
उत्तर प्रदेश के शहरी निकाय चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां फिर से बढ़ गई हैं. नगर निगम के मेयर, नगर पालिका नगर पंचायत के अध्यक्ष और वार्ड पार्षद सीटों के लिए ओबीसी आरक्षण को तय करने के लिए गठित पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आयोग ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी. अब इस रिपोर्ट को शुक्रवार को होने वाली कैबिनेट में मंजूरी दी जा सकती है. ऐसे में आयोग रिपोर्ट के आधार पर निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग के लिए सीट का आरक्षण नए सिरे से तय किया जाएगा जिसके चलते पूर्व में जारी आरक्षण सूची में बड़ा उलटफेर हो सकता है.
यूपी निकाय चुनाव के लिए जारी आरक्षण सूची पर आपत्ति जताते हुए तमाम लोगों ने अदालत में याचिका दाखिल की थी. हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए बिना आरक्षण के ही चुनाव कराने के निर्देश दिए थे. इसके बाद विपक्षी दलों ने योगी सरकार को ओबीसी विरोधी बताते हुए हमला बोल दिया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ओबीसी आयोग का गठन करके 31 मार्च 2023 तक जिलों का सर्वे कराकर रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए थे. सरकार ने दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट के जस्टिस रहे राम औतार सिंह की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय ओबीसी आयोग का गठन किया था.
आयोग ने सर्वे कर सरकार को सौंपी रिपोर्ट
ओबीसी आयोग ने यूपी के सभी 75 जिलों में जाकर पिछड़े वर्ग की आबादी का सर्वे करने के साथ ही रैपिड सर्वे में दिखाए गए पिछड़ी जाति के आंकड़ों, पूर्व में शासन की ओर से जारी आरक्षण सूची, चक्रानुक्रम प्रक्रिया का परीक्षण किया. ओबीसी आयोग ने अपनी रिपोर्ट तैयार की और उसे गुरुवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया. अब ओबीसी आयोग की इस रिपोर्ट के आधार पर निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी. सीट आरक्षण को अंतिम रूप देने से पहले योगी सरकार को ओबीसी आयोग की रिपोर्ट के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को भी जानकारी देनी होगी.
रिपोर्ट पर आज लग सकती है कैबिनेट की मुहर
पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को योगी सरकार शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे सकती है. ओबीसी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर शहरी निकाय की कई सीटों के आरक्षण में बड़ा उलटफेर हो सकता है. नगर विकास विभाग अब ट्रिपल टेस्ट के आधार पर नगरीय निकायों में मेयर, अध्यक्ष और पार्षद सीटों का नए सिरे से आरक्षण करेगा. निकाय चुनाव के लिए सीटों का आरक्षण ट्रिपल टेस्ट के आधार पर किया जाएगा जिससे मेयर-अध्यक्ष-पार्षद की सीटों का आरक्षण पूरी तरह से बदल जाएगा.
ये भी पढ़ें- यूपी की तरह इन चार राज्यों में भी ओबीसी आरक्षण पर फंस गया था पेच, जानिए कैसे निकला समाधान
निकाय चुनाव में जो सीटें पहले सामान्य वर्ग के लिए घोषित हुई थी, अब नई आरक्षण प्रक्रिया में अगर ओबीसी या अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होती हैं तो जनरल कैटेगरी के नेताओं के चुनाव लड़ने की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी. इसी तरह से अगर ओबीसी के लिए आरक्षित सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित घोषित कर दी जाती हैं तो पिछड़ा वर्ग के नेताओं की चिंता बढ़ जाएगी. ऐसे में पहले से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे तमाम नेताओं की उम्मीदवारी पर संकट के बादल गहरा गए हैं. यूपी निकाय चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण का नियम है. पहले से महिला के लिए आरक्षित की गई सीटें जनरल या फिर एससी-ओबीसी के लिए घोषित की जाती हैं तो उस सीट पर तैयारी करने वाली महिलाओं के लिए बड़ा झटका होगा.
सरकार ने दिसंबर 2022 में जारी की थी आरक्षण सूची
बता दें कि योगी सरकार ने दिसंबर 2022 में यूपी के निकाय चुनाव के लिए आरक्षण सूची जारी की थी. सूबे के 17 नगर निगम के मेयर चुनाव के लिए लखनऊ, कानपुर, बरेली, शाहजहांपुर, गोरखपुर और फिरोजाबाद सीट अनारक्षित थी. आगरा अनुसूचित जाति की महिला और झांसी नगर निगम के मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. मथुरा और अलीगढ़ अन्य पिछड़ा वर्ग महिला, मेरठ और प्रयागराज अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए रिजर्व की गई थी. अयोध्या, सहारनपुर और मुरादाबाद सीट महिला के लिए आरक्षित की गई थी. ऐसे ही नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष पद की सीटों के साथ ही वार्ड पार्षद के लिए भी आरक्षण सूची जारी कर दी गई थी. ओबीसी आयोग की रिपोर्ट के बाद आरक्षण सूची में बड़ा उलटफेर तय माना जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में दी थी ट्रिपल टेस्ट की व्यवस्था
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2010 में ट्रिपल टेस्ट के आधार पर निकाय सीटों के आरक्षण की व्यवस्था दी थी. उत्तर प्रदेश में इसके बाद साल 2012 और 2017 में पुरानी व्यवस्था के आधार पर ही निकाय चुनाव हुए थे. अब ट्रिपल टेस्ट की व्यवस्था के लागू होने पर नगर विकास विभाग द्वारा जारी दोनों आरक्षण शून्य मान लिए जाएंगे. इस बार निकाय चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के आधार पर पिछड़ों के लिए हिस्सेदारी तय करते हुए सीटों का आरक्षण किया जाएगा, जिससे भविष्य में होने वाले चुनाव इसके आधार पर ही कराए जाएंगे.
अप्रैल-मई तक कराए जा सकते हैं निकाय चुनाव
आरक्षण का निर्धारण करने से पहले नगर विकास विभाग आयोग की रिपोर्ट के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएगा. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को 31 मार्च तक का समय दिया था लेकिन आयोग ने उससे पहले ही योगी सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. आयोग की रिपोर्ट को राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में पेश करेगी और उसके आधार पर आरक्षण और निकाय चुनाव कराने की अनुमति मांगेगी. सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद यूपी में निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. माना जा रहा है कि सब कुछ ठीक रहा तो अप्रैल-मई तक निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं?