इजरायल का सहयोगी अमेरिका यूनाइडेट नेशन सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में चीन के बाद अब फ्रांस को झटका देने की तैयारी में है. अमेरिका ने कहा है कि वह सिक्योरिटी काउंसिल में फ्रांस के उस प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगा, जिसमें इजरायल और फिलिस्तीनियों में सीजफायर की वकालत की गई है.
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असल में, संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत ने बताया कि फ्रांस, इजरायल और फिलिस्तीनी चरमपंथियों के बीच सीजफायर के लिए सिक्योरिटी काउंसिल से प्रस्ताव पारित करने का आग्रह कर रहा है. सिक्योरिटी काउंसिल के मौजूदा अध्यक्ष झांग जून के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस के राजदूत निकोलस डे रिवियरे ने इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के तीसरे दौर में परिषद को सूचित किया कि उनकी तरफ से एक प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है.
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अमेरिका अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बरकरार रखने वाले संयुक्त राष्ट्र के सबसे शक्तिशाली निकाय सिक्योरिटी काउंसिल को हिंसा रोकने का आह्वान करने वाला प्रेस बयान जारी करने से तीन दफा रोक चुका है. अमेरिका की दलील है कि यह इजरायल और हमास के बीच खूनी संघर्ष को समाप्त करने के कूटनीतिक प्रयासों में मददगार नहीं होगा. ऐसे किसी भी प्रस्ताव से तनाव को कम करने की कोशिश को धक्का लग सकता है.
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बताया जा रहा है कि सिक्योरिटी काउंसिल के 14 अन्य सदस्यों ने चीन, ट्यूनीशिया और नॉर्वे की तरफ से प्रस्तावित बयान का समर्थन किया है. लेकिन सिक्योरिटी काउंसिल प्रेस और अध्यक्ष की ओर से जारी बयानों को सभी 15 सदस्यों की मंजूरी की जरूरत होती है. हालांकि, कानूनी रूप से बाध्य प्रस्तावों के लिए मंजूरी जरूरी नहीं है. इनके लिए पक्ष में नौ मतों की और स्थायी सदस्य द्वारा वीटो न किए जाने की जरूरत होती है. इससे अमेरिका सीजफायर के आह्वान के पक्ष में या इसे टालने अथवा वीटो करने की स्थिति में है.
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बहरहाल, एक समाचार एजेंसी के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के एक प्रवक्ता ने बताया कि बाइडन प्रशासन इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच गतिरोध को लेकर पूरी तरह से स्पष्ट है. अमेरिका का फोकस हिंसा खत्म करने के लिए जारी राजनयिक कोशिशों पर है. ऐसे में अमेरिका सिक्योरिटी काउंसिल में किसी भी तरह के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगा. अमेरिका का कहना है कि अगर ऐसा करते हैं तो उसकी कोशिश बेपटरी हो सकती है.
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अमेरिकी प्रवक्ता की इस टिप्पणी से पता चलता है कि अमेरिका यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल में फ्रांस के प्रस्ताव के खिलाफ वीटो के लिए तैयार है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल-सीसी की इजरायल-फिलस्तीनी संकट पर सीजफायर के प्रस्ताव को लेकर जॉर्डन के सुल्तान अब्दुल्लाह द्वितीय से सहमति बनी थी.
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मिस्र के राष्ट्रपति अफ्रीका के मामलों को लेकर आयोजित पेरिस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए फ्रांस गए हुए हैं. फ्रांस और मिस्र के फिलिस्तीन-इजरायल में सीजफायर के प्रस्ताव के संबंध में बयान जारी किया गया था.
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बताते चलें कि सिक्योरिटी काउंसिल के स्थायी सदस्य अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन हैं. किसी भी प्रस्ताव को पारित करने के लिए पांचों का राजी होना जरूरी है. यदि एक भी सदस्य देश राजी नहीं है तो वो अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर प्रस्ताव को रोक देता है.
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बहरहाल, बताया जा रहा है कि फ्रांस के प्रस्ताव को लेकर अमेरिका पर दबाव है. फ्रांस भी अमेरिका का करीब का दोस्त है. फ्रांस ने सामान्य प्रस्ताव पेश किया है, जिसमें दुश्मनी रोकने और मानवीय राहत व बचाव मुहैया कराने की बात कही गई है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह कुरैशी ने भी संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष पर साझा बयान जारी ना हो पाने को लेकर निराशा जाहिर की है. कुरैशी ने कहा कि वीटो करने वाले देशों को जनसमर्थन के दबाव में एक बार फिर से अपने फैसले पर विचार करना पड़ेगा.
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