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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के श्रीलंका दौरे ने बढ़ाई भारत की चिंता

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 3:00 PM IST
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के श्रीलंका के हालिया दौरे से भारत की टेंशन बढ़ सकती है. इमरान खान ने अपने दो दिवसीय दौरे में श्रीलंका से चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट ऐंड रोड में शामिल होने की अपील भी की. श्रीलंका में चीन की बढ़ती मौजूदगी से भारत पहले से ही चिंतित है, ऐसे में इमरान खान की ये नई पेशकश और सिरदर्द बढ़ाने वाली है.
 

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श्रीलंका के दो दिवसीय दौरे में इमरान खान ने कहा कि श्रीलंका को भी बेल्ट ऐंड रोड के तहत बन रहे चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) में शामिल हो जाना चाहिए. सीपीईसी में रेलवे, पावर प्लांट्स और हिंद महासागर में ग्वादर बंदरगाह शामिल है. भारत चीन की बेल्ट ऐंड रोड परियोजना का शुरू से विरोध करता रहा है.
 

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इमरान खान ने कहा, मेरे इस दौरे का मकसद श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय संबंधों खासकर व्यापार और आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाना है. ये बेहतर कनेक्टिविटी के जरिए ही होगा. इमरान खान ने आगे कहा कि सीपीईसी ग्वादर बंदरगाह के जरिए श्रीलंका को पश्चिम एशिया के साथ बेहतरीन तरीके से जोड़ने में मदद करेगा.

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भारत के रणनीतिक मामलों के जानकारों का कहना है कि कोलंबो को ग्वादर बंदरगाह के इस्तेमाल करने की पेशकश भारत की सुरक्षा के लिहाज से भी ठीक नहीं है. भारत के थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के डेटा के मुताबिक, श्रीलंका के बंदरगाहों का 70 फीसदी सामान भारत के जरिए ही होकर जाता है. साल 2014 में श्रीलंका ने कोलंबो बंदरगाह पर एक चीनी पनडुब्बी और युद्धपोत को ठहरने की इजाजत दे दी थी जिसे लेकर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी.
 

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भारत के पूर्व राजदूत राजीव भाटिया ने इसे इमरान खान के दौरे की सबसे परेशान करने पहलू करार दिया है. गेटवे हाउस थिंक टैंक के स्कॉलर भाटिया ने कहा, अगर पाकिस्तान और श्रीलंका चीन की छत्रछाया में समुद्री या नौसेना संपर्क बढ़ाने की योजना पर काम कर रहे हैं तो ये वाकई भारत के लिए बहुत परेशानी की बात है. चीन और श्रीलंका के व्यापारिक संबंध की बात करें तो साल 2005 से लेकर 2017 तक दोनों देशों के बीच 3.6 अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार हुआ. चीन ने श्रीलंका में इन्फ्रास्ट्रक्टर के विकास में 15 अरब डॉलर का निवेश किया है. दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग भी मजबूत स्थिति में है.

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हालांकि, अब भी भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और दोनों देशों के बीच इसी अवधि में 4.6 अरब डॉलर से ज्यादा का द्विपक्षीय व्यापार हुआ. सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत और श्रीलंका अहम साझेदार हैं. पिछले साल श्रीलंका में जब गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बने तो उन्होंने 'इंडिया फर्स्ट' की पॉलिसी पर जोर देने की बात कही थी. हालांकि, चीन के कर्ज पर उसकी निर्भरता अब भी कम नहीं हुई है.

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साल 2017 में कर्ज ना चुका पाने की स्थिति में श्रीलंका ने रणनीतिक रूप से बेहद अहम हंबनटोटा बंदरगाह चीनी कंपनी को 99 सालों के लिए लीज पर सौंप दिया था. श्रीलंका ने कोलंबो बंदरगाह पर कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल विकसित करने के लिए भी चीन को अनुमति दी थी. इन सबको लेकर भारत की नाराजगी दूर करने के लिए श्रीलंका की सरकार ने कोलंबो बंदरगाह के ईस्ट टर्मिनल को नई दिल्ली और टोक्यो के साथ विकसित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. लेकिन पिछले महीने ही श्रीलंका ने राष्ट्रीय संपत्तियों में विदेशी निवेश को लेकर हो रहे विरोध का हवाला देते हुए भारत और जापान को दोनों देशों को इससे बाहर कर दिया. भारत ने श्रीलंका के फैसले को लेकर आपत्ति जताई और कहा कि उसे उम्मीद थी कि वह समझौते का सम्मान करेगा. इसके बाद, श्रीलंका ने इसके विकल्प के तौर पर भारत को एक दूसरे टर्मिनल के विकास का प्रस्ताव दिया. ये टर्मिनल भी कोलंबो एयरपोर्ट का ही हिस्सा है और चीन के टर्मिनल के बिल्कुल करीब है.
 

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क्या सीपीईसी से श्रीलंका को होगा फायदा?

श्रीलंका के पूर्व राजदूत जॉर्ज कुक ने कहा कि ग्वादर बंदरगाह में सहयोग से श्रीलंका को फायदा हो सकता है अगर कोलंबो और ग्वादर की इंटरनेशनल शिपिंग लाइन का फायदा उठाया जाए, खासकर पूर्वी एशिया से आने वाले जहाजों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाए. हालांकि, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में व्यापार और निवेश मामलों के रिसर्च फेलो गणेश विज्ञराज ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा, श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच कई सालों से व्यापार 40 करोड़ डॉलर के करीब अटका हुआ है और दोनों के पास एक-दूसरे को बेचने के लिए कुछ नहीं है. उन्होंने कहा, सीपीईसी श्रीलंका के लिए लंबी अवधि में फायदे का सौदा तब साबित हो सकता है जब दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश बढ़ जाए. फिलहाल पाकिस्तान और श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को देखते हुए मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ होने वाला है.

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श्रीलंका और पाकिस्तान के रिश्ते

श्रीलंका बौद्ध बहुल देश है और पाकिस्तान मुस्लिम बहुल. दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान श्रीलंका ने पाकिस्तान के जहाजों और विमानों को ईंधन भरने की सुविधा दी थी. वहीं, पाकिस्तान ने भी साल 2009 में श्रीलंका के लिट्टे के खिलाफ ऑपरेशन में उसकी मदद की थी. पाकिस्तान ने श्रीलंका की सेना को हथियारों और एयरक्राफ्ट्स मुहैया कराए थे.

हालांकि, श्रीलंका में दशकों तक चले गृहयुद्ध के खात्मे के बाद अब मुसलमानों और बौद्धों में संघर्ष बढ़ता जा रहा है. श्रीलंका की कुल 2 करोड़ की आबादी में 10 फीसदी मुस्लिम हैं. पिछले कुछ सालों में मुसलमानों के खिलाफ कट्टर बौद्ध राष्ट्रवादियों के हमले बढ़े हैं. पिछले साल, श्रीलंका ने कोविड-19 से मरने वाले लोगों के इस्लामिक तरीके से अंतिम संस्कार करने पर रोक लगा दी थी. इमरान खान के दौरे के बाद श्रीलंका सरकार ने कोविड से मरने वाले लोगों को दफनाकर अंतिम संस्कार करने की इजाजत दे दी.

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में समर्थन की जरूरत

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की जेनेवा में चल रही बैठक में श्रीलंका के लिट्टे के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान युद्ध अपराधों को लेकर चर्चा होगी और इसके बाद इस मुद्दे पर वोटिंग कराई जाएगी. कहा जा रहा है कि श्रीलंका ने मुस्लिम देशों से समर्थन जुटाने के मकसद से ये कदम उठाया. श्रीलंका ने पाकिस्तान से अपील की है कि वह परिषद के 14 मुस्लिम देशों को प्रस्ताव खारिज करने के लिए मना ले. श्रीलंका को चीन और रूस से भी समर्थन मिलने की उम्मीद है.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश होने वाले प्रस्ताव को लेकर श्रीलंका ने भारत से भी समर्थन मांगा है. अगर श्रीलंका के खिलाफ 23 मार्च को प्रस्ताव पास हो जाता है तो उस पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे और पहले से ही जूझ रही अर्थव्यवस्था पर बड़ा संकट आ जाएगा.

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श्रीलंका के सामने चीन, पाकिस्तान और भारत तीनों को साधने की मुश्किल चुनौती है. पिछले हफ्ते श्रीलंका ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए रेड कारपेट बिछाई लेकिन ये भी संकेत दिया कि वह भारत की चिंताओं को भी नजरअंदाज नहीं कर रहा है. पाकिस्तान की सरकार ने श्रीलंका की संसद में इमरान खान के भाषण की अनुमति मांगी थी जिसे पहले श्रीलंका ने मान लिया. हालांकि, श्रीलंका को लगा कि संसद में इमरान खान कश्मीर का मुद्दा भी उठा सकते हैं और इससे भारत की नाराजगी बढ़ सकती है. श्रीलंका ने आखिर में इमरान खान के भाषण का कार्यक्रम रद्द कर दिया. श्रीलंका ने पाकिस्तान के साथ एक रक्षा समझौते पर भी हस्ताक्षर नहीं किए.

भारतीय नौसेना के रिटायर्ड वाइस एडमिरल प्रदीप कौशिव ने कहा, हमें इस पर करीब से नजर रखनी चाहिए. हालांकि, मुझे विश्वास है कि श्रीलंका ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे भारत के साथ उसके संबंधों पर असर पड़े.

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