संयुक्त राष्ट्र महासभा में टर्की ने मंगलवार को एक बार फिर जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाया. टर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोवान ने संयुक्त राष्ट्र की बैठक में कहा कि कश्मीर अब भी एक ज्वलंत मुद्दा है. भारत ने इसे लेकर कड़ी आपत्ति जाहिर की है.
संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत टीएस त्रिमूर्ति ने टर्की के राष्ट्रपति एर्दोवान के भाषण में कश्मीर का जिक्र किए जाने को लेकर आपत्ति जताई. त्रिमूर्ति ने कहा, हमने भारत के केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के संबंध में टर्की के राष्ट्रपति की टिप्पणी देखी है. ये सीधे-सीधे भारत के आंतरिक मामले में दखल है और बिल्कुल अस्वीकार्य है. टर्की को दूसरे देशों की संप्रुभता का सम्मान करना सीखना चाहिए और अपनी नीतियों में भी इसे ज्यादा गंभीरता से प्रदर्शित करना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दूसरे दिन टर्की के राष्ट्रपति ने कहा, "कश्मीर विवाद दक्षिण एशिया की शांति और स्थिरता के लिए बेहद अहम है और अब भी एक ज्वलंत मुद्दा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जो कदम उठाए गए हैं, उनसे समस्या और जटिल हो गई है."
टर्की के राष्ट्रपति ने कहा, हम संयुक्त राष्ट्र के दायरे में कश्मीर मुद्दे के समाधान में पक्ष में हैं, खासकर ये कश्मीर के लोगों की उम्मीदों के अनुरूप हो. एर्दोवान ने कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान बातचीत के जरिए किया जाना चाहिए.
इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी कश्मीर का मुद्दा उठाने की कोशिश की. पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों की सराहना की लेकिन उसकी 'खामियों और असफलताओं' का भी जिक्र किया. कुरैशी ने कहा, "ये संगठन उतना ही अच्छा है जितना इसके सदस्य देश इसे देखना चाहते हैं. जम्मू-कश्मीर और फिलीस्तीन मुद्दा यूएन में सबसे लंबे समय से चले आ रहे विवाद हैं. जम्मू-कश्मीर के लोग आज भी इंतजार कर रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें आत्म निर्णय का अधिकार दिलाने का जो वादा किया है, वो पूरा हो. आज संयुक्त राष्ट्र में सिर्फ बातचीत होती है जबकि इसके प्रस्तावों और फैसलों का लगातार उल्लंघन होता है. खासकर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अंतरराष्ट्रीय सहयोग सबसे निम्नतम स्तर पर है.
पिछले साल भी, संयुक्त राष्ट्र महासभा में टर्की के राष्ट्रपति एर्दोवान ने कश्मीर का मुद्दा उठाया था और कहा था कि यूएन के प्रस्तावों के बावजूद 80 लाख लोग कश्मीर में फंसे हुए हैं. एर्दोवान ने कश्मीर विवाद पर ध्यान ना देने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी आलोचना की थी. एर्दोवान के साथ-साथ मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने भी पाकिस्तान का समर्थन करते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाया था.
पिछले सप्ताह, जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद के 45वें सत्र में भी पाकिस्तान, टर्की और ओआईसी ने भारत के आंतरिक मुद्दे पर टिप्पणी की थी और मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाया. इसके बाद उत्तर देने के अधिकार के तहत जेनेवा में भारत के स्थायी मिशन के प्रथम सचिव पवन बाथे ने इन तीनों को करारा जवाब दिया था.
भारत ने कहा था कि पाकिस्तान की ये आदत पड़ गई है कि वह मनगढंत और झूठे आरोप लगाकर भारत को बदनाम करता है. भारत और अन्य देशों को मानवाधिकारों पर एक ऐसे देश से लेक्चर की जरूरत नहीं है जो अपने यहां धार्मिक और नस्लीय अल्पसंख्यक समूहों को लगातार प्रताड़ित करता है और आतंकवाद का केंद्र हो.
भारत ने इस्लामिक सहयोग संगठन के जम्मू-कश्मीर को लेकर दिए गए बयान पर आपत्ति जताई. भारत ने कहा कि ओआईसी को भारत के आंतरिक मुद्दे पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है. ओआईसी पाकिस्तान के हाथों अपना गलत इस्तेमाल होने दे रहा है. ओआईसी के सदस्यों को ये तय करना चाहिए कि पाकिस्तान के एजेंडे के लिए अपने दुरुपयोग की अनुमति देना उनके हित में है या नहीं.
भारत ने टर्की को भी सलाह दी थी कि वह भारत के आंतरिक मुद्दे पर टिप्पणी करने से बचे. इसी साल फरवरी महीने में टर्की के राष्ट्रपति अर्दोवान ने पाकिस्तान का दौरा किया था. उन्होंने पाकिस्तानी संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि कश्मीर का मुद्दा जितना अहम पाकिस्तानियों के लिए है, उतना ही तुर्की के लोगों के लिए भी है. टर्की ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का खूब साथ दिया है और इस वजह से भारत के साथ उसके रिश्ते खराब हुए हैं.