एक तरफ पाकिस्तान पूरी दुनिया में खुद को इस्लाम का रक्षक और मुस्लिमों का सबसे बड़ा हितैषी घोषित करता है लेकिन दूसरी तरफ चीन में उइगर मुसलमानों के साथ होने वाले अत्याचार पर चुप्पी साधे बैठा है. इसी बीच चीन ने एक कठोर फैसला लेते हुए कुरान सहित अन्य धार्मिक ग्रंथों को अपने हिसाब से लिखने की घोषणा कर दी है. अब देखना होगा कि पाकिस्तान क्या इस मामले में चुप बैठेगा.
दरअसल, चीन के शिनजियांग प्रांत में में लगातार मुस्लिमों के खिलाफ चीन के अत्याचार की दास्तां अक्सर सामने आती रहती हैं. कई मुस्लिम नागरिकों को हिंसा के बलबूते जबरन उनके परिवार से दूर डिटेंशन कैंपों में भेज दिया जाता है.
'काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से भागने में कामयाब रहे कुछ मुस्लिमों का कहना है कि उन्हें जबरन इस्लाम का त्याग करने के लिए मजबूर किया गया और चीन की सत्तारूढ़ पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा दिलवाई गई.
इमरान क्यों बनते हैं अनजान:
खुद को शांति का दूत बताने वाले पाकिस्तान पीएम इमरान खान भी चीन के उइगर मुस्लिमों के बारे में अनजान ही बने रहना चाहते हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.
इसी बीच अब चीन ने एक और निर्णय लिया जिसमें वह कुरान, बाइबल सहित उन धर्म ग्रंथों को अपने हिसाब से लिखेगा जो की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के विश्वासों के खिलाफ जाती हो. पार्टी के एक अधिकारी ने बताया कि उनमें या तो बदलाव किया जाएगा या फिर उनका फिर से अनुवाद करवाया जाएगा.
पाकिस्तान के अंदर उठ रहे सवाल:
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पाकिस्तान अब भी चुप बैठेगा या इसे इस्लाम पर प्रहार मानकर चीन के साथ इस मसले पर बात करेगा. क्योंकि अब खुद पाकिस्तान के अंदर यह मामला तूल पकड़ रहा है.
पूर्व क्रिकेटर शाहिद आफरीदी चीन में उइगर मुसलमानों को लेकर चिंता व्यक्त कर चुके हैं और उन्होंने सीधे देश के प्रधानमंत्री इमरान खान से मामले को लेकर आग्रह किया था. हालांकि चीन विदेश मंत्रालय ने उनको जवाबा देते हुए लिखा कि वह दुष्प्रचार के प्रभाव में न आएं और खुद आकर स्थितियों को देखें.
पश्चिमी देश अक्सर चीन की 10 लाख मुस्लिमों को शिनजियांग प्रांत में कैद में रखने और उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित करने का आरोप लगाते रहते हैं. शुरुआत में चीन इन कैंपों के होने की बात को ही खारिज करता रहा लेकिन बाद में उसने इन्हें धार्मिक अतिवाद और आतंकवाद से लड़ने के लिए बनाए गए प्रशिक्षण केंद्र का नाम दे दिया.
ब्रिटेन-अमेरिका उठा चुके हैं सवाल:
ब्रिटेन ने यूएन में दिए अपने बयान में साफ साफ उइगर समुदाय को टारगेट करने के लिए बनाए गए सामूहिक हिरासत केंद्र, सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों को रोकने और उन पर कड़ी निगरानी की रिपोर्ट्स को लेकर चिंता जताई थी. इसके अलावा अमेरिका ने उइगर और अन्य अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के आरोप में चीन की 28 सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाया हुआ है.
इन सब के बावजूद पाकिस्तान इन मामलों को लेकर चीन के समक्ष अपनी बात रखेगा, ऐसा मुश्किल नजर आ रहा है. क्योंकि चीन पर पाकिस्तान की निर्भरता किसी से छिपी नहीं है. और इसीलिए इमरान खान इन मुद्दों से लगातार जानबूझकर अनजान बने हुए हैं.