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पाकिस्तान के लिए टाइम बम बनी ये समस्या, इमरान खान भी नाकाम

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 5:59 PM IST
pakistan debt
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आधुनिक जमाने के गुलाम जंजीरों में नहीं बल्कि कर्ज में बंधे हुए हैं. यह कहावत पाकिस्तान पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है. पाकिस्तान के अर्थशास्त्री और राजनीतिक टिप्पणीकार डॉ. फारूख सलीम ने लिखा है कि उनका देश कर्ज के टाइम बम पर बैठा हुआ है और यह बम टिक टिक कर रहा है. आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान के हर शख्स पर 2 लाख रुपये का कर्ज चढ़ गया है. (फाइल फोटो)

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पाकिस्तान के अर्थशास्त्री डॉ. फारूख सलीम का कहना है कि 1970 में पाकिस्तान के हर पुरुष, महिला और बच्चा 500 रुपये का कर्जदार था. 2008 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) सत्ता में आई और प्रति व्यक्ति यह कर्ज बढ़कर 36 हजार रुपये पहुंच गया.  (फाइल फोटो-Getty Images)

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पाक ऑब्जर्वबर में लिखे अपने लेख में डॉ. फारूख सलीम ने बताया कि 2013 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) सत्ता में आई और यह प्रति व्यक्ति यह कर्ज बढ़कर 88,000 रुपये हो गया. (फाइल फोटो)

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2018 में पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के अगुवाई वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) सत्ता में आई और 31 महीनों में पाकिस्तान का हर पुरुष, महिला और बच्चे पर 2 लाख रुपये का कर्ज चढ़ गया. जरा सोचिए 51 वर्षों में पाकिस्तान का हर शख्स 500 रुपये से बढ़कर दो लाख रुपये का कर्जदार हो गया. इमरान खान अब पाकिस्तान पर कर्ज को दोष पूर्व की सरकारों के माथे मढ़ रहे हैं और देश को ऋण से उबारने के लिए नए प्रोजेक्ट शुरू करने पर जोर दे रहे हैं. (फाइल फोटो-Getty Images)

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डॉ. फारूख सलीम ने पूछा कि यह कब खत्म होगा? 2005 में राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के शासन काल में 'फिजिकल रेस्पॉस्बिलिटी एंड डेबेट लिमिटेशन एक्ट' पारित किया गया था. इस कानून के तहत दो वित्त वर्ष के भीतर ऋण को जीडीपी के अनुपात में 60 फीसदी तक कम करना था और फिर पांच वित्तीय वर्षों के अंदर इसे जीडीपी का 50 प्रतिशत कम किया जाना था. (फाइल फोटो)

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डॉ. फारूख सलीम का दावा है कि राष्ट्रपति जरदारी (2008-2103) के कार्यकाल में पाकिस्तान का ऋण सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात लगभग 66 प्रतिशत था. प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (2013-2017) के समय अतिरिक्त कर्ज लिया गया और इस ऋण से जीडीपी का अनुपात 73 फीसदी तक बिगड़ गया. (फाइल फोटो-Getty Images)

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प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल (2018-2021) के दौरान पाकिस्तान की कर्ज से स्थिति बद से बदतर हो गई और ऋण जीडीपी के अनुपात में 107 फीसदी तक पहुंच गया है.(फाइल फोटो-Getty Images)

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पाकिस्तानी टिप्पणीकार का कहना है कि निश्चित रूप से 'फिजिकल रेस्पॉस्बिलिटी एंड डेबेट लिमिटेशन एक्ट' अब भी लागू है. इस सबका अंत क्या होगा? कर्ज रूपी यह बम कब फटेगा? राष्ट्रपति जरदारी (2008-2103) के कार्यकाल में एक दिन में 5 अरब रुपये का कर्ज लिया गया. आंकड़े बताते हैं कि वो अपने पांच साल के कार्यकाल में हर दिन कर्ज ले रहे थे. (फाइल फोटो)

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इसी तरह पीएम नवाज शरीफ ने 2013-2017 के दौरान 8 अरब रुपये का कर्ज लिया. आंकड़ों को देखा जाए तो वह भी हर दिन चार साल तक कर्ज लेते रहे. यह सिलसिला प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल में भी जारी रहा और पिछले 31 महीनों से हर दिन 18 अरब रुपये का अतिरिक्त कर्ज लिया जा रहा है. (फाइल फोटो-Getty Images)

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दावों के मुताबिक, राष्ट्रपति जरदारी ने 2008-2013 के दौरान पाकिस्तान का बाहरी कर्ज 50 बिलियन डॉलर से बढ़कर 58 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के समय 2013-2018 के दौरान यह कर्ज 58 बिलियन डॉलर से बढ़कर 93 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. पीएम इमरान खान के समय 2018-2021 के दौरान यह कर्ज 93 बिलियन डॉलर से बढ़कर 115 बिलियन डॉलर पहुंच गया है. (फाइल फोटो-Getty Images)

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सवाल है कि यह कर्ज कहां गया? कौन इस कर्ज को निगल रहा है? इमरान खान सरकार के खुद के आंकड़े बताते हैं कि पिछले करीब तीन सालों में 10 खरब रुपये का बजट घाटा हो गया है.(फाइल फोटो-Getty Images)

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पाकिस्तान को बहुत ऊंची दर पर कर्ज मिलता है. यह आमतौर पर छिपा हुआ होता है मगर प्रभावित करता है. पाकिस्तान कर्ज देने वालों का मोहरा बन चुका है. पाकिस्तान का अपनी सामरिक संपत्ति-खनिज संसाधनों और बंदरगाहों पर नियंत्रण कम हो गया है. पाकिस्तान आसानी से कर्ज लेने के लिए अपने संसाधनों की सौदेबाजी करता है. इसका असर ये होगा कि पाकिस्तान को रणनीतिक रियायतें देने के लिए मजबूर किया जाएगा. पाकिस्तान की यही कर्ज डिप्लोमेसी है..(फाइल फोटो-Getty Images)

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डॉ. फारूख सलीम ने कर्ज के इस दबाव से मुक्त होने का पाकिस्तान को रास्ता भी सुझाया है. उन्होंने पाकिस्तान सरकार को प्रतिस्पर्धी मॉडल तैयार करने का मशविरा दिया है. उनका कहना है कि सरकार को निजीकरण और अपने ढांचे को फिर से तैयार करना होगा. हालांकि, पाकिस्तान की सरकार के लिए ये सब करना इतना आसान नहीं है. (फाइल फोटो-Getty Images)

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