पाकिस्तान अब खुलकर तालिबान की तरफदारी करने लगा है. अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक मान रहे हैं कि काबुल पर कब्जा जमाने में भी पाकिस्तान ने तालिबान की बड़ी मदद की है, वरना काबुल पर एक सप्ताह के भीतर काबिज होना मुमकिन नहीं था. तालिबान की मदद का पाकिस्तान पर आरोप लगता रहा है. यह आरोप लगाने वालों में अफगानिस्तान में खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्ला सालेह पहले पायदान पर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान उसे निगल नहीं पाएगा.
(अमरुल्ला सालेह, फोटो-इंडिया टुडे)
तालिबान के कब्जे और अशरफ गनी के देश छोड़ने के बाद खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्ला सालेह ने एक बार फिर पाकिस्तान पर निशाना साधा है. सालेह ने गुरुवार को कहा कि अफगानिस्तान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान उसे निगल नहीं पाएगा और तालिबान भी उस पर राज नहीं कर पाएगा. सालेह ने ट्वीट में कहा कि आप अपने इतिहास में आतंकी संगठनों के सामने झुकने और अपमानित होने को लेकर एक और अध्याय मत शामिल कराइए.
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अमरुल्ला सालेह ने ट्वीट किया, 'राष्ट्रों को कानून के शासन का सम्मान करना चाहिए, हिंसा का नहीं. अफगानिस्तान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान इसे निगल नहीं पाएगा और तालिबान की क्षमता से भी बाहर है.
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तालिबान से लोहा लेने के लिए सालेह आतंकियों के विरोधियों का समर्थन जुटा रहे हैं. सिलसिलेवार ट्वीट्स कर उन्होंने उन लोगों के लिए भी सम्मान व्यक्त किया, जिन्होंने राष्ट्रीय ध्वज लहराया और राष्ट्र की गरिमा के लिए खड़े रहे.
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अमरुल्ला सालेह ने पाकिस्तान के खिलाफ यह टिप्पणी तब की है जब पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अशरफ गनी सरकार को आड़े हाथों लिया है. डॉन के मुताबिक, कुरैशी ने पाकिस्तान के मुल्तान में कहा कि तालिबान ने सामान्य माफी और लड़कियों के स्कूल को जाने की इजजात देकर सत्ता गंवा चुकी अशरफ गनी सरकार का अपने खिलाफ प्रचार को झूठा साबित कर दिया है.
कुरैशी ने कहा, 'एक आशंका थी कि तालिबान लड़कियों की शिक्षा पर बंदिश लगाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तालिबान ने सामान्य माफी की घोषणा की है. स्कूल और दुकानें खुल रही हैं. उन्होंने यह भी घोषणा की कि वे बदला नहीं लेंगे. तालिबान के शांतिपूर्ण उठाए गए सभी कदम स्वागत योग्य है.'
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तालिबान के काबुल पर कब्जा करने और अशरफी गनी के देश छोड़कर जाने के बाद 17 अगस्त को सालेह ने खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है. सालेह ने ट्विटर पर घोषणा की कि वह देश के संविधान के अनुसार अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं, जो उन्हें मौजूदा राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में पद संभालने की अनुमति देता है.
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फिलहाल, सालेह अफगानिस्तान के पंजशीर इलाके में हैं जहां तालिबान अब तक कब्जा नहीं कर पाया है. पंजशीर प्रांत तालिबान के खिलाफ बने राष्ट्रीय मोर्चे का अहम हिस्सा है. अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह की अगुवाई में यहां से तालिबान को चुनौती दी जा रही है. अमरुल्ला सालेह ने साफ किया है कि वह अपने देश के लिए लड़ते रहेंगे और तालिबान के सामने नहीं झुकेंगे.
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अमरुल्ला सालेह ने साल 2010 में इंटेलिजेंस की नौकरी से इस्तीफा देने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई के खिलाफ कैंपेन छेड़ दिया और उनकी नीतियों पर सवाल खड़े करने लगे. सालेह ने नेशनल मूवमेंट की शुरुआत की और फिर अशरफ गनी के साथ हाथ मिला लिया. सितंबर 2014 में अशरफ गनी सत्ता में आए और अमरुल्ला सालेह को बाद में गृह मंत्री बनाया गया. 2019 में जब अशरफ गनी फिर से राष्ट्रपति बने, तब अमरुल्ला सालेह को उपराष्ट्रपति बनाया गया. वो अफगानिस्तान के पहले उप-राष्ट्रपति बने.