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अमेरिका के इस कदम से भारत हुआ नाराज, बताया समझ से परे

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 21 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 10:21 AM IST
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अमेरिका की तरफ से अपनी मुद्रा को निगरानी सूची में डाले जाने को लेकर भारत ने हैरानी जाहिर की है. भारत का कहना है कि उसे करेंसी मैनिपुलेटर्स की श्रेणी में रखे जाने का तर्क समझ में नहीं आया. (फोटो-India Today)

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भारत ने अमेरिका के वित्त विभाग की तरफ देश को मुद्रा व्यवहार में छेड़छाड़ करने वालों की मॉनिटरिंग लिस्ट में डालने के आधार को खारिज कर दिया है. भारत ने मंगलवार को कहा कि विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में केंद्रीय बैंक की गतिविधियां संतुलित हैं और यह विदेशी मुद्रा भंडार का संग्रह नहीं कर रहा. (फोटो-AP)

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भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि करेंसी मैनिपुलेटर्स की श्रेणी में भारत को डाले जाने के अमेरिकी कदम में कोई तर्क नजर नहीं आ रहा है. (फोटो-Getty Images)

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अमेरिका ने भारत ​सहित जिन दस देशों को इस सूची में डाला है. वे सभी इसके बड़े व्यापारिक साझेदार हैं. इस निगरानी सूची में भारत, चीन, ताइवान के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, इटली, सिंगापुर, थाइलैंड और मलेशिया शामिल हैं. अमेरिका ने वियतनाम और स्विट्जरलैंड को पहले ही करेंसी मैनिपुलेटर्स की श्रेणी में रखा है. (फोटो-Getty Images)

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रॉयटर्स के मुताबिक, भारत के वाणिज्य सचिव अनूप वाधवान ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, 'इसके पीछे का कोई तर्क मुझे नहीं समझ आया.' उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक एक ऐसी नीति का पालन कर रहा है जो बाजार की ताकतों के आधार पर मुद्रा के आदान-प्रदान की अनुमति देता है.

(फोटो-Getty Images)

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असल में, पिछले सप्ताह अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने भारत ​सहित 10 अन्य देशों को करेंसी मैनिपुलेटर्स की श्रेणी में डाल दिया. अमेरिका ने वियतनाम और स्विट्जरलैंड को पहले ही करेंसी मैनिपुलेटर्स की श्रेणी में रखा है. इसमें कहा गया है कि इन देशों की करेंसी पर कड़ी नजर रखे जाने की जरूरत है. (फोटो-Getty Images)

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बहरहाल, अनूप वाधवान ने कहा कि अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष वित्त वर्ष 2020/21 में लगभग 5 बिलियन डॉलर बढ़ गया था जो 31 मार्च को समाप्त हो गया. पिछले साल भारत का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार अधिशेष कुल 24 बिलियन डॉलर का रहा. साथ ही 8 बिलियन डॉलर के सेवा व्यापार अधिशेष भी रहा. (फोटो-Getty Images)

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महामारी की शुरुआत के बाद से भारत को सोमवार को दूसरी बार इस निगरानी सूची में डाला गया है. केंद्रीय बैंक द्वारा डॉलर की खरीद जीडीपी के पांच प्रतिशत से अधिक रहने को इसकी वजह बताया गया है. (फोटो-Getty Images)

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अमेरिकी वित्त विभाग ने कहा है कि यह सीमा दो प्रतिशत रहनी चाहिए. वाणिज्य सचिव अनूप वधावन ने कहा कि इस तरह की निगरानी सूचियां हाल में बननी शुरू हुई हैं. यह केंद्रीय बैंक के नीतिगत क्षेत्र में हस्तक्षेप है. उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से मुझे इसके पीछे तार्किक या आर्थिक तर्क समझ नहीं आता. (फोटो-Getty Images)

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अनूप वधावन ने कहा कि भारत का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 500 से 600 अरब डॉलर के बीच स्थिर है. भारत चीन की तरह विदेशी मुद्रा का संग्रह नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा, मेरे विचार में यह केंद्रीय बैंक का पूरी तरह वैध परिचालन है. मुद्रा को स्थिरता प्रदान करना केंद्रीय बैंक का काम होता है. इसी वजह से केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा खरीदता और बेचता है. हमारा कुल विदेशी मुद्रा भंडार काफी स्थिर है. 

(फोटो-Getty Images)

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भारतीय अधिकारी ने कहा कि हम विदेशी मुद्रा भंडार जमा नहीं कर रहे हैं. हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं. हमारा भंडार स्थिर है. ऐसे में मेरा मानना है कि विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में केंद्रीय बैंक की गतिविधियां पूरी तरह संतुलित और वैध हैं. (फोटो-Getty Images)

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क्या है करेंसी मैनिपुलेटर्स की श्रेणी?

अमेरिकी वित्त विभाग की तरफ से व्यापारिक साझेदार देशों की एक सूची बनाई जाती है जिसमें ऐसे भागीदार देशों की मुद्रा के व्यवहार और उनकी वृहद आर्थिक नीतियों पर नजदीकी से नज़र रखी जाती है. यह अमेरिका के 20 सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों के मुद्रा व्यवहारों की समीक्षा करता है.

(फोटो-Getty Images)

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भारत के साथ सूची में अन्य 10 देश- चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, आयरलैंड, इटली, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और मैक्सिको को भी इस सूची में रखा गया है. दिसंबर 2020 की रिपोर्ट में भारत इस सूची में था. 2019 में अमेरिका ने भारत को अपनी करेंसी मैनिपुलेटर्स वॉच लिस्ट में प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की सूची से हटा दिया था.

(फोटो-Getty Images)

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यह अमेरिकी सरकार द्वारा उन देशों का एक वर्गीकरण है, जिनके बारे में वो यह महसूस करती है कि वे देश डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा का जान-बूझकर अवमूल्यन करके अनुचित मुद्रा व्यवहारों में शामिल हैं. यानी किसी देश द्वारा दूसरे देश की तुलना में अनुचित लाभ हासिल करने के लिए अपनी मुद्रा के मूल्य को कृत्रिम रूप से कम किया जाना. इसका कारण यह है कि अवमूल्यन के कारण उस देश से होने वाले निर्यात की लागत कम हो जाएगी और इसके चलते कृत्रिम रूप से व्यापार घाटे में कमी नजर आएगी. (फोटो-Getty Images)

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