ब्रिटेन में भारतीयों के खिलाफ नस्लवादी घटनाओं को लेकर संसद में एक प्रस्ताव पेश किया गया है. ब्रिटेन में एक अध्ययन में भारतीय मूल के नागिरकों के खिलाफ नस्लवाद की बात सामने आई है जिसके बाद 22 जून 2021 को संसद में एक प्रस्ताव पेश किया गया.
(फाइल फोटो-AP)
ब्रिटिश भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्थापित संस्थान 'द 1928 इंस्टीट्यूट' ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटेन में बड़ी तेजी से भारतीयों के खिलाफ नस्लवाद की भावना उभर रही है. 'ब्रिटिश भारतीय पहचान, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और नीतिगत प्राथमिकताएं' के नाम से जारी रिपोर्ट में दावा किया गया कि 80 फीसदी ब्रिटिश भारतीयों को अपनी मूल पहचान के चलते पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है. हिंदू फोबिया के सबसे अधिक मामले देखने को मिले.
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इस रिपोर्ट और ब्रिटेन में करीब 13 लाख भारतीयों के योगदान को स्वीकार करते हुए प्रस्ताव में इस प्रकार के पूर्वाग्रह को तत्काल दूर करने के लिए प्रमुख संस्थानों का आह्वान किया गया है.
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इस प्रस्ताव को पेश करने वाले लेबर पार्टी के सांसद नवेंदु मिश्र ने इंडिया टुडे से कहा, अर्ली डे मोशन (प्रस्ताव) ब्रिटिश भारतीयों के खिलाफ नस्लवाद की समस्या को सामने लाने की कोशिश है. यह समाधान नहीं है बल्कि सांसदों के बीच जागरुकता पैदा करने का एक कदम है कि वे ब्रिटिश समाज में भारतीयों के योगदान और रूढ़िवादिता से होने वाले नुकसान दोनों को ठीक से समझ सकें. ब्रिटिश संसद में Early Day Motion यानी प्रस्ताव का इस्तेमाल संसदों के 'व्यक्तिगत' विचारों को दर्ज करने या विशिष्ट घटनाओं या अभियानों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए किया जाता है.
(लेबर पार्टी के सांसद नवेंदु मिश्र)
नवेंदु मिश्र कानपुर के मूल निवासी हैं.14 वर्ष की उम्र में भारत से ब्रिटेन जाने वाले नवेंदु मिश्र के पिता कानपुर के रहने वाले थे जबकि उनकी मां गोरखपुर की रहने वाली थीं.
फिलहाल नवेंदु मिश्र के प्रस्ताव का सभी पार्टियों के 14 सांसदों ने समर्थन किया है. साउथहॉल और ईलिंग से सांसद वीरेंद्र शर्मा उनमें से एक हैं. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, 'मैंने भी प्रस्ताव पर साइन किये हैं. साउथहॉल का निवासी और सांसद होने के नाते हमने भी भारतीयों के खिलाफ नस्लवाद को बढ़ते देख रहे हैं. मैंने हाल के वर्षों में ब्रिटिश भारतीयों के खिलाफ बढ़ते पूर्वाग्रह को देखा है, जो हाल ही में कोविड-19 के भारत में पाए गए वेरिएंट के चलते और तेजी से बढ़ा है. लेकिन नस्लवाद जैसी समस्या कोरोना से भी पुरानी है और मैंने ईलिंग साउथहॉल में हिंदू फोबिया को करीब से और व्यक्तिगत रूप से देखा है.'
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इस अध्ययन में 2300 लोगों से बातचीत की गई. इस स्टडी को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की एथिक्स कमेटी ने मंजूरी दी है. रिपोर्ट के सह-लेखक अरुण वैद ने ब्रिटेन में कोरोना के "इंडियन वेरिएंट" शब्द के प्रभाव की तरफ इशारा किया जिसे अब "डेल्टा वेरिएंट" कहा जा रहा है. इसका भारतीयों के कारोबार पर असर पड़ा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वाग्रह के चलते ही कई खुद को भारतीय कहने के बजाय दक्षिण एशियाई के रूप में अपना परिचय बताते हैं. बहुत से लोग 'भारतीय' न दिखने के लिए सामाजिक दबाव महसूस करते हैं.
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ब्रिटेन में भारतीयों के खिलाफ नस्लवाद बढ़ने के कारणों को उजागर करते हुए अरुण वैद ने कहा कि कार्यस्थलों पर अक्सर भेदभाव के मामले सामने आते हैं. लेकिन ऑनलाइन नस्लवादी उत्पीड़न तेजी से बढ़ रहा है. इसकी एक वजह यह कि ब्रिटेन में अधिकारी ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लेते हैं. आंशिक रूप से देखा जाए तो भारतीय समाज भी विभाजित है और इसके चलते ये नस्लवाद के खिलाफ संगठित होकर आवाज बुलंद नहीं कर पाते हैं.
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रिपोर्ट पर ब्रिटेन में दुकान चलाने वाले जस्सी सिद्धू ने कहा कि 'इंडियन वेरिएंट' शब्द के इस्तेमाल के बाद से उन्होंने ग्रेव्स एंड में अपने रेस्तरां में कामकाज कम कर दिया है. एक चौंकाने वाली घटना को याद करते हुए जस्सी ने यह भी कहा, "कोई मुझ पर चिल्ला रहा था, 'घर जाओ वायरस'."
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टोरी के सांसद और ब्रिटिश हिंदुओं के लिए सर्वदलीय संसदीय समूह के अध्यक्ष बॉब ब्लैकमैन ने भी प्रस्ताव पर सिग्नेचर किए हैं. उन्होंने ब्रिटेन में भारतीयों के योगदान को स्वीकार करते हुए और इसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया. बॉब ब्लैक मैन ने इंडिया टुडे से कहा, "सोशल और प्रिंट मीडिया में हिंदू-फोबिया और ब्रिटेन में भारतीयों डायस्पोरा के खिलाफ पूर्वाग्रह कई तरह से दिखता है.''
(टोरी के सांसद बॉब ब्लैकमैन)
इस मामले को प्रस्ताव लाने वाले सांसद नवेंदु मिश्रा ने कहा, “मैं चाहता हूं कि सरकार भारत विरोधी नस्लवाद, हिंदूफोबिया और वास्तव में, सभी प्रकार के नस्लवाद से निपटने के लिए एक रणनीति के साथ सामने आए. फिलहाल इस पर कोई मौजूदा रणनीति नहीं है."
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