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अमेठी-रायबरेली में उम्मीदें तलाश रहे अखिलेश को लगा झटका, कांग्रेस को मिली संजीवनी  

उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव को 2024 का सेमीफाइल माना जा रहा था. इसीलिए निकाय चुनाव के नतीजो को भी उसी से जोड़कर देखा जा रहा है. गांधी परिवार के प्रभाव वाले अमेठी और रायबरेली में सियासी संभावनाएं तलाश रहे सपा प्रमुख अखिलेश यादव को निकाय चुनाव में बड़ा झटका लगा है?

अखिलेश यादव, राहुल गांधी, स्मृति ईरानी अखिलेश यादव, राहुल गांधी, स्मृति ईरानी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 15 मई 2023,
  • अपडेटेड 8:05 PM IST

उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के दुर्ग माने जाने वाले अमेठी-रायबरेली में सियासी उम्मीदें तलाश रहे सपा प्रमुख अखिलेश यादव को निकाय चुनाव में बड़ा झटका लगा है. गौरीगंज नगर पालिका सीट छोड़ दें तो अमेठी की बाकी सीटों पर सपा की जमानत जब्त हो गई है. इसी तरह से रायबरेली में भी सपा का यही हश्र हुआ है.  

गांधी परिवार के प्रभाव वाले दोनों ही क्षेत्र अमेठी-रायबरेली में सपा को एक भी निकाय सीट नहीं मिल सकी है. वहीं, कांग्रेस ने अमेठी क्षेत्र के तहत आने वाली सबसे बड़ी नगर पालिका जायस सीट को बीजेपी से छीन लिया है तो रायबरेली पालिका और लालगंज पंचायत सीट पर अपना अध्यक्ष बनाने में कामयाब रही. ऐसे में 2024 में सपा के चुनाव लड़ने के हौसले को निकाय चुनाव नतीजे ने पस्त कर दिया है? 

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अमेठी-रायबरेली में सपा दिखा रही थी दम

बता दें कि 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली लोकसभा की पांच से चार सीटें सपा जीतने में सफल रही थी और एक सीट वो मामूली वोटों से हार गई थी. वहीं, अमेठी लोकसभा क्षेत्र में सपा के दो विधायक हैं और दो सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही थी. 2022 के नतीजे के बाद ही अखिलेश यादव को अमेठी-रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में सियासी संभावनाएं नजर आने लगी थी, क्योंकि इन दोनों ही सीटों पर अभी तक सपा उम्मीदवार नहीं उतारती थी.

कोलकाता में सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान प्रेस कॉफ्रेंस को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा था कि रायबरेली और अमेठी के पार्टी कार्यकर्ताओं की शिकायत रहती है कि कांग्रेसी उनका वोट लेते हैं, लेकिन जब उन पर किसी तरह का राजनीतिक संकट आता है या उनका उत्पीड़न होता है तो कांग्रेसी साथ नहीं देते हैं. इसके चलते अब वहां के स्थानीय नेताओं के साथ बातचीत की जाएगी और लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारने पर विचार किया जाएगा.  

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सपा गांधी परिवार को देती रही वाकओवर

रायबरेली सीट से सोनिया गांधी लगातार चुनाव जीत रही हैं जबकि अमेठी सीट का सियासी रंग बदल गया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने शिकस्त देकर गांधी परिवार के अभेद्य दुर्ग माने जाने वाले अमेठी में भगवा फहराया था. 1999 के बाद सपा ने अमेठी सीट पर कभी भी अपना प्रत्याशी नहीं उतारा तो रायबरेली में 2006 के उपचुनाव के बाद से सपा चुनाव नहीं लड़ी. 

राहुल गांधी को अमेठी और सोनिया गांधी को रायबरेली सीट पर दो दशक से वॉकओवर देती रही है, लेकिन अब कांग्रेस अमेठी हार चुकी है और बीजेपी काबिज है. इस तरह से दोनों ही सीटों पर दो दशकों तक कांग्रेस के खिलाफ चुनाव न लड़ने वाली सपा 2024 के चुनाव में दो-दो हाथ करने की कवायद में थी, लेकिन अखिलेश यादव के मंसूबों पर निकाय चुनाव के नतीजों ने पूरी तरह से पानी फेर दिया है.

अमेठी-रायबरेली में सपा को लगा झटका 

सपा ने निकाय चुनाव में अमेठी और रायबरेली की सभी नगर पालिका और नगर पंचायत सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. रायबरेली जिले की एक नगर पालिका और नगर पंचायतों की नौ सीटों पर सपा ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी. इस तरह से अमेठी में भी सपा ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन वहां भी खाता नहीं खुला. 

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रायबरेली की नगर पालिका सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी शत्रोहन सोनकर ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की है और सपा यहां तीसरे नंबर पर रही. इसी तरह नगर पंचायत अध्यक्ष की सीटों पर भी सपा का हाल रहा. ऊंचाहार में सपा प्रत्याशी चौथे नंबर पर तो लालगंज सीट पर सपा से ज्यादा AIMIM प्रत्याशी को वोट मिले थे. 9 नगर पंचायत सीटों में से पांच बीजेपी ने कब्जा जमाया तो एक सीट पर कांग्रेस व तीन सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी जीते. 

कांग्रेस को मिली संजीवनी
रायबरेली की जीत कांग्रेस के लिए इसीलिए भी अहम है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर केशव प्रसाद मौर्य तक प्रचार करने पहुंचे थे जबकि कांग्रेस की तरफ से न प्रियंका गांधी, न राहुल और न ही सोनिया गांधी पहुंची. इतना ही नहीं सोनिया के प्रतिनिधि किशोरी लाल शर्मा भी चुनाव के आखिर में रायबरेली पहुंचे थे. कांग्रेस की जीत में सपा छोड़कर आए इलियास मन्नी की भूमिका अहम रही. 

अमेठी के निकाय चुनाव के नतीजें देखें तो एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की है. कांग्रेस प्रत्याशी ने जायस नगर पालिका सीट पर बीजेपी प्रत्याशी को हराकर अपना कब्जा जमाया है. तीन बार से लगातार इस सीट पर बीजेपी जीत रही थी. इस बार इसी सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी मनीषा ने जीत हासिल की है. इसके अलावा मुसाफिरखाना नगर पंचायत सीट पर कांग्रेस ने निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन किया था, जिसने बीजेपी को कांटे की टक्कर दी, लेकिन जीत नहीं मिली. जायस नगर पालिका सीट की जीत कांग्रेस के लिए संजीवनी से कम नहीं है. 

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अखिलेश के उम्मीदवारों किसने फेरा पानी

अमेठी कांग्रेस के लिए संजीवनी बनी तो सपा के उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. जायस सीट पर सपा की जमानत जब्त हो गई है. गौरीगंज नगर पालिका सीट सपा के हाथों से खिसककर बीजेपी के पास चली गई है. अमेठी और मुसाफिरखाना नगर पंचायत सीट पर सपा प्रत्याशी की जमानत भी नहीं बची. सपा की हार के पीछे पार्टी के स्थानीय नेताओं की अहम वजह भी रही है. 

रायबरेली में सपा विधायक मनोज पांडेय की मनमानी से कैंडिडेट उतारने का हश्र पार्टी को उठाना पड़ा तो अमेठी में राकेश प्रताप सिंह के चलते नुकसान हुआ. रायबरेली नगर पालिका सीट पर पार्टी के नेताओं को टिकट देने के बजाय मनोज पांडेय के करीबी को प्रत्याशी बनाया. ऐसे में इलियास मन्नी ने सपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया और उन्होंने अकेले दम पर पूरे समीकरण को बदल दिया. सपा का कोर वोटबैंक पूरी तरह कांग्रेस में शिफ्ट हो गया.

ऊंचाहार नगर पंचायत में भी मनोज पांडेय ने अपने ही करीबी को टिकट दिलाया, जिसके चलते मो. शाहिद पार्टी छोड़कर बसपा में शामिल हो गए. सपा के गलत टिकट वितरण और पार्टी नेता की मनमानी ने सिर्फ पार्टी के नेता को ही दूर नहीं किया बल्कि कोर वोटबैंक को भी नाराज कर दिया. इसी तरह अमेठी में राकेश प्रताप सिंह सपा के लिए सियासी नुकसान दे साबित हुए. चुनाव से दो दिन पहले थाने में बीजेपी नेता की पिटाई कर दी, जिसका असर चुनाव में पड़ा और सपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. 

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