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ओबीसी आरक्षण, परिसीमन, वोटिंग फेज... जानें इस बार कितना अलग होगा यूपी में निकाय चुनाव

यूपी में नगर निकाय चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है. प्रदेश के 760 नगरीय निकायों में कुल 14684 पदों के लिए दो चरणों में वोट डाले जाएंगे. 4 और 11 मई को निकाय चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे, जबकि मतगणना 13 मई को होगी. तारीखों के ऐलान के साथ ही प्रदेश में आचार सहिंता लागू हो गई है.

यूपी में नगर निकाय चुनावों की तारीखों का ऐलान यूपी में नगर निकाय चुनावों की तारीखों का ऐलान
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 11:51 PM IST

उत्तर प्रदेश में निकाय चुनावों की तारीखों का ऐलान हो गया है. प्रदेश की 760 नगरीय निकायों में कुल 14684 पदों के लिए दो चरणों में वोट डाले जाएंगे. 4 और 11 मई को निकाय चुनाव के लिए वोटिंग होगी, जबकि मतगणना 13 मई को होगी. प्रदेश की इन 760 निकायों के लिए मतदान पिछले साल दिसंबर में होने थे. कारण, इन निकायों का कार्यकाल 12 दिसंबर से 19 जनवरी के बीच खत्म हो चुका है. हालांकि, बात ओबीसी आरक्षण पर अटक गई थी. अब आरक्षण का मसला सुलझने के बाद चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है.

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चुनाव आयोग ने रविवार शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव की तारीखों का ऐलान किया. इसके साथ ही प्रदेश में आचार सहिंता लागू हो गई है. इस बार का निकाय चुनाव पिछले बार यानी 2017 के चुनाव से कई तरह से अलग होगा. जिसके चलते लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं. ऐसे में आप यहां निकाय चुनावों से जुड़े सभी सवालों से जुड़े जवाब जान सकते हैं.

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EVM या बैलेट पेपर से होगा चुनाव?

प्रदेश के 17 महापौर और 1420 पार्षद के चुनाव EVM से होंगे. वहीं नगर पालिका और नगर पंचायत के पदों पर बैलट पेपर से मतदान होगा. नगर पालिका परिषद के 199 अध्यक्ष और 5327 सदस्यों का बैलट पेपर से वोट डाले जाएंगे. इसके अलावा 544 नगर पंचायत अध्यक्ष, 7178 सदस्यों का चुनाव भी मतपत्रों से होगा.

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किस मंडल में कब डाले जाएंगे वोट?

यूपी के सभी मंडलों में दो चरणों में वोटिंग होगी. 4 मई को सहारनपुर, मुरादाबाद, आगरा, झांसी, प्रयागराज, लखनऊ, देवीपाटन, गोरखपुर और वाराणसी मंडल में चुनाव होंगे. वहीं दूसरे चरण में मेरठ, बरेली, अलीगढ़, कानपुर, चित्रकूट, अयोध्या, बस्ती, आजमगढ़ और मिर्जापुर मंडल में 11 मई को वोट डाले जाएंगे. दोनों ही चरणों में 13 मई को काउंटिंग होगी.

यूपी में कहां-कहां हैं नगर निगम? 

उत्तर प्रदेश में कुल 17 नगर निगम हैं. जिनमें आगरा, अलीगढ़, अयोध्या, बरेली, फिरोजाबाद, गाजियाबाद, गोरखपुर, झांसी, कानपुर,लखनऊ, मथुरा, मेरठ, मुरादाबाद, प्रयागराज, सहारनपुर, शाहजहांपुर और वाराणसी शामिल हैं. इनमें शाहजहांपुर को हाल ही में नगर निगम की श्रेणी में लाया गया है. इस बार शाहजहांपुर में नगर निगम के लिए पहली बार वोट डाले जाएंगे. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में कुल 198 नगर पालिका परिषद और 493 नगर पंचायतें हैं. नगर निगम में मेयर यानी महापौर और पार्षदों को चुना जाता है, जबकि नगर पालिका और नगर पंचायतों में अध्यक्ष और सभासद चुने जाते हैं.

किस जगह कौन सी सीट आरक्षित?

महापौर की 17 में से 9 सीटों को आरक्षित किया गया है. इनमें आगरा सीट एससी (महिला), झांसी एससी, शाहजहांपुर और फिरोजाबाद ओबीसी (महिला), सहारनपुर और मेरठ ओबीसी और लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद को महिला के लिए आरक्षित किया गया है. जबकि वाराणसी, प्रयागराज, अलीगढ़, बरेली, मुरादाबाद, गोरखपुर, अयोध्या और मथुरा-वृंदावन अनारिक्षित सीटें हैं. 

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2017 में मेयर की कौन-कौन सी सीटें थीं आरक्षित?

2017 के मेयर चुनाव की बात करें तो पिछली बार 16 सीटों पर मतदान हुआ था. इनमें मथुरा व मेरठ की सीट एससी के लिए आरक्षित की गई थीं. वहीं मेरठ की सीट एससी महिला के लिए आरक्षित थी. फिरोजाबाद, वाराणसी, सहारनपुर व गोरखपुर की मेयर सीट ओबीसी के लिए आरक्षित रखी गई थी. साथ ही फिरोजाबाद व वाराणसी ओबीसी महिला के लिए आरक्षित थी. आगरा, इलाहाबाद, बरेली, मुरादाबाद, अलीगढ़, झांसी व फैजाबाद में मेयर की सीटें अनारक्षित रखी गई थीं. पिछली बार सहारनपुर, फिरोजाबाद, मथुरा व फैजाबाद नगर निगम में मेयर की सीटों के लिए पहली बार चुनाव हुआ था. इससे पहले 2012 में 12 सीटों पर मतदान हुआ था.

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कब सुलझा आरक्षण का मसला?

30 मार्च को ही यूपी सरकार ने ओबीसी आरक्षण का ड्राफ्ट जारी किया है. जिसके बाद चुनावों का रास्ता साफ हो गया था. प्रदेश की 760 नगर निकायों में 205 सीटें ओबीसी के लिए रिजर्व रखी गई हैं. यूपी में 17 महापालिकाओं के मेयर, 199 नगर पालिकाओं के अध्यक्ष और 544 नगर पंचायत के अध्यक्ष चुने जाने हैं. 

इस बार कितनी बढ़ी वोटर्स की संख्या?

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राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक नगर निगमों और नगर पालिका परिषद के सीमा विस्तार के कारण वोटर्स की संख्या बढ़ गई है. इस बार निकाय चुनाव में 4.32 करोड़ वोटर्स वोट डालेंगे. 2017 में 3.35 करोड़ वोटर्स थे. यानी, पांच साल में 96.36 लाख से ज्यादा वोटर्स बढ़ गए हैं. इन चुनावों में 4.33 लाख से ज्यादा वोटर्स ऐसे हैं जो पहली बार वोट डालेंगे. ये वो वोटर हैं जो 1 जनवरी 2023 को 18 साल के हो गए थे.

परिसीमन का असर क्या?

सीमा विस्तार होने से नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत की संख्या बढ़ गई है. कुल मिलाकर अब 17 नगर निगम, 200 नगर पालिकाएं और 545 नगर पंचायत हैं. हालांकि, इनमें से 760 पर ही चुनाव होने हैं. पिछली बार यानी 2017 के चुनाव में 16 नगर निगम, 198 नगर पालिका और 438 नगर पंचायत थीं. यानी, इस बार एक नगर निगम, 2 नगर पालिका और 107 नगर पंचायतें बढ़ गई हैं. नई नगर पंचायत बनने से कई सारे ग्रामीण इलाके अब नगर में आ गए हैं. इसका नतीजा ये हुए 21.23 लाख से ज्यादा वोटर्स ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में आ गए हैं. पिछले साल तीन चरणों में मतदान हुआ था, जबकि अबकी बार दो चरणों में मतदान होना है.

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मैदान में हैं कौन-कौन सी पार्टी?

नगर निगम चुनाव के मैदान में सत्तारूढ़ बीजेपी के अलावा मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, नीतीश कुमार की जेडीयू, आम आदमी पार्टी शामिल हैं. इनके अलावा क्षेत्रीय दल भी मैदान में हैं.

क्या है शहरी इलाके में जातीय समीकरण?

उत्तर प्रदेश के शहरी इलाके में पांच प्रमुख जातियां निर्णायक हैं. नगर निगम से लेकर नगर पंचायत तक मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका भी काफी है. सूबे के शहरी इलाके में देखें तो मुस्लिम, ब्राह्मण, कायस्थ, वैश्य और पंजाबी जातियां अहम भूमिका में है. बीजेपी ब्राह्मण-कायस्थ-वैश्य-पंजाबी समीकरण के जरिए शहरी इलाकों में जीत दर्ज करती रही है तो सपा और बसपा मुस्लिम वोटों के भरोसे अपना दम दिखाती है. दलित समुदाय शहरी इलाकों में बहुत ज्यादा संख्या में नहीं है जबकि ओबीसी में यादव, कुर्मी, जाट जैसी नौकरी पेशा वाली जातियां है. इन पांचों जातियों के समीकरण को देखते हुए राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है.

पिछली बार क्या रहे थे नतीजे?

2017 में जब नगर निकाय के चुनाव हुए थे, तो उसमें बीजेपी की बंपर जीत हुई थी. बीजेपी ने 16 में से 14 नगर निगमों पर कब्जा कर लिया था. पिछली बार 1300 में से 597 पार्षद बीजेपी के थे. वहीं, 198 नगर पालिकाओं में से 70 में और 438 नगर पंचायतों में से 100 में बीजेपी की जीत हुई थी. कांग्रेस एक भी नगर निगम नहीं जीत पाई थी. कांग्रेस सिर्फ 9 नगर पालिका और 17 नगर पंचायत जीत सकी थी. बहुजन समाज पार्टी ने 2 नगर निगमों पर कब्जा कर लिया था.

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आरक्षण को लेकर क्यों फंसा था पेंज?

यूपी सरकार ने पिछले साल 5 दिसंबर को ओबीसी आरक्षण को लेकर एक ड्राफ्ट जारी किया था. जिसको इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी और आरोप लगाया गया था कि सरकार ने ओबीसी आरक्षण के ड्राफ्ट में सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले का ध्यान नहीं रखा है. इसके खिलाफ कुल 93 याचिकाएं कोर्ट में दायर हुई थीं. हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं पर साथ सुनवाई की और सरकार के ड्राफ्ट को रद्द करते हुए बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने का आदेश दिया था. जिसके बाद यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपी सरकार ने रिटायर्ड जज राम औतार सिंह की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय ओबीसी आयोग का गठन किया था, जिसकी सर्वे रिपोर्ट के बाद अब सीटों को आरक्षित किया गया है.

आखिर था क्या यूपी सरकार का ड्राफ्ट? 

यूपी सरकार ने प्रदेश के 762 नगरीय निकायों में चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण की प्रोविजनल लिस्ट तैयार की थी. इस लिस्ट के मुताबिक, चार मेयर सीट- अलीगढ़, मथुरा-वृंदावन, मेरठ और प्रयागराज को ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किया गया था. इनमें से अलीगढ़ और मथुरा-वृंदावन ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षित थीं. वहीं, 200 नगर पालिकाओं में से 54 को ओबीसी के लिए आरक्षित किया गया था, जिनमें 18 महिलाओं के लिए थीं. जबकि, 545 नगर पंचायतों में से 147 सीटों को ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रखा गया था और इनमें से भी 49 महिलाओं के लिए रिजर्व रखी गई थीं. 

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क्या है ट्रिपल टेस्ट? 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं कि नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए 'ट्रिपल टेस्ट' फॉर्मूला लागू होना चाहिए. इसके तहत, ओबीसी का आरक्षण तय करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाता है. इस आयोग का काम निकायों में राजनीतिक पिछड़ेपन का आकलन करना है. इसके बाद सीटों के लिए आरक्षण को प्रस्तावित किया जाता है. इसके बाद दूसरे चरण में स्थानीय निकायों में ओबीसी की संख्या का परीक्षण किया जाता है. तीसरे और आखिरी चरण में सरकार के स्तर पर इसका सत्यापन किया जाता है. 

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