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उत्तर प्रदेश: निकाय चुनाव में OBC आरक्षण के लिए आयोग का गठन, इन 5 लोगों को मिली अहम जिम्मेदारी

इस 5 सदस्यीय आयोग को राज्यपाल की सहमति से 6 महीने के लिए गठित किया गया है, जो जल्द से जल्द सर्वे कर रिपोर्ट शासन को सौंपेगा. ये आयोग मानकों के आधार पर पिछड़े वर्गों की आबादी को लेकर सर्वे कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगा. रिटायर्ड जस्टिस राम अवतार सिंह को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है.

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (File Photo) यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (File Photo)
समर्थ श्रीवास्तव
  • लखनऊ,
  • 28 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 8:04 PM IST

उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के लिए योगी सरकार 5 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया है. ये आयोग मानकों के आधार पर पिछड़े वर्गों की आबादी को लेकर सर्वे कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगा. रिटायर्ड जस्टिस राम अवतार सिंह को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. सदस्यों में चोब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, संतोष विश्वकर्मा और ब्रजेश सोनी शामिल हैं. ये आयोग राज्यपाल की सहमति से 6 महीने के लिए गठित है, जो जल्द से जल्द सर्वे कर रिपोर्ट शासन को सौंपेगा.

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बता दें कि 5 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने नगर निकाय चुनाव की आरक्षण सूची जारी की थी. जिसमें ओबीसी और एससी-एसटी के लिए सीटें आरक्षित की गईं. इस आरक्षण के खिलाफ हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया कि ओबीसी आरक्षण देने में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जिस ट्रिपल टेस्ट को आवश्यक बताया गया था, उसका पालन नहीं हुआ है. मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 27 दिसंबर को प्रदेश में निकाय चुनाव जल्द चुनाव कराने का आदेश दिया है. साथ ही राज्य सरकार की के ओबीसी आरक्षण को लेकर नोटिफिकेशन को भी रद्द कर दिया है.

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का रुख किया है. बीजेपी निकाय चुनाव कराने की जल्दबाजी में ओबीसी वोटरों को नाराज नहीं करना चाहती है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी ओबीसी वोटरों की ही राजनीति करती है और उसका कोर वोट बैंक भी ओबीसी ही माना जाता है.

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यूपी में OBC जातियों में किसकी कितनी हिस्सेदारी? 

गौरतलब है कि यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियां सबसे ज्यादा अहम हैं, जिनमें कुर्मी-पटेल 7 फीसदी, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6 फीसदी, लोध 4 फीसदी, गड़रिया-पाल 3 फीसदी, निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट 4 फीसदी, तेली-शाहू-जायसवाल 4, जाट 3 फीसदी, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 फीसदी, कहार-नाई- चौरसिया 3 फीसदी, राजभर-गुर्जर 2-2 फीसदी हैं. ऐसे में बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी जातियों को साधकर सूबे में सत्ता का सूखा खत्म किया था और यह वोटबैंक अगर खिसका तो फिर बीजेपी अपने उसी मुकाम पर पहुंच जाएगी.

पिछड़ा वर्ग के बिना बीजेपी को हो सकता है नुकसान

बीजेपी को लगता है कि पिछड़े वर्ग को आरक्षण के बिना निकाय चुनाव कराने से पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है. साथ ही लोकसभा चुनाव में भी इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा. इसीलिए हाईकोर्ट का फैसला आते ही विपक्ष ने मोर्चा खोला तो बीजेपी के नेता ओबीसी की आवाज बनकर खड़े हो गए हैं और बिना आरक्षण के चुनाव कराने के लिए तैयार नहीं है. यूपी में बीजेपी का सियासी आधार ओबीसी पर ही टिका है और वो खिसका तो सत्ता की राह मुश्किल हो जाएगी. इसीलिए बीजेपी किसी तरह का कोई भी जोखिम उठाने को तैयार नहीं है. 

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