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तालिबान ने चीन की तारीफ में गढ़े कसीदे, दिया ये बड़ा बयान

aajtak.in
  • बीजिंग,
  • 21 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 2:57 PM IST
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तालिबान ने 15 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया जिसके बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए. तालिबान के काबिज होने के बाद कई अफगान नागरिक 1990 के दशक का बर्बर शासन के लौटेने को लेकर आशंकित हैं. इस बीच, तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा है कि चीन ने अफगानिस्तान में शांति और सुलह को बढ़ावा देने में रचनात्मक भूमिका निभाई है और देश के पुनर्निर्माण में योगदान देने के लिए उसका स्वागत है.

(तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन, फोटो-AP)

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चीन ऐसा शक्तिशाली देश है जिसे रूस और अमेरिका के उलट बिना लड़े अफगानिस्तान में निवेश का मौका मिल सकता है. चाइना ग्लोबल टेलीविज़न नेटवर्क (CGTN) से बातचीत करते हुए सुहैल शाहीन ने कहा, 'चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था और क्षमता वाला देश है -मुझे लगता है कि वे अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण, पुनर्वास में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.'

(फोटो-Getty Images)

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पिछले महीने उत्तरी चीनी बंदरगाह शहर तियानजिन में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की तालिबान प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक हुई थी. चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अफगानिस्तान एक उदारवादी इस्लामी नीति अपना सकता है.

(फोटो-चीनी विदेश मंत्रालय)

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अमेरिकी सैनिकों की जल्दबाजी में वापसी को चीन अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने के अवसर के रूप में देख रहा है. चीन ने इसे ताइवान के लिए एक सबक भी करार दिया है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपनी संपादकीय में लिखा कि ताइवान अमेरिका पर भरोसा न करे. चीनी अखबार का कहना था कि जो अमेरिका अफगान लोगों की सुरक्षा नहीं कर पाया वो ताइवान को क्या सुरक्षा मुहैया कराएगा.

(फोटो-AP)

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काबुल पर तालिबान के कब्जा के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी देश चिंतित हैं. लेकिन चीन अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी को लेकर बहुत ही सहज नजर आ रहा है. चीन ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि वह अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता देने के लिए तैयार है. 16 अगस्त को चीन के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से यही बात दोहराई. चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि चीन अफगानिस्तान में तालिबान के साथ दोस्ताना और सहयोगपूर्ण रिश्ते कायम करना चाहता है.

(फोटो-AP)
 

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हालांकि चीन अफगानिस्तान में भले ही अपने लिए अवसर देख रहा हो, लेकिन तालिबान उसके लिए परेशानी का सबब भी बन सकता है. अफगानिस्तान अब बीजिंग के लिए एक बड़ा सिरदर्द है, जिसे डर है कि तालिबान के चलते अराजकता न केवल उसके अशांत क्षेत्र शिनजियांग में बल्कि पाकिस्तान तक फैल जाएगी. शिनजियांग में ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट सक्रिय है जो चीन के लिए चिंता का विषय है. कहा जाता है कि इससे तालिबान के ताल्लुकात हैं. तालिबान के कई आतंकी गुटों से संबंध हैं.

चीन की अफगानिस्तान के साथ 76 किलोमीटर की सीमा लगती है. चीन को हमेशा से ये डर सताता रहा है कि सीमाई इलाके शिनजियांग में वीगर अलगाववादियों को अफगानिस्तान में बढ़ावा मिल सकता है. हालांकि, जुलाई महीने में तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से तियानजिन में मुलाकात की थी और आश्वस्त किया था कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल चीन विरोधी गतिविधियों में नहीं होगा. बदले में चीन ने भी अफगानिस्तान में निवेश और आर्थिक मदद का प्रस्ताव दिया. 

(फोटो-AP)

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हालांकि पाकिस्तान में तालिबान की सक्रियता चीन को चितिंत करने वाली है. चीन ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के साथ-साथ पाकिस्तान को भारी ऋण भी दिया है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में बीआरआई की स्थापना के बाद से, चीन ने सड़कों, बांधों और बिजली संयंत्रों के निर्माण को लेकर विदेशों में अरबों डॉलर का निवेश किया है. चीन विकास बैंक और चीन के निर्यात-आयात बैंक ने पूरे एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोप के देशों को अनुमानित 282 बिलियन डॉलर का ऋण दिया.

इसके चलते 2020 में चीन के पूंजी खाते में पहली बार घाटा दर्ज किया गया. पाकिस्तान, जो चीन और अफगानिस्तान का पड़ोसी है, बीजिंग के विदेशी बुनियादी ढांचा अभियान का सबसे बड़ा लाभार्थी है. अकेले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की कीमत 62 अरब डॉलर बताई जा रही है. मध्य एशिया में चीन के हितों और हिंद महासागर में शिपिंग लेन के बीच चीन संभावित रूप से एक महत्वपूर्ण कड़ी है.

(फोटो-AP)
 

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चीन को पाकिस्तान में अपनी संपत्तियों को लेकर डर सताने लगा है. 14 जुलाई को उत्तरी पाकिस्तान में एक चीनी शटल बस में हुए विस्फोट में चार अरब डॉलर के दसू जलविद्युत बांध पर काम कर रहे नौ चीनी इंजीनियरों की मौत हो गई थी. यह हमला अप्रैल में एक अन्य घटना के बाद हुआ, जब पाकिस्तानी तालिबान ने एक होटल में आत्मघाती बम विस्फोट किया, जहां चीनी राजदूत ठहरे हुए थे.

(फोटो-AP)
 

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विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान से अमेरिका का जल्दबाजी में निकलना निश्चित रूप से गलत है, लेकिन अमेरिका की हार चीन की जीत नहीं है. एक महाशक्ति चाहती है कि उसके सैनिक स्वदेश लौट जाएं, और दूसरा? चीन एक नए सिल्क रोड के अपने सपने को सही ठहराने के लिए वापसी की कुछ सकारात्मक आंतरिक फायदा चाहता है.

(फोटो-AP)
 

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