भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यापालिका की अवमानना को लेकर बहस हो रही है. बहस के केंद्र में हैं सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण. प्रशाांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने उनके कुछ ट्वीट्स को लेकर अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया है. लेकिन प्रशांत भूषण का कहना है कि लोकतंत्र में आलोचना किसी की अवमानना नहीं होती और वो इसके लिए माफी नहीं मांगेंगे.
प्रशांत भूषण के अलावा मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी इन दिनों चर्चा में हैं. राहुल अपनी ही पार्टी में घिरे हुए हैं और पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. भारत की राजनीति और व्यवस्था का यह आंतरिक मुद्दा पाकिस्तान में भी सुर्खियां बटोर रहा है. पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेजी अखबार डॉन ने मंगलवार को राहुल और प्रशांत भूषण को लेकर एक टिप्पणी प्रकाशित की है.
इस टिप्पणी में दोनों की प्रशंसा की गई है और सलाह दी गई है कि अगर दोनों साथ आ जाते हैं तो भारत के लोकतंत्र के लिए अच्छा होगा. डॉन के पत्रकार जावेद नकवी ने अपने कॉलम में लिखा है कि राहुल गांधी की विपक्षी नेता के तौर पर तारीफ होनी चाहिए क्योंकि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन के खिलाफ डटकर खड़े होते हैं. प्रशांत और राहुल की नियति कहीं ना कहीं मिलती है. अगर दोनों अपनी असीम ऊर्जा को मिला लें तो वे दक्षिणपंथी ताकतों से भारतीय लोकतंत्र को बचा सकते हैं.
टिप्पणी में प्रशांत भूषण और राहुल गांधी के साथ आने की जरूरत और वजह भी बताई गई है. इसमें कहा गया है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक पहुंच रखने वाली इकलौती पार्टी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 10 फीसदी से भी कम सीटें मिली हैं. पिछले कुछ दशकों में भारत में जो कुछ गलत हुआ, उसको लेकर भी कांग्रेस घिरी हुई हैं. इस वजह से ही दक्षिणपंथियों को सत्ता में आने का रास्ता साफ हुआ. कांग्रेस सरकार ने याराना पूंजीवाद (सरकार और पूंजीपतियों का गठजोड़) को ऑक्सीजन दी और समाज को बांटने वाली लॉबी के लिए जगह बन गई.
टिप्पणी में कहा गया है कि प्रशांत भूषण इन दोनों चीजों से लड़ते रहे हैं. वे पूंजीपतियों और राजनीतिक घरानों के गठजोड़ को लेकर आवाज उठाते हैं, कश्मीर के लोकतांत्रिक अधिकारों, दलितों और मुस्लिमों की भी बात करते हैं. लेकिन ये भी एक तथ्य है कि प्रशांत भूषण ये लड़ाई अकेले नहीं लड़ सकते हैं.
टिप्पणी में कहा गया है, "वकील-ऐक्टिविस्ट प्रशांत भूषण असंतोष और क्रांतिकारी बदलाव की चाह को अपनी आवाज देते हैं. वह अरुंधति रॉय की तारीफ करते हैं और अरुंधति उनकी. रॉय को भी कोर्ट की अवमानना का दोषी पाए जाने पर जेल हुई थी और अब प्रशांत भूषण की बारी है. अरुंधति रॉय ने सुप्रीम कोर्ट के जजों से माफी मांगने से इनकार कर दिया था और भूषण ने भी वही किया है. प्रशांत भूषण ने कोर्ट में अपना रुख साफ किया और कहा कि अगर वह अपने विचारों से पीछे हटते हैं जिनसे जजों की अवमानना हुई है तो फिर ये उनकी अपनी अन्तरात्मा की अवमानना होगी."
पाकिस्तानी पत्रकार ने प्रशांत भूषण की जमकर तारीफ की है. कॉलम में लिखा गया है कि प्रशांत की राजनीति का दायरा बहुत बड़ा है. उन्होंने आम आदमी पार्टी की मदद की जिसकी मदद से साल 2015 में मोदी का विजय रथ रुका. हालांकि, बाद में प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से अलग हो गए क्योंकि भूषण को लगा कि केजरीवाल भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं जिसकी कभी वे मिलकर आलोचना किया करते थे. हालांकि, उनके निशाने पर अब भी कॉरपोरेट घराने के पूंजीपति हैं जो देश की राजनीति चलाते हैं.
लेकिन राहुल गांधी प्रशांत भूषण की लड़ाई में किस तरह से सहयोग देंगे? कॉलम में लिखा गया है कि युवा राहुल गांधी जानते हैं कि उनके विरोधियों ने उनकी छवि बिगाड़ दी है. उनके विरोधी कहते हैं कि राहुल गांधी अब सोकर जगे हैं. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर मीडिया घराने तक उन्हें कई तरह के नामों से संबोधित करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का संकल्प लिया है.
पाकिस्तानी अखबार में छपे आर्टिकल में लिखा गया है कि मोदी सरकार नहीं चाहती है कि कांग्रेस का नेतृत्व कोई गांधी करे. राहुल गांधी मोदी सरकार पर चीन के अतिक्रमण को लेकर निशाना साधते रहते हैं. राफेल डील को लेकर भी राहुल गांधी सवाल पूछते हैं. भारत में कोरोना वायरस महामारी की चुनौती और अयोध्या प्रोजेक्ट को हाइजैक करने को लेकर भी वह अपनी बात रखते हैं. जब तमाम टीवी चैनल राहुल गांधी को अक्षम नेता के तौर पर दिखा रहे हैं, वहीं, संसद के अंदर और बाहर राहुल ने भ्रष्टाचार को लेकर जिन टाइकून का नाम लिया है, वे डरे हुए हैं.
आर्टिकल में कहा गया है कि जैसे प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, वैसे ही राहुल ने भी कहा कि वह सरकार की जन विरोधी नीतियों की खुलकर आलोचना करते रहेंगे चाहे उनका राजनीतिक करियर ही दांव पर क्यों ना लग जाए. कॉलम में लिखा गया है कि वर्तमान में कोई ऐसा राजनेता नजर नहीं आता है जो राहुल गांधी की तरह अपना करियर भी दांव पर लगाने के लिए तैयार हो. इसके अलावा, कई और वजहें हैं जिसकी वजह से राहुल गांधी और प्रशांत भूषण को साथ आना चाहिए.