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विश्व

इसलिए भारत के लिए जरूरी है रूस से दोस्ती

प्रज्ञा बाजपेयी
  • 22 मई 2018,
  • अपडेटेड 11:15 AM IST
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंगलवार को स्वदेश लौट आए हैं. मोदी एकदिवसीय दौरे पर रूस पहुंचे थे और पुतिन के साथ उनकी ये पहली अनौपचारिक शिखर वार्ता थी. इस बैठक में रक्षा सहयोग के साथ ही साझा हित वाले वैश्विक मुद्दों पर बातचीत हुई.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश सचिव विजय गोखले इसी महीने रूस गए थे. यह समझना मुश्किल नहीं है कि बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के बावजूद रूस भारत के लिए कितना जरूरी है. भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यूएस और रूस के साथ रिश्तों को एक साथ आगे बढ़ाने की है. आइए जानते हैं रूस से दोस्ती भारत के लिए किन वजहों से अहम है...

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रूस भारत को मजबूत और मुश्किल समय का दोस्त रहा है. दोनों देशों के बीच मजबूत रणनीतिक, सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते का लंबा इतिहास रहा है.




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दोनों देशों ने अर्थव्यवस्था, राजनीति, रक्षा, सिविल न्यूक्लियर एनर्जी और आतंकवाद के  खिलाफ लड़ाई और स्पेस के क्षेत्र में एक-दूसरे का सहयोग किया है.

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द्विपक्षीय रिश्ते-
अक्टूबर 2000 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इंडिया-रशिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. सोवियत संघ के पतन के बाद ये दोनों देशों के बीच यह बड़ी राजनीतिक साझेदारी थी.

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इस्लामाबाद के करीब जाता रूस-

बदले हुए परिदृश्य में विश्व व्यवस्था में बदलाव हुए हैं. जहां भारत और यूएस की करीबी बढ़ी है तो भारत का पुराने दोस्त रूस भी इसके जवाब में पाकिस्तान से अपने रिश्ते संवार रहा है. 2016 में दोनों देशों ने संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किया जबकि भारत ने उड़ी में हुए आतंकवादी हमले को देखते हुए इसे स्थगित करने की अपील की थी.

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2015 में रूस और पाकिस्तान ने लाहौर से कराची तक के लिए एक गैस पाइपलाइन के निर्माण के लिए एक इंटर गवर्नमेंटल एग्रीमेंट पर भी हस्ताक्षर किए थे. चीन रूस के प्रमुख और ताकतवर सहयोगियों में से एक है और भारत के विरोधी पाकिस्तान का भी दोस्त है. इस क्षेत्र में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए मॉस्को के लिए पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते जरूरी हो गए हैं. भारत के लिए यह चिंता की बात है.

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सैन्य साझेदारी-
द स्टाकहोम पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 5 सालों में कुल हथियार आयात में 62 प्रतिशत रूसी हार्डवेयर का योगदान रहा. 2008-12 में यह 79 प्रतिशत था. भारत के कई अहम वीपन सिस्टम सोवियत और रूसी मूल के हैं और इनके सुचारू रूप से कार्य करने के लिए मॉस्को के साथ रक्षा सहयोग जरूरी है.

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रूस प्रतिस्पर्धा को बनाए रखते हुए अभी भी भारतीय बाजार में हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है.. रूस ही इकलौता ऐसा देश है जो भारत की भविष्य की जरूरतों पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर्स (सुखोई PAK-FA), न्यूक्लियर सबमैरीन्स और एयरक्राफ्ट कैरियर को पूरा कर सकता है.

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आर्थिक साझेदारी-
दिसंबर 2014 में, दोनों देशों ने 2025 तक व्यापार बढ़ाकर 30 बिलियन डॉलर के व्यापार का लक्ष्य रखा था. रसियन फेडरल कस्टम सर्विस डेटा के मुताबिक, 2016 में हुए द्विपक्षीय व्यापार 7.71 बिलियन डॉलर हुआ जोकि 2015 की तुलना में 1.5 प्रतिशत कम था.


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न्यूक्लियर एनर्जी-
रूस भारत की परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्वक इस्तेमाल की जरूरत को समझता है. दिसंबर 2014 में, डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी (डीएई) और रूस के रोसाटॉम ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल को लेकर सहयोग बढ़ाने के रणनीतिक विजन पर हस्ताक्षर किए थे. कुडनकलम न्यूक्लियर पावर प्लांट ((KKNPP) रूस के सहयोग से ही बनाया जा रहा है.

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स्पेस एनर्जी-
भारत-रूस के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में चार दशकों से साथ काम कर रहे हैं. 2015 में भारत के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट की लॉन्चिंग को 40 साल पूरे हुए थे. इस सैटेलाइट का लॉन्च वेहिकल रूसी सोयूज ही था. दोनों देश वर्तमान में मानव स्पेस फ्लाइट की संभावना पर काम कर रहे हैं.

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नई दिल्ली ने पश्चिमी देशों की छाया से अलग स्वायत्तता की नीति अपनाई है. यूएस के साथ तमाम आर्थिक और रक्षा साझेदारियों के बावजूद भारत अब भी यूएस के सहयोगी के तौर पर अपनी पहचान नहीं चाहता है. यूएस के साथ साझेदारी ठीक है लेकिन सहयोगी होना अलग बात है. भारत अब भले ही गुट-निरपेक्ष नीति पर नहीं चल रहा हो लेकिन विश्व के सभी देशों के साथ अपने रिश्ते में संतुलन रखने की अब भी चाहत रखता है. पश्चिमी देशों की तरफ झुकाव बढ़ने के बावजूद वह यह बिल्कुल नहीं चाहता है कि रूस उसे एक दुश्मन के तौर पर देखने लगे.

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