अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अफगानिस्तान से सैनिकों के वापस बुलाने के राष्ट्रपति जो बाइडेन के फैसले की आलोचना की है. उन्होंने बुधवार को कहा कि अब तालिबान मनमानी करेगा और निर्दोष नागरिकों की हत्या करेगा. अमेरिका सहित नाटो सैनिकों की वापसी से तालिबान को खुली छूट मिल गई है.
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बुश ने जर्मन रेडियो डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि विदेशी सैनिकों की वापसी का सबसे ज्यादा खामियाजा अफगान महिलाओं और लड़कियों को भुगतना पड़ेगा. यह एक गलती है...अफगानिस्तान की महिलाएं अब तालिबान के हाथों मारे जाने को अभिशप्त होंगी. ये लोग (तालिबान) बहुत क्रूर हैं. इस फैसले से उनका दिल टूट गया है.
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पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, 'पत्नी लौरा (बुश) और मैंने अफगान महिलाओं के साथ बहुत समय बिताया, और वे डरी-सहमी हुई हैं, और मैं उन सभी दुभाषियों और लोगों के बारे में सोचकर चिंतित हूं जिन्होंने न केवल अमेरिकी सैनिकों बल्कि नाटो सैनिकों की भी मदद की. ऐसा लगता है कि क्रूर लोगों के हाथों मारे जाने के लिए इन्हें छोड़ दिया गया है. इस फैसले ने मेरा दिल तोड़ दिया है."
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बहरहाल, बुश ने जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि 16 साल सत्ता में रहने के दौरान मर्केल ने 'वर्ग और गरिमा' को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थिति में ला दिया. मर्केल ने अपने शासन में बहुत कठिन निर्णय लिए जो इस साल राजनीति से संन्यास ले लेंगी.
न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 हमले के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने ही तालिबान से निपटने के लिए अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना भेजी थी. तालिबान पर बुश ने कहा कि उन्हें लगता है कि जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल भी वही महसूस कर रही हैं जिसका उन्हें अहसास है.
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बाइडेन का रुखः अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी पर भले ही बुश दुख जाहिर कर रहे हैं लेकिन राष्ट्रपति बाइडेन का कहना है कि अमेरिका ने अपने लक्ष्यों को हासिल कर लिया है. उनका कहना था कि हमने अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार गिराया. हमारा मकसद पूरा हुआ. हम राष्ट्र निर्माण के लिए अफगानिस्तान नहीं गए थे. यह केवल अफगान लोगों का ही अधिकार और जिम्मेदारी है कि वे अपने देश को कैसे चलाना चाहते हैं. वे अपना भविष्य खुद तय करें.
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बाइडेन ने 8 जुलाई कहा कि मैंने खुले दिल-दिमाग से निर्णय लिया है और मुझे युद्ध के मैदान के अपडेट की रोजाना जानकारी दी जाती है. लेकिन उन लोगों के लिए जिन्होंने तर्क दिया है कि हमें छह महीने या सिर्फ एक साल और रहना चाहिए, मैंने उनसे हालिया इतिहास के सबक पर विचार करने के लिए कहा. लगभग 20 वर्षों का अनुभव बताता है कि वर्तमान सुरक्षा स्थिति केवल इस बात की पुष्टि करती है कि अफगानिस्तान में सिर्फ एक और साल की लड़ाई कोई समाधान नहीं है, बल्कि अनिश्चित काल तक वहां रहने का एक नुस्खा है. उन्होंने कहा कि यह अफ़गानों पर निर्भर करता है कि वे अपने देश के भविष्य के बारे में क्या निर्णय लें.
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अमेरिका और नाटो सैनिकों ने मई की शुरुआत में अफगानिस्तान से निकलना शुरू कर दिया था. विदेशी सैनिक करीब 20 साल बाद 11 सितंबर 2021 तक अफगानिस्तान से पूरी तरह बाहर चले जाएंगे. राष्ट्रपति जो बाइडेन के मुताबिक 2,500 अमेरिकी और 7,500 नाटो सैनिक अफगानिस्तान में बचे हुए थे, जो अप्रैल से वहां से निकल रहे हैं. विदेशी सैनिकी की वापसी को तालिबान अपनी जीत मान रहा है और अब तक वो अफगानिस्तान के कई इलाकों पर कब्जा करने का दावा कर रहा है.
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तालिबान का दबदबा बढ़ने से अफगानिस्तान में अराजकता फैदा हो गई है. तालिबान के कब्जे वाले उत्तरी अफगानिस्तान से लोग अपना घर छोड़कर भाग रहे हैं. अफगानिस्तान में आंतरिक संकट ऐसे समय खड़ा हुआ है जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से निपटने में लगी है. अफगान बल जहां तालिबान से जंग में उलझे हुए हैं वहीं विस्थापित हो रहे लोगों के लिए कोरोना की चपेट में आने का संकट बढ़ गया है.
(अफगान में पाकिस्तान की सीमा पर तालिबान समर्थक, फोटो-AP)
अफगानिस्तान के हालात को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जाहिर की है. यूएन ने रविवार को कहा कि आतंरिक संघर्ष के चलते युद्धग्रस्त देश का संकट कई गुना बढ़ गया है. यूएन ने अफगानिस्तान को आर्थिक मदद मुहैया कराए जाने का आह्वान किया है.
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