नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के संसद भंग कराने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दायर की गई हैं. ओली के विरोधियों ने संसद भंग कराने के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है. हालांकि, सोमवार को नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने राष्ट्र के नाम संबोधन दिया और अपने फैसले का बचाव करते नजर आए. ओली ने सत्तारूढ़ पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में फूट का हवाला देते हुए कहा कि उनके पास फिर से चुनाव कराने और बहुमत हासिल करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था. पार्टी के भीतर विवाद इतना बढ़ चुका था कि उनकी सरकार ठीक तरह से काम नहीं कर पा रही थी. ओली ने अपने भाषण में अपने बचाव के लिए एक बार फिर से भारत विरोधी राग का सहारा लिया.
(फोटो-नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली/गेटी इमेजेस)
ओली ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में नेपाल का नया नक्शा प्रकाशित हुआ. ओली ने कहा कि उनकी सरकार ने लोगों के हित में कई काम किए और राष्ट्रवाद के लिए मजबूती से खड़ी हुई, भारत के साथ सीमा वार्ता शुरू की और चीन के साथ व्यापार और यातायात समझौते को अमल कराने के लिए तेजी से काम किया.
ओली ने कहा कि नेपाल का नया नक्शा पास करने के लिए उनको साल 2016 की तरह ही सत्ता से बाहर निकालने की कोशिशें हुईं. साल 2015 में भारत-नेपाल सीमा पर अघोषित आर्थिक नाकेबंदी के एक साल बाद ओली की सरकार गिर गई थी. ओली ने कहा कि किरदार वही हैं, हालात भी वही हैं, बस संदर्भ बदल गया है. ओली ने कहा, क्या इससे ये साबित नहीं होता है कि हमारे ही कुछ नेता देश को धीरे-धीरे अस्थिरता की तरफ ढकेलने की कोशिश कर रहे हैं. ओली आरोप लगाते रहे हैं कि नेपाल का नया नक्शा पास करने की वजह से काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास और दिल्ली से उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाने की साजिश रची जा रही है.
नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर ही सत्ता को लेकर घमासान मचा हुआ है. पार्टी के वरिष्ठ नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड और उनके समर्थक ओली पर तानाशाही ढंग से सरकार चलाने का आरोप लगाते हुए उनसे इस्तीफे की मांग कर रहे थे. प्रचंड ओली के खिलाफ़ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी तैयारी कर रहे थे. लेकिन ओली ने अचानक ही राष्ट्रपति से सिफारिश करके संसद भंग करा दी. ओली ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि उन्हें अपने खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना का पता चल गया था जिसके बाद वो संसद भंग करने के लिए मजबूर हो गए. ओली ने कहा, हमारी चुनी हुई सरकार को किनारे किया जा रहा था और हमें सुचारू रूप से काम नहीं करने दिया जा रहा था इसीलिए मैंने संसद को भंग कर दिया.
ओली ने कहा कि उनकी सरकार ने संप्रुभता और क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के मामले में बेहतरीन काम किया. नेपाल के प्रधानमंत्री ने कहा, मैंने जब कालापानी और लिपुलेख को शामिल करते हुए देश का नया नक्शा जारी किया तो मुझे राष्ट्र का गर्व बढ़ाने वाले काम के लिए परेशान किया गया.
नेपाल ने भारत के तीन इलाकों कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल करते हुए नया नक्शा जारी किया था जिसे लेकर भारत ने कड़ी आपत्ति जाहिर की थी. भारत ने नेपाल के इस कदम को कृत्रिम रूप से क्षेत्रीय विस्तार करने की कोशिश करार दिया था. नेपाल इन तीनों इलाकों पर अपना दावा पेश करता है. जून महीने में ओली ने दावा किया था कि देश का नया नक्शा जारी करने के कारण उनकी सरकार को गिराने की कोशिशें की जा रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता भद्रकाली पोखरेल ने कहा कि संसद भंग करने के खिलाफ तीन याचिकाएं दायर की गई हैं. याचिकाकर्ता दिनेश त्रिपाठी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, संविधान के तहत, प्रधानमंत्री के पास संसद भंग करने का कोई औचित्य नहीं था. ये पूरी तरह से असंवैधानिक है. मैं सुप्रीम कोर्ट से इस पर स्टे ऑर्डर लाने की कोशिश करूंगा. नेपाल के तमाम राजनीतिक विश्लेषक ओली के संसद भंग करने के फैसले की आलोचना कर रहे हैं. नेपाल के जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक श्याम श्रेष्ठ कहते हैं, उन्होंने अपने संबोधन में देश से झूठ बोला. ओली देश में अस्थिरता की मुख्य वजह हैं और जिन हालात में देश है, उसके जिम्मेदार भी वो खुद ही हैं. ओली के पास देश चलाने का शानदार मौका था लेकिन वो असफल रहे.
(फोटो: एनसीपी पार्टी के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड/गेटी इमेजेस)
सोमवार को दिए संबोधन के दौरान, ओली ने युवाओं और पार्टी नेताओं से चुनावी प्रक्रिया में बढ़-चढ़कर भाग लेने की अपील की. उन्होंने पार्टी के नेताओं से अतीत की कड़वाहट भुलाकर पार्टी की एकता मजबूत करने के लिए चुनाव में हिस्सा लेने के लिए भी कहा. नेपाल की विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस के सांसद और कानूनी मामलों के जानकार राधेश्याम अधिकारी ने कहा, प्रधानमंत्री का ये कदम कई वजहों से गलत है. पहली बात, ओली ने महामारी के बीच चुनावों का ऐलान कर दिया. दूसरी बात, जब कई पार्टियां विरोध-प्रदर्शन कर रही हैं तो क्या चुनाव कराना संभव है?
राजनीतिक विश्लेषक अधिकारी को भी ये भी शक है कि चुनाव निर्धारित वक्त पर कराए जाएंगे. उन्होंने कहा कि संसद भंग होने के बाद ओली को इस्तीफा दे देना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. ऐसा लगता है कि उन्होंने सिर्फ अविश्वास प्रस्ताव से बचने के लिए संसद भंग की. एक सवाल ये भी है कि ओली सरकार का इस वक्त दर्जा क्या है? क्या वो केयरटेकर प्राइम मिनिस्टर हैं? नेपाल के इतिहास में जितने भी प्रधानमंत्रियों ने संसद भंग की, उन्होंने चुनावों का ऐलान होने के तुरंत बाद इस्तीफा सौंपा. लेकिन ओली ने ऐसा नहीं किया है. मुझे तो इस बात को लेकर शक है कि वो असलियत में चुनाव कराना भी चाहते हैं या नहीं.
ओली ने संसद को भंग कराने और चुनाव कराने के अनुमोदन पर राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने मुहर लगाई है. राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी की भी भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं. भंडारी ने संसद भंग करने के फैसले को उचित ठहराते हुए नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76 और 85 का हवाला दिया. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संसद में ऐसे प्रचलन का जिक्र किया.
नेपाल के पूर्व वित्त मंत्री और स्थायी संसदीय समिति के सदस्य सुरेंद्र पांडे ने कहा, ओली का कदम स्पष्ट रूप से असंवैधानिक है लेकिन राष्ट्रपति का अंतरराष्ट्रीय नियमों का उदाहरण देना और भी गंभीर बात है. नेपाल की अपनी पृष्ठभूमि है, अपनी राजनीतिक परिस्थितियां हैं, अगर हम दूसरे देशों की नकल करने लगे तो ये कहीं से भी हमारे देश के लिए सही नहीं होगा.