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Varanasi: गंगा की बाढ़ में मणिकर्णिका घाट भी डूबा, छत पर हो रहा अंतिम संस्कार, शवों की लगी लाइन

काशी में गंगा का जलस्तर बढ़ने से अब तक सिर्फ पक्के घाटों का संपर्क टूटा था, तट पर बने छोटे-बड़े मंदिर जलमग्न हुए थे, आरती स्थल की जगह बदली गई थी लेकिन अब महाश्मशान मणिकर्णिका घाट में शव दाह का स्थान तक बदलना पड़ा है.

काशी: घाट पर छतों पर हो रहा शवदाह काशी: घाट पर छतों पर हो रहा शवदाह
रोशन जायसवाल
  • वाराणसी ,
  • 05 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 6:14 PM IST

वाराणसी में गंगा का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है. गंगा अपने रौद्र रूप में आने को उतावली है. इस बीच बढ़ते जलस्तर का असर दिखना शुरू हो गया है. अब तक सिर्फ गंगा किनारे पक्के घाटों का संपर्क टूटा था, तट पर बने छोटे-बड़े मंदिर जलमग्न हुए थे, आरती स्थल की जगह बदली गई थी लेकिन अब महाश्मशान मणिकर्णिका घाट में शव दाह का स्थान तक बदलना पड़ा है. क्योंकि, गंगा का पानी घाट के ऊपर तक आ गया है.  

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गौरतलब हो कि मणिकर्णिका घाट पर यूपी ही नहीं दूसरे प्रदेशों से भी लोग शवदाह के लिए आते हैं. लेकिन बाढ़ की विभीषिका ने सभी पक्के घाटों के साथ ही अब महाश्मशान मणिकर्णिका घाट को भी डुबो दिया है. आलम यह है कि अब ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए बनाई गई छत या जिसे बड़ा प्लेटफार्म कहते है वहां शवदाह शुरू किया गया है. लेकिन जगह कम हो जाने और भीड़ बढ़ने की वजह से लोगों की मुसीबतें बढ़ गई हैं.

 
ऐसी मान्यता है कि काशी के मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार करने से मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी आस्था के साथ दुनिया भर से सनातनी यहां आते हैं. लेकिन मोक्ष के इस रास्ते में पतित पावनी मां गंगा अवरोध पैदा करने लगी है और मोक्ष मार्ग को मुश्किल बना दिया है.  

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बाढ़ के पानी में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट, बाबा महाश्मशान नाथ का मंदिर और शवदाह स्थल पूरी तरह से जलमग्न हो चुके हैं. जगह की कमी हो चुकी है, जिसकी वजह से ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए बनाए गए छत या यूं कहे ऊंचे प्लेटफार्म पर शवदाह करना मजबूरी हो गई है. इसका खामियाजा शवयात्रियों को उठाना पड़ रहा है.  

वाराणसी के ही परमानंद यादव अपने किसी को अंतिम विदाई देने मणिकर्णिका घाट पहुंचे थे. उन्होंने बताया कि सावन के सोमवार की वजह से रोज की अपेक्षा कम भीड़ होने के बावजूद इतनी परेशानी है कि बयां नहीं कर सकता. जगह कम होने के चलते शवदाह नहीं कर पा रहे हैं. छत पर जाकर शवदाह करना मजबूरी है. ऐसे में शव की परिक्रमा भी नहीं हो पा रही है. शवदाह कराने में खुद के हाथ और अन्य अंग झुलस जा रहे. पांव में छाले पड़ जा रहें है. इसके लिए प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है. 

एक अन्य शवयात्री मनोज यादव ने बताया कि ऊपर छत पर शवदाह करना पड़ रहा है. जगह कम होने के चलते खुद का हाथ-पैर भी जल जा रहा है.  थोड़ी सी जगह पर कई शव एक साथ जल रहे हैं. वहीं, जौनपुर के विनोद ने बताया कि बाढ़ की वजह से जगह कम हो गई है और एक से डेढ़ घंटे का इंतजार नंबर आने के लिए करना पड़ रहा है. छत पर जगह मिली है और वहीं पर 15 शव एक साथ जल रहे हैं. काफी दिक्कत उठानी पड़ रही है. 

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उधर, गंगा घाट के डूब जाने के चलते शवदाह के लिए लकड़ी बेचने वाले भी परेशान हैं. क्योंकि, जगह की काफी किल्लत हो चुकी है. लकड़ी व्यवसायी विष्णु यादव ने बताया कि पानी बहुत तेजी से बढ़ रहा है. इसको लेकर जगह कम पड़ गई है. शव को जलने में भी काफी दिक्कत हो रही है. लकड़ी के रखरखाव में भी समस्या आ रही है. 

वहीं, शवदाह कराने वाले डोम परिवार के सदस्य माताप्रसाद चौधरी ने बताया कि पानी बढ़ जाने से हांथीदौड़वा यानी जिसे आम बोलचाल की भाषा में छत कहते है वहां पर शवदाह किया जा रहा है. बाढ़ की वजह से बने छत पर ही शवदाह हो रहा है. छत पर अभी 12-14 शवों को एक साथ जलाने का स्थान है. पहले एक साथ कुल 50-60 शवदाह की क्षमता थी, लेकिन अभी सिर्फ छत पर 12-14 शव ही जला पा रहें हैं. बाढ़ का पानी और बढ़ता है तो और भी जगह की दिक्कत पैदा हो जाएगी. 

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