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ऑपरेशन थंडरबोल्ट: जब इज़रायल ने सबसे खतरनाक शासक की जमीन से अपने नागरिकों को बचाया

मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 11:08 AM IST
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इज़रायल दुनियाभर में अपनी तकनीक और बेखौफ सेना के लिए मशहूर है. अक्सर कई किस्से ऐसे सामने आते रहते हैं, जो बताते हैं कि इज़रायल अपने दुश्मन का खात्मा करने के लिए कुछ भी कर सकता है. भारत में भी इज़रायल के ऐसे किस्से काफी मशहूर रहे हैं. इन्हीं में से एक था ‘ऑपरेशन एन्तेबे’, जिसे ‘ऑपरेशन थंडरबोल्ट’ भी कहा गया. 4 जुलाई 1976 को हुए इस ऑपरेशन को इज़रायली इतिहास के सबसे कठिन ऑपरेशन में से एक कहा गया है, जब अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए इज़रायली लड़ाकू ‘सबसे खूंखार शासक’ के देश में चले गए और अपने लोगों को बचा लिया. वो किस्सा क्या था और कैसे इज़रायल ने ये कारनामा किया था, जानिए... 

( फाइल फोटो: बंदी बनाए गए इजरायली नागरिक) 

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ये एक सामान्य दिन था, तारीख थी 27 जून 1976. जब तेल अवीव से पेरिस के लिए एअर फ्रांस के एक विमान ने उड़ान भरी. इस विमान में करीब 248 यात्री मौजूद थे, इसके अलावा करीब एक दर्जन क्रू मेंबर थे. विमान अपने तय रूट के मुताबिक एथेंस में रुका, क्योंकि यहां पर उसे तेल भरवाना था. यहां से तेल भरवाने के बाद विमान उड़ा, लेकिन इस उड़ान के कुछ देर बाद ही विमान में चार लोग अचानक से खड़े हो गए. सभी ने बंदूकें तान दी, एक व्यक्ति ने पायलट के पास पहुंचकर विमान को अपने कब्जे में लेने का ऐलान कर दिया. 

( सांकेतिक फोटो: एअर फ्रांस का था विमान)

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जिन चार आतंकवादियों ने इस फ्लाइट को कब्जे में लिया था, उनमें से दो जर्मन थे और अन्य दो फिलीस्तीनी थे. जर्मनी वाले आतंकी रिवॉल्यूशनरी सेल्स के सदस्य थे, जबकि फिलीस्तीन वाले पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन के सदस्य थे, जिनका मकसद फिलीस्तीन को अपनी पहचान दिलाना था. खैर, विमान जब आगे बढ़ने लगा तब चारों आतंकियों में से एक महिला ने तुरंत एक ग्रेनेड निकाला और सभी लोगों को धमकी दी कि वो उनका सहयोग करें, वरना तुरंत फ्लाइट को उड़ा दिया जाएगा. 

(फोटो: युगांडा का वो एयरपोर्ट जहां बंदियों को रखा गया)

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विमान में हलचल मच चुकी थी, इसी बीच एक आतंकी ने पायलट के पास पहुंचकर निर्देश दिया कि विमान को लीबिया के शहर बेनगाजी में ले जाए. यहां पर विमान को करीब सात से आठ घंटे के लिए रोका गया था. इस सबके बीच ये बात फैल चुकी थी, शुरुआत में ये दिक्कत सिर्फ फ्रांस की लग रही थी. लेकिन जब मालूम पड़ा कि विमान में मौजूद यात्रियों में करीब 100 यात्री यहूदी हैं, जिनमें से 90 फीसदी इज़रायल के नागरिक हैं, तब इज़रायल इस मामले में एक्टिव हो गया. 

(फाइल फोटो: एन्तेबे एयरपोर्ट)

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इस सबके बीच हाईजैकर्स ने अपनी डिमांड हर किसी के सामने रखी. उन्होंने करीब 50 से अधिक फिलीस्तीनियों की रिहाई की मांग की, जो इज़रायल और अन्य जेलों में बंद थे. कहा गया कि अगर इन सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया, तब सभी यात्रियों को सुरक्षित छोड़ दिया जाएगा. हाईजैकर्स की डिमांड के बाद इज़रायल और फ्रांस की एजेंसियां एक्टिव हो गईं. और इस बीच हाईजैकर्स ने युगांडा के शासक से संपर्क साधा, तब युगांडा की कमान इदी अमीन के हाथ में थी. जो अपने खूंखार व्यवहार के कारण मशहूर था, किस्से थे कि वह इंसान का मांस खाता था, जो हिन्दुस्तानियों का दुश्मन था. इदी अमीन ने अपने सहानुभूति हाईजैकर्स के साथ जताई और विमान को युगांडा के एन्तेबे ले आया गया. 

(फाइल फोटो: बंदियों से मिलता इदी अमीन)

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अब जब हाईजैकर्स की डिमांड सामने आ गई थी, तब इज़रायल ने अपने नागरिकों को बचाने के लिए प्लान बनाना शुरू किया. इज़रायल में हंगामा होने लगा और लोगों की मांग थी कि आतंकियों से बात कर लोगों को छुड़ा लिया जाए. लेकिन इज़रायल की नीति रही थी कि वो कभी आतंकियों से बात नहीं करता है, यानी इस पार या उस पार. उस वक्त इज़रायल के प्रधानमंत्री रबीन थे, जब कैबिनेट में मंथन शुरू हुआ कि इन्हें कैसे बचाया जाए. क्योंकि इज़रायल और एन्तेबे की दूरी काफी ज्यादा थी, ऐसे में शुरुआत में कोई बचाव ऑपरेशन चलाना मुश्किल लग रहा था. तब पता लगा कि युगांडा के इदी अमीन को नोबेल शांति पुरस्कार की ख्वाहिश थी, इज़रायल ने ऑफर दिया कि सभी यात्रियों को छोड़ दें तो ये सम्मान दिलवा सकते हैं. 

(फाइल फोटो: एन्तेबे एयरपोर्ट)

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लेकिन इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया, उसके बाद इज़रायल ने अन्य ऑप्शन पर काम शुरू कर दिया. इस सबके बीच इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद एक्टिव हो चुकी थी और हाईजैकर्स से जुड़ी सभी डिटेल्स इकट्ठा की जा रही थी और किसी बचाव ऑपरेशन को लेकर प्लानिंग की जा रही थी. लगातार दिन बीत रहे थे और कई तरह के प्लान बनाए जा रहे थे. इस बीच हाईजैकर्स ने एक बड़ा कदम उठाया, उन्होंने सभी बंदियों को दो भागों में बांट दिया. यानी यहूदियों को अलग किया और बाकी सबको अलग कर दिया. इसके बाद गैर-यहूदियों को छोड़ना भी शुरू कर दिया. इससे साफ हो गया कि हाईजैकर्स का निशाना सिर्फ और सिर्फ इज़रायल था. ऐसे में अब जो भी करना था, वो तुरंत ही करना था. 

(फाइल फोटो: बंदी बनाए गए इजरायली नागरिक)

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पहले सोचा गया कि पानी के रास्ते कुछ जवान भेजे जाएं, जो एन्तेबे पहुंचकर बचाव ऑपरेशन चलाएं. लेकिन ये सफर लंबा था, ऐसे में इसे रद्द कर दिया गया. इसके बाद मोसाद और इज़रायली वायुसेना ने मिलकर प्लान बनाया, करीब 200 जवानों की टीम को तैयार किया गया और फाइनली यही तय हुआ कि कुछ विमान में ये सभी जवान एन्तेबे पहुंचेंगे और अपने नागरिकों को बचाने का काम करेंगे. जब ये प्लानिंग हो रही थी, तब मोसाद को एक खास जानकारी मिली. पता चला कि इदी अमीन, कुछ दिन के लिए अपने देश से बाहर जा रहा है. बस इज़रायल के लिए यही मौका था, तय हुआ कि 3 और 4 जुलाई को ये ऑपरेशन किया जाएगा.  

(फाइल फोटो: इजरायली सेना के तत्कालीन प्रमुख)

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इज़रायल ने हाईजैकर्स से बात करके रिहाई की डेडलाइन को चार जुलाई तक करवाने के लिए मना लिया. 3 जुलाई को इज़रायली कैबिनेट की मीटिंग हुई, ऑपरेशन एन्तेबे यानी ऑपरेशन थंडरबोल्ट को मंजूरी दी गई. इज़रायल वायुसेना के विमानों ने उड़ान भरी और वो लाल सागर से होते हुए युगांडा के लिए रवाना हुए. रास्ते में दो बड़ी चुनौतियां थीं, पहले दुश्मन के रडार में आने से बचना और इतने लंबे सफर के लिए विमान में तेल भरना. समंदर के ऊपर कम ऊंचाई पर उड़ा गया, जिससे रडार से बचा गया और हवा में ही अन्य विमानों की मदद से मिशन वाले विमान में तेल भरवाया गया. 4 हजार किमी. के सफर के बाद इज़रायली सैनिक एन्तेबे पहुंचे, अंधेरा हो चुका था जैसे ही सैनिक उस एयरपोर्ट पर पहुंचे, जहां बंदियों को रखा गया था युगांडा की सेना ने उनपर फायरिंग शुरू कर दी. 

(फाइल फोटो: ऑपरेशन के दौरान की तस्वीर)

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इज़रायल सैनिकों ने एक कार का इंतजाम किया था जो इदी अमीन की गाड़ी से मिलती-जुलती थी, ताकि युगांडा के सैनिक उनपर हमला ना करें. लेकिन उनका ये प्लान फेल हुआ. ऐसे में अब इज़रायली सैनिकों ने तुरंत ही उस जगह धावा बोल दिया, जहां पर बंदियों को रखा गया था. इज़रायल के लड़ाकूओं ने दुश्मनों को मारना शुरू किया, लोगों को निकालने का बंदोबस्त किया. लड़ाकूओं ने सभी हाईजैकर्स को मार दिया, युगांडा के कई सैनिक भी मारे गए. इजरायली नागरिकों को तुरंत विमान में लाया गया और सभी को बचा लिया गया. इस पूरे मिशन में इजरायल का सिर्फ एक सैनिक मारा गया था, जिसका नाम योनातन नेतन्याहू था. हाल ही में इज़रायल के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले बेंजामिन नेतन्याहू उनके भाई थे. योनातन इज़रायल का हीरो बन गया था, जिसने 30 साल की उम्र में अपनी जान गंवा दी. लेकिन सबसे बड़ी बात ये थी कि इज़रायल ने अपने सभी नागरिकों को बचा लिया. 

(फाइल फोटो: ऑपरेशन थंडरबोल्ट में हिस्सा लेने वाले सैनिकों की एक टीम)

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