तालिबान ने अफगानिस्तान में सरकार भले ही बना ली हो लेकिन इस संगठन के सामने देश को चलाने की चुनौतियां मुंह बाए खड़ी है. पिछले कुछ हफ्तों में वर्ल्ड बैंक, इंटरनेशनल मोनिटेरी फंड और यूएस सेंट्रल बैंक ने अफगानिस्तान के इंटरनेशनल फंड के एक्सेस को खत्म किया है. इसके चलते इस देश में लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)
अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में कई बैंक खुल चुके हैं लेकिन इन बैंकों में 232 डॉलर्स यानि की साप्ताहिक लिमिट लगा दी है. पिछले कुछ दिनों में सैंकड़ों लोग बैंकों के बाहर पैसे निकालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि अफगानिस्तान में रहने वाले कई गरीब लोग ऐसे हैं जो इन बैंकों में भी नहीं जा सकते हैं और अपने घर के सामानों को बेचकर अपना पेट भर रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)
गौरतलब है कि तालिबान के कब्जे से पहले ही अफगानिस्तान की इकोनॉमी के हालात खराब थे. इसके बाद कोरोना महामारी और सूखे ने अर्थव्यवस्था के हालात और खराब कर दिए थे. यूनाइटेड नेशन्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में 2022 के अंत तक 97 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे जा सकती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)
यूनाइटेड नेशन्स के प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही में अफगानिस्तान के लिए 600 मिलियन डॉलर जुटाने के प्रयास में जिनेवा में एक मानवीय सहायता सम्मेलन बुलाया था. इसमें से लगभग एक तिहाई मदद खाद्य मदद के लिए जाएगा. यूनाइटेड नेशन्स ने अफगानिस्तान में आर्थिक संकट और 'टोटल ब्रेकडाउन' जैसे हालातों पर चिंता जाहिर की है. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)
अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक के पूर्व गर्वनर जनरल अजमल अहमदी ने कहा कि अगर जल्द ही इस देश पर वैश्विक प्रतिबंध को हटाया नहीं गया तो अफगानिस्तान की जीडीपी 10-20 प्रतिशत सिकुड़ सकती है. वही तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद का कहना है कि वे उम्मीद जता रहे हैं कि पश्चिमी देशों की आर्थिक मदद के बिना वे रूस और चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाकर देश के आर्थिक हालात सुधार सकते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर/Getty images)