पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के गिलगित-बाल्टिस्तान को अंतरिम प्रांत का दर्जा देने के कदम का उनके देश में ही विरोध हो रहा है. हाल ही में, इमरान खान की सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बनाकर वहां चुनाव करवाए और सूबे में अब उनकी ही पार्टी का नेता मुख्यमंत्री है. भारत ने गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांत बनाने के फैसले को लेकर कड़ी आपत्ति जताई थी और कहा था कि गिलगित-बाल्टिस्तान समेत पूरा पीओके भारत का अभिन्न हिस्सा है और पाकिस्तान को उसकी स्थिति में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है.
पाकिस्तान के भीतर भी कुछ धड़े इमरान सरकार के इस कदम को गलत करार दे रहे हैं. उनकी चिंता ये है कि गिलगित-बाल्टिस्तान को अंतरिम प्रांत बनाने से कश्मीर का एजेंडा कमजोर पड़ जाएगा. अब यही बात पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के पूर्व प्रमुख दुर्रानी ने भी दोहराई है. दुर्रानी ने साल 2018 में "स्पाई क्रोनिकल्स: रॉ, आईएसआई ऐंड द इल्यूशन ऑफ पीस विद इंडियन' नाम से एक किताब भी लिखी थी जिसे लेकर काफी विवाद हुआ था. दुर्रानी ने यह किताब भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एनलिसिस विंग) के पूर्व प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत के साथ मिलकर लिखी थी.
बीबीसी ऊर्दू को दिए इंटरव्यू में दुर्रानी से सवाल किया गया कि पांच अगस्त को भारत ने कश्मीर का विशेष दर्जा छीना तो उससे कई समस्याएं खड़ी हो गईं लेकिन क्या पाकिस्तान का गिलगित बाल्टिस्तान को सूबा बनाने का फैसला सही है? दुर्रानी ने कहा, आप बिल्कुल सही बोल रही हैं. मैं जब कश्मीर को हैंडल कर रहा था तो मेरे एक करीबी दोस्त युसूफ ने कहा था कि अगर एक बार हमने ऐसी गलती की तो हमारे कश्मीर एजेंडे को बहुत गहरा धक्का लगेगा.
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दुर्रानी ने कहा, कई चीजों का स्टेटस नहीं बदला जाना चाहिए क्योंकि जब भी सियासी नंबर बढ़ाने के लिए ऐसा करेंगे तो हमें नुकसान होगा. बहावलपुर और स्वात बड़े अच्छे स्टेट थे. इन्हें मुख्यधारा में शामिल कर दिया और वही मुख्यधारा भ्रष्ट और नाकाम है. बलूचिस्तान के साथ भी हमने ऐसा ही किया. इसके तीन प्रांत बेहतर तरीके से संभल जाते थे लेकिन हमने उसे एक कर दिया और अब संभाल नहीं पा रहे हैं.
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख ने कहा, मैं हमेशा से इसके खिलाफ रहा हूं. FATA (Federally Administered Tribal Area) के तहत, ये स्टेट अपने तरीके से चीजों को अच्छे से संभाला करते थे. अगर हम कुछ नहीं कर सकते तो स्टेटस बदल देते हैं. पत्थरों पर कश्मीर की जगह श्रीनगर लिख देते हैं. नक्शा बदल देते हैं. ये सब काम सियासी नंबर बनाने के लिए किया जाता है. ऐसे काम से हमारे जैसे लोग खुश नहीं होंगे. इसका कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है. आपका सिस्टम इतना अच्छा हो और लोग खुद ही आने के लिए कहें तब तो ठीक है लेकिन आपको खुद को उन पर थोपना नहीं चाहिए.''
इमरान सरकार ने कुछ दिनों पहले ही इस इलाके में चुनाव कराने की घोषणा की थी. हालांकि भारत ने इस घोषणा के खिलाफ अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी. विदेश मंत्रालय ने नवंबर महीने में होने वाले चुनाव को लेकर कहा था कि गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में चुनाव कराकर पाकिस्तान भारत के हिस्से पर अवैध कब्जा नहीं कर सकता है. चुनाव करवाने का फैसला वहां के लोगों के लिए सीधे-सीधे मानवाधिकार उल्लंघन और शोषण का गंभीर मामला है.
दुर्रानी ने ये भी कहा कि भारत अब पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा नहीं है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद खुद ही कई मुश्किलों में फंसा हुआ है. दुर्रानी ने कहा, भारत ने कश्मीर में जो किया, उसके बाद पूर्वी सीमा पर हमारे लिए कोई खतरा नहीं रह गया. हमें अपनी चौकसी बनाए रखनी चाहिए ताकि भारत बालाकोट जैसे दुस्साहस ना कर पाए, हालांकि उन्होंने अपने लिए खुद इतनी मुश्किलें खड़ी कर ली हैं कि पाकिस्तान के बारे में सोचने का उनके पास वक्त ही नहीं बचा है.
दुर्रानी ने कहा, पिछले साल पांच अगस्त को कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर भारत ने अपनी छुट्टी कर ली है. अब उनके पास सिर्फ डंडा है और कुछ नहीं. इसके बाद उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून लाकर अपने भीतर और मसला खड़ा कर लिया. इसका केवल मुसलमानों ने ही नहीं बल्कि समझदार हिन्दू और सिखों ने भी विरोध किया.
दुर्रानी ने कहा कि बाहरी चुनौतियों के मुकाबले देश के भीतर की चुनौतियां ज्यादा खतरनाक हैं. उन्होंने इन चुनौतियों के बारे में कहा, देश फिलहाल तीन तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है- अर्थव्यवस्था, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक ताने-बाने में बिखराव. दुर्रानी ने कहा, बलूचिस्तान जैसे कई इलाके हैं जहां पर लोगों के बीच बहुत ही असंतोष है और वे राजनीतिक रूप से खुद को अलग-थलग और वंचित महसूस करते हैं. अर्थव्यवस्था की हालत खराब है..सरकार की विश्वसनीयता खराब है क्योंकि लोगों को लगता है कि इमरान खान सेना की मदद से सत्ता में आए हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान बेहद खतरनाक आंतरिक समस्याओं का सामना कर रहा है. खुफिया एजेंसी के पूर्व प्रमुख ने कहा, अगर आप मुझसे बाहरी चुनौतियों के बारे में पूछेंगे तो मैं कहूंगा कि सऊदी अरब, ईरान और तुर्की नई चुनौतियां हैं.
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दुर्रानी ने पाकिस्तान की राजनीति में सेना के दखल को लेकर कहा कि ये बहुत पुरानी हकीकत है लेकिन देश के लिए चिंताजनक है. दुर्रानी ने कहा, अयूब खान के जमाने से सियासत में सेना की दखलंदाजी होती रही है. आईएसआई के अंदर भी सेना के लोग भरे हैं और इसका हेड भी फौजी ही होता है.