तरह बीजेपी विधान परिषद में भी अपना दबदबा बनाए रखना चाहती है. स्नातक-शिक्षक कोटे की जिन 5 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनमें से तीन सीटों पर बीजेपी का कब्जा रहा है. दो सीटें में एक शिक्षक गुट और चंदेल गुट के पास थी. बीजेपी अपनी सीटों को बचाए रखते हुए सभी पांचों सीटों पर जीत दर्ज कर एक बड़ा संदेश देना चाहती है. इसीलिए पूरी ताकत झोंक रखी थी. ऐसे में देखना है कि बीजेपी क्या अपना वर्चस्व कायम रख पाती है?
विधान परिषद में स्थिति
विधान परिषद (एमएलसी) में बीजेपी के 73 सदस्य हैं, जो सबसे ज्यादा है. इसके बाद सपा के 9, बसपा के 1, शिक्षक गुट के 2, निर्दलीय कोटे से 4, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस), संजय निषाद की निषाद पार्टी, रघुराज प्रताप सिंह की जनसत्ता दल के एक-एक सदस्य हैं तो पांच सीटें रिक्त हैं. ऐसे में 5 विधान परिषद सीटों के चुनाव को समझा जा सकता है कि कितना अहम है.