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श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने भारत पर साधा निशाना!

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 1:30 PM IST
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श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने सोमवार को कहा कि कई देश अपने भू-रणनीतिक हित साधने के लिए श्रीलंका में विकेंद्रीकरण के नाम पर अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन वह ऐसा नहीं होने देंगे. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने कहा कि हिंद महासागर में वैश्विक ताकतों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में उनकी सरकार शामिल नहीं होना चाहती है. राजपक्षे ने कहा कि श्रीलंका की संप्रभुता के साथ कोई खिलवाड़ नहीं कर सकता है.

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श्रीलंका के मतारा जिले में एक कार्यक्रम में गोटाबाया राजपक्षे ने ये बातें कहीं. माना जा रहा है कि राजपक्षे ने अपने इस बयान के जरिए भारत पर निशाना साधा है. दरअसल, इसी महीने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ एक प्रस्ताव पर वोटिंग की गई थी जिससे भारत दूर रहा था. ये वोटिंग श्रीलंका में तमिलों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर थी. भारत के लिए श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को समर्थन देना या खारिज करना दोनों ही आसान नहीं था. एक तरफ, श्रीलंका की सरकार से रिश्ते खराब होने का डर था तो दूसरी तरफ दक्षिण भारत के राज्यों में श्रीलंका के तमिलों का मुद्दा काफी मायने रखता है. इसीलिए भारत ने मतदान में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया.

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हालांकि, भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इस मांग का समर्थन किया था कि श्रीलंका में राजनीतिक शक्ति का विकेंद्रीकरण हो, प्रांतीय परिषदों के लिए चुनाव कराए जाए और 13वें संविधान संशोधन को लागू किया जाए जिसमें प्रांतों को अहम शक्तियां दी जाने की बात कही गई है.

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका की सरकार के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को 22 देशों का समर्थन मिलने के बाद स्वीकार कर लिया गया था. परिषद में श्रीलंका में तमिलों और मुस्लिमों के मानवाधिकार उल्लंघन का भी मुद्दा उठाया गया और मानवाधिकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीरता से समीक्षा करने की भी मांग की गई.  हालांकि, पाकिस्तान और चीन ने श्रीलंका की सरकार का साथ दिया और प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था. मतदान से पहले श्रीलंका ने भारत से भी समर्थन मांगा था.

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राजपक्षे ने ना केवल दूसरे देशों के भू-रणनीतिक हित साधने वाली टिप्पणी की बल्कि उन्होंने विकेंद्रीकरण की मांग को अलगाववाद से भी जोड़ा. हालांकि, श्रीलंका के तमिलों का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक दल लगातार देश की एकता और अखंडता के दायरे में प्रांतों को ज्यादा ताकत देने की बात करते रहे हैं. 

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राजपक्षे ने कहा, हम जेनेवा की चुनौती का बिना किसी डर के सामना करेंगे. हम किसी के दबाव में झुकने वाले नहीं हैं. हम एक आजाद मुल्क हैं. हम हिंद महासागर में दुनिया की महाशक्तियों की दुश्मनी का शिकार नहीं बनेंगे.

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राजपक्षे की सरकार के तमाम मंत्री प्रांतीय परिषद की व्यवस्था और 13वें संविधान संशोधन को खत्म करने की मांग कर रहे हैं, ऐसे में श्रीलंका के राष्ट्रपति का बयान काफी अहमियत रखता है. 

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नवंबर 2019 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बनने के बाद राजपक्षे ने कहा था कि उनका ध्यान विकेंद्रीकरण से ज्यादा विकास पर रहेगा. एक इंटरव्यू में राजपक्षे ने कहा था कि विकेंद्रीकरण पर जोर देने से श्रीलंका के हालात में कोई तब्दीली नहीं आई. उन्होंने ये भी कहा था कि श्रीलंका की बहुसंख्यक आबादी सिंहल (बौद्ध) की भावनाओं और इच्छा के खिलाफ जाकर 13वें संविधान संशोधन के तहत पूर्ण विकेंद्रीकरण नहीं किया जा सकता है. हालांकि, 13वें संविधान संशोधन के तहत विकेंद्रीकरण की व्यवस्था में सिंहल बहुल आबादी वाले प्रांत भी शामिल हैं.

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