भारत के आईटी प्रोफेशनल्स के लिए एक गुड न्यूज है. अमेरिका में विदेशी पेशेवरों को दिए जाने वाले वीजा पर लगा प्रतिबंध समाप्त हो गया है. इसमें एच-1बी वीजा भी शामिल है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर 31 मार्च 2021 तक प्रतिबंध लगाया था. बाइडेन प्रशासन ने इसे लेकर 1 अप्रैल को कोई नई अधिसूचना जारी नहीं की. पिछले साल जून में डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें H-1B सहित अन्य विदेशी वर्क वीजा धारकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दी गई थी. ट्रंप प्रशासन ने इसे उन अमेरिकियों की नौकरियों को बचाने के लिए एक आवश्यक कदम के रूप में बताया था, जिन्होंने कोरोना संकट के कारण अपनी नौकरी गंवा दी थी. (फाइल फोटो-AP)
डोनाल्ड ट्रंप का कहना था कि अमेरिका में कोरोना वायरस संकट के चलते नौकरी गंवाने वाले अमेरिकी प्रोफेशनल्स का कोई दोष नहीं है और इसकी वजह से उनकी जगह विदेशी लोगों को नहीं लाया जाना चाहिए. उस दौरान व्हाइट हाउस ने जारी बयान में कहा था कि जब इतने सारे अमेरिकियों के पास काम न हो तो कुछ अपवादों के साथ, हमें बड़ी संख्या में विदेशी कामगारों को अमेरिका में एंट्री देने की परमिशन नहीं देनी चाहिए. (फाइल फोटो-AP)
विदेशी प्रोफेशनल्स को दिया जाने वाला अस्थायी गैर-आप्रवासी वीजा की सभी श्रेणियों में एच-1बी सबसे प्रसिद्ध है. इसके बाद L1 और H-2B वीजा की बारी आती है. आईटी क्षेत्र में सबसे हुनरमंद पेशेवरों को एच-1बी वीजा जारी किया जाता है. इनमें सबसे बड़ी संख्या भारतीय प्रोफेशनल्स की है. हालांकि, विदेशी प्रोफेशनल्स को H-1B और अन्य वर्क वीजा मुहैया कराने के लिए अमेरिकी प्रशासन की आलोचना भी होती रही है लेकिन अमेरिका सस्ते श्रम के लिए इसकी अनुमति देता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि सबसे हुनरमंद आईटी प्रोफेशनल्स भारत और चीन जैसे देशों के हैं. इनकी कार्य कुशलता की वजह से अमेरिकी कंपनियों को काफी फायदा होता है. (फाइल फोटो)
ग्लोबल आईटी कंपनियों और दिग्गजों ने मसलन अल्फाबेट, गूगल इंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुंदर पिचाई, टेस्ला के सीईओ एलन मुस्क ने पिछले साल तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वर्क वीजा पर रोक लगाने के फैसले की निंदा की थी. इन दिग्गजों का कहना था कि एच-1 वीजा अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए हमेशा फायदे वाला रहा है. सुंदर पिचाई का कहना था विदेशी प्रोफेशनल्स ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को न सिर्फ कामयाब बनाया है बल्कि अमेरिका को टेक्नोलॉजी के क्षेत्र का भी ग्लोबल लीडर बनाया है, और गूगल उसका एक उदाहरण है. (फाइल फोटो-AP)
जो बाइडेन के अमेरिकी राष्ट्रपति पद की कमान संभालने के बाद से ही आईटी इंडस्ट्री के दिग्गज इसकी गुजारिश करते रहे हैं कि पूर्व के ट्रंप प्रशासन के फैसले को वापस लिया जाए और नए हुनरमंद पेशेवरों को हायर करने और उन्हें अमेरिका में एंट्री की इजाजत दी जाए. डोनाल्ड ट्रंप के आदेश की समाप्ति का मतलब यह भी होगा कि विभिन्न देशों में मौजूद सभी अमेरिकी राजनयिक मिशन अब नए श्रमिक वीजा जारी कर सकेंगे. इससे अमेरिका स्थित आईटी कंपनियां भी विदेशी प्रतिभाशाली पेशेवरों को फिर से काम पर रखना शुरू कर सकेंगी. (फाइल फोटो-PTI)
अमेरिका हर साल 85 हजार H-1B जारी करता है. इनमें 65 हजार उन प्रोफेशनल्स को यह वीजा जारी किया जाता है जो सबसे अधिक हुनरमंद विदेशी होते हैं, जबकि बाकी 20 वीजा उच्च कुशल विदेशी कामगारों को आवंटित किए जाते हैं जिनके पास अमेरिकी विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा या मास्टर्स की डिग्री होती है. (फाइल फोटो-PTI)
आम तौर पर एच-1बी वीजा एक शख्स के लिए तीन साल तक के लिए मंजूर किया जाता है, लेकिन कई वीजा धारक अपने अमेरिकी प्रवास को बढ़ाने के लिए कंपनियां बदल देते हैं. भारतीय और वैश्विक दोनों आईटी कंपनियां H-1B वीजा के इस पूल से ही प्रोफेशनल्स को नियुक्त करती हैं जो अमेरिका में पहले से ही मौजूद हैं. इससे इन कंपनियों पर प्रक्रिया को लेकर आने वाला खर्च कम हो जाता है.(फाइल फोटो)
भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिकी H-1B वीजा व्यवस्था की सबसे बड़ी लाभार्थियों में से रही हैं, और 1990 के बाद से हरेक साल जारी किए जाने वाले वीजा का एक बड़ा हिस्सा इनके खाते में ही आता है. हालांकि, अधिकांश भारतीय कंपनियों ने H-1B और L-1 जैसे वर्क वीजा पर अपनी निर्भरता कम कर दी है, लेकिन फिर भी ये वीजा भारतीय प्रोफेशनल्स के बीच बहुत लोकप्रिय है. (फाइल फोटो)