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म्यांमार: तख्तापलट के बाद सेना ने अब तक क्या-क्या किया, कैसे हैं हालात?

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 12:56 AM IST
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म्यांमार में तख्तापलट के एक दिन बीत जाने के बाद भी अब तक सेना ने नेता आंग सान सू के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. म्यांमार की सेना ने सोमवार सुबह नोबल पुरस्कार विजेता और नेता आंग सान सू की को गिरफ्तार कर लिया था और सत्ता की कमान अपने हाथों में ले ली थी. सेना ने म्यांमार में एक साल के लिए इमरजेंसी का ऐलान किया है और इस दौरान सेना प्रमुख ही विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की जिम्मेदारी संभालेंगे.

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आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) ने एक बयान जारी कर सेना से नवंबर महीने में हुए चुनाव के नतीजों का सम्मान करने और आंग सान सू की समेत गिरफ्तार नेताओं को तुरंत रिहा करने की अपील की है. पार्टी ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किए बयान में कहा, म्यांमार के कमांडर-इन-चीफ संविधान के खिलाफ जाकर सत्ता पर काबिज हो रहे हैं और जनता की शक्ति को नजरअंदाज कर रहे हैं. बता दें कि पिछले साल नवंबर महीने में हुए चुनाव में एनएलडी को 80 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. सेना ने चुनाव में धांधली होने का आरोप लगाते हुए तख्तापलट को अंजाम दिया है.

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म्यांमार की नेता आंग सान सू की रिहाई की मांग तेज हो गई है. सोमवार तड़के गिरफ्तारी के बाद से अभी तक उन्हें एक बार भी नहीं देखा गया है और ना ही उनके बारे में कोई आधिकारिक जानकारी सामने आई है. एनएलडी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन मिंत को हाउस अरेस्ट किया गया है.

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एक सांसद ने नाम ना बताने की शर्त पर न्यूज एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, हमें कहा गया है कि परेशान होने की जरूरत नहीं है लेकिन हमें चिंता हो रही है. अगर हम घर में आंग सान सू की के मौजूद होने के सबूत के तौर पर उनकी कुछ तस्वीरें देख लेते तो हमें सुकून मिल जाता.

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सू की ने साल 1989 से लेकर साल 2010 तक करीब 15 साल जेल में ही बिताए हैं. आंग सान सू की को म्यांमार का राष्ट्रपति बनने से रोक दिया गया था क्योंकि उनका विदेशी नागरिक से एक बच्चा है. हालांकि, साल 2015 में हुए चुनाव में जीत हासिल करने के बाद से उन्हें ही म्यांमार का वास्तविक नेता माना जाता है. आंग सान सू की ने अपने समर्थकों से अपील की है कि वे इस तख्तापलट का जमकर विरोध करें. हालांकि, अभी तक किसी प्रदर्शन की खबर नहीं है, बस डॉक्टर्स समेत कुछ पेशेवरों ने असहयोग का ऐलान किया है. 

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म्यांमार की सेना ने सैकड़ों सांसदों को भी उनके सरकारी आवास में नजरबंद कर दिया है. गिरफ्तार हुए एक सांसद ने न्यूज एजेंसी एपी से बातचीत में बताया कि उन्हें और 400 अन्य सांसदों को उनके घरों में कैद कर लिया गया है. हालांकि, वे फोन पर अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों और बाकी नेताओं से बात कर सकते हैं लेकिन उन्हें नेपितॉ स्थित हाउसिंग कॉम्प्लेक्स छोड़ने की इजाजत नहीं है. सांसद ने बताया कि आंग सान सू की को उनके साथ नहीं रखा गया है.

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सांसद ने नाम ना छापने की शर्त पर एपी न्यूज एजेंसी से बताया कि कॉम्प्लैक्स के अंदर और बाहर भारी संख्या में सैनिक मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि सू की पार्टी के सदस्यों, नेताओं और अन्य छोटी-छोटी पार्टियों के नेताओं ने पूरी रात इस डर में गुजारी कि उन्हें कहीं और ले जाया जा सकता है. सांसद ने कहा, हम रात भर जागते रहे और पूरी तरह से अलर्ट रहे.

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सोमवार की सुबह म्यांमार की संसद का पहला सत्र शुरू होने वाला था इसलिए सभी सांसद राजधानी में इकठ्ठा हुए थे. हालांकि, पिछले कुछ दिनों से इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि म्यांमार में सेना तख्तापलट को अंजाम दे सकती है. म्यांमार की सेना ने तख्तापलट को सही ठहराते हुए कहा कि नवंबर के महीने में हुए चुनाव में धांधली के सेना के दावे को लेकर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया इसलिए सत्ता पर कब्जा करना जरूरी हो गया था.

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म्यांमार की पुलिस ने एनएलडी के मंडालय कार्यालय का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए उसे बंद कर दिया है. इमारत में मौजूद पार्टी सदस्यों को 1 फरवरी की रात को बलपूर्वक बाहर निकाल दिया गया. सूत्रों के मुताबिक, पूरे इलाके में आवागमन पर पाबंदी लगा दी गई और दफ्तर में छानबीन भी की गई. दूसरी तरफ, सोमवार की रात को सेना प्रमुख मिन लेंग ने नए कैबिनेट मंत्रियों के नामों का भी ऐलान किया. 11 सदस्यीय कैबिनेट में कई जनरल और पूर्व जनरल हैं.

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तख्तापलट होने के बाद म्यांमार के महानगर यंगून में मंगलवार को सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा. हालांकि, बाजार खुले हुए थे और बसें-ट्रेनें भी चल रही थीं. सुरक्षा बलों की भारी तैनाती ना होने के बावजूद भी सब कुछ असामान्य नजर आया. सेना के डर से लोग अपने घरों से आंग सान सू की की पार्टी के लाल झंडों को अपने घरों से हटा रहे हैं.

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म्यांमार में दशकों तक सैन्य शासन रहा है. साल 2011 में जनआंदोलन और अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से आंग सान सू के नेतृत्व में लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार आई लेकिन सत्ता में सेना का वर्चस्व बना रहा. संविधान में सेना के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित की गई हैं और तीन सबसे अहम मंत्रालयों में नियुक्ति का अधिकार सेना के ही पास है. आंग सान सू की शुरू के सालों में सेना की मुखर आलोचक थीं लेकिन बाद में वो उसी सेना का बचाव करती नजर आई. राजनेता बनने के बाद उनके सामने तमाम जनरलों के साथ काम करने की मजबूरी थी.

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लोकतंत्र के लिए लड़ाई को लेकर नोबल पुरस्कार जीतने वाली सू की छवि को पिछले कुछ सालों में काफी नुकसान पहुंचा. आंग सान सू की आलोचना तब सबसे ज्यादा हुई जब उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सेना की कार्रवाई का बचाव किया. अमेरिका और अन्य संगठनों ने रोहिंग्याओं के खिलाफ म्यांमार की सेना की कार्रवाई को जनसंहार की संज्ञा दी थी.

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