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जनरल बिपिन रावत के सैन्य विकल्प वाले बयान से चीन को लगी मिर्ची

aajtak.in
  • 28 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 6:02 PM IST
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लद्दाख में भारत और चीन के सीमा विवाद को सुलझाने के लिए अब तक दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन कोई समाधान नहीं निकल सका है. कुछ दिन पहले ही सीडीएस (इंडियन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) जनरल बिपिन रावत ने एक बयान में कहा कि लद्दाख में चीनी अतिक्रमण से निपटने के लिए सैन्य विकल्प खुला है. बिपिन रावत ने कहा था कि अगर चीन के साथ कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को लेकर कोई नतीजा नहीं निकलता है तो सैन्य विकल्प भी मौजूद है. हालांकि, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक इंटरव्यू में कहा है कि चीन के साथ सीमा विवाद का हल कूटनीतिक माध्यमों से ही सुलझाया जाना चाहिए.

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जनरल बिपिन रावत का बयान चीनी मीडिया में भी सुर्खियों में है. चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने बिपिन रावत के बयान पर एक आर्टिकल छापा है और कहा है कि सेना के कड़े तेवर दिखलाने से भारत की आंतरिक परेशानियां दूर नहीं होंगी. अखबार ने लिखा है कि भारतीय सेना ने सीमा से लगे कई संवेदनशील इलाकों में सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी है और टैंक समेत कई हथियारों को इकठ्ठा किया है. हालांकि, भारत के सैन्य अधिकारियों को चीन और भारत की सैन्य क्षमता के बीच के फर्क का पता होना चाहिए. इसलिए वे चीन पर कभी भी बड़े पैमाने का हमला करने की भूल ना करें. अखबार ने लिखा कि भारतीय सेना इस तरह के बयानों का इस्तेमाल सिर्फ चीन के साथ निगोशिएन में बढ़त लेने के लिए कर रही है.

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ग्लोबल टाइम्स में छपे आर्टिकल में चीन के खिलाफ आर्मी के सख्त रवैये को भारत सरकार और इंडियन आर्मी में विरोधाभास करार दिया गया है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, "भले ही भारतीय सेना ने अपना कड़ा रुख जाहिर किया है लेकिन भारत सरकार चीन के साथ तनाव घटने की उम्मीद जता रही है. हो सकता है कि भारतीय सैन्य अधिकारी चीन-भारत सीमा संघर्ष के खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की कोशिश इसलिए कर रहे हों ताकि वे अपनी सरकार पर हथियार और सैन्य साजो-सामान के लिए रक्षा खर्च बढ़ाने के लिए दबाव डाल सकें."

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ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भारत के सामने सबसे बड़ा संकट कोविड-19 और अर्थव्यवस्था है जिससे मोदी सरकार पर बहुत ज्यादा दबाव है. भारत के कमजोर मेडिकल सिस्टम और इन्फ्रास्ट्रक्चर की वजह से कोविड-19 के पुष्ट केसों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है और भारतीयों का अपनी सरकार की प्रबंधन क्षमता में भरोसा कम होता जा रहा है. चीन की तरफ से भारत को नसीहत दी गई है कि उसे महामारी से लड़ने पर ध्यान देना चाहिए और आर्थिक प्रगति और बेरोजगारी जैसी समस्या का समाधान करना चाहिए. 

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आर्टिकल में कहा गया है कि भारत अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए चीन के खिलाफ भले कड़ा रुख अख्तियार करे लेकिन उसके लिए चीन से किसी सैन्य संघर्ष में उलझना या युद्ध का खतरा मोल लेना असंभव है.

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ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, चीन का रुख बिल्कुल स्पष्ट और साफ है. चीन भारत के साथ किसी भी तरह के संघर्ष में नहीं उलझना चाहता है. चीन भारत के साथ सभी समस्याओं का शांतिपूर्वक समाधान चाहता है. वर्तमान में, बातचीत के लिए दरवाजा खुला हुआ है और दोनों देश पारस्परिक सहयोग के जरिए इस संकट से निपटने में सक्षम हैं. भारत और चीन की सरकारों के रुख को देखते हुए युद्ध का कोई खतरा नजर नहीं आता है.
 

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आर्टिकल में ये भी कहा गया है कि भारत ने सैन्य विकल्प का दांव काफी वक्त बीतने के बाद चला है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, भारत सितंबर महीने में जापान के साथ सैन्य उपकरणों के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर करने जा रहा है. भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ हाल ही में एक सैन्य समझौते पर भी हस्ताक्षर किए ही हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया भारत के मालाबार नौसेना अभ्यास में भी आमंत्रित किया जाएगा. भारत के इन कदमों के पीछे चीन को काउंटर करने की मंशा हो सकती है. लेकिन भारत के शक्ति प्रदर्शन के पीछे वैश्विक स्तर पर खुद को लीडर दिखाने और कई देशों को लामबंद करने की चाह भी है. हालांकि, भारत चीन की राष्ट्रीय ताकत से अवगत है और परमाणु शक्ति संपन्न देश से किसी तरह के संघर्ष का खतरा नहीं लेगा.

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आर्टिकल के मुताबिक, भारत की सैन्य रणनीति सही रास्ते से भटक गई है. भारत को अमेरिका के साथ अच्छे संबंध की उम्मीद है और वह उसके साथ मिलकर आंशिक सैन्य गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहा है. चीन अमेरिका के प्रभाव का इस्तेमाल एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोकने के लिए कर रहा है लेकिन भारत का ये रुख बिल्कुल सही नहीं है. हिंद महासागर में किसी एक का ही वर्चस्व रह सकता है- अमेरिका भारत समेत किसी भी देश को हिस्सेदार नहीं बनने देगा. एक बार भारत की राष्ट्रीय और सैन्य ताकत बढ़ जाए तो फिर अमेरिका और भारत के बीच की लड़ाई धीरे-धीरे तेज होने लगेगी.

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ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भारत को चीन के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं होगी. इसलिए भारत को चीन के साथ अपने संबंधों को ज्यादा तार्किक और तटस्थ होकर देखना चाहिए. भारत हमेशा से अमेरिका की प्रभुत्ववादी नीतियों को लेकर झुकता रहा है लेकिन इस तरह से वो अमेरिका का प्यादा बन जाएगा. भारत के लिए रणनीतिक स्वतंत्रता सबसे ऊपर होनी चाहिए. सैन्य तरीकों से कोई मदद नहीं मिलेगी इसलिए भारत को संवाद, सहयोग और साझा विकास के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए.

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अंत में कहा गया है कि भारत और चीन के कई साझा हित हैं और वे बाजार और आर्थिक विकास के मामले में एक-दूसरे के पूरक हैं. भारत को शिकायत के बजाय अपनी प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने में इसका इस्तेमाल करना चाहिए. भारत अगर अमेरिकी की रणनीति में साथ देता है और अमेरिकी का ताकत का इस्तेमाल चीन के खिलाफ करता है तो भारत गलत रास्ते पर ही आगे बढ़ेगा.

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