अमेरिका की बाइडेन सरकार को लेकर कहा जा रहा था कि उनके कार्यकाल में भारत-अमेरिकी के रिश्तों में वैसी गर्मजोशी नहीं रहेगी, जैसी ट्रंप के समय में थी. हालांकि, बाइडेन सरकार भी भारत के साथ रिश्ते को पूरी अहमियत दे रही है. यहां तक कि बाइडेन की सरकार आने के बाद अलास्का में 19 मार्च को अमेरिका-चीन की पहली बैठक हुई तो उसमें भी भारत का जिक्र किया गया.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अलास्का में हुई बैठक में अमेरिका के अहम साझेदार के रूप में भारत का जिक्र चीन के गले नहीं उतरा. इस बैठक में चीन के शीर्ष राजदूत यांग जेएची और चीन के विदेश मंत्री वांग यी मौजूद थे. अलास्का में हुई बैठक में अमेरिकी और चीनी प्रतिनिधि सार्वजनिक रूप से भिड़ गए थे और एक-दूसरे को लेकर तीखी टिप्पणियां की थीं.
इस बैठक से बाइडेन सरकार ने ये संदेश देने की भी कोशिश की कि उनकी सरकार ओबामा 2.0 नहीं होगी जैसा कि कई विश्लेषक कयास लगा रहे थे. साल 2009 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा और चीनी प्रतिनिधि हू जिंताओ की मुलाकात के बाद जारी किए गए बयान में भारत और पाकिस्तान को आपसी रिश्ते सुधारने की नसीहत दी गई थी. भारत ने इसे लेकर कड़ी आपत्ति जताई थी और कहा था कि इस मामले में किसी तीसरे देश को दखल देने की जरूरत नहीं है.
अलास्का में अमेरिका-चीन की बैठक से एक हफ्ते पहले ही 12 मार्च को अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने क्वॉड समिट में भी हिस्सा लिया था. क्वॉड को चीन विरोधी समूह के तौर पर देखा जाता है. क्वॉड में शामिल सभी देशों के साथ चीन के रिश्ते अच्छे नहीं हैं.
क्वॉड की बैठक को लेकर गुरुवार को चीन की सेना ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी. चीनी सेना की तरफ से जारी किए गए बयान में कहा गया, अमेरिका के नेतृत्व में हो रही ये बैठक शीतयुद्ध की मानसिकता का प्रतीक है और छोटे-छोटे समूहों के बीच लड़ाई को बढ़ावा देता है. अमेरिका भू-रणनीतिक खेल खेलने और चीन की कथित चुनौती का इस्तेमाल सीमित समूह बनाने में कर रहा है. इससे क्षेत्र में देशों को एक-दूसरे के खिलाफ उकसाया जा रहा है.
पीएलए के सीनियर कर्नल और रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता गुआकिंग ने कहा, हम इसका कड़ा विरोध करते हैं. शांति, विकास और सहयोग ही इस समय की मांग है. जो भी समय की धारा के खिलाफ है और अपने स्वार्थ से प्रेरित है, उसका अप्रासंगिक और असफल होना तय है.
उन्होंने कहा, चीन ने हमेशा से वैश्विक शांति और स्थिरता पर जोर दिया है और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कायम रखने में अपना योगदान देता रहा है. हम अमेरिका से अपील करते हैं कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाए और ऐसी गलतियां करने से बचे. अमेरिका को ऐसे काम करने चाहिए जिससे क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा मिले.