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PAK में स्थित जिस पंजा साहिब गुरुद्वारे में बैसाखी मनाने पहुंचे हैं 815 भारतीय सिख, उसमें क्या है खास?

बैसाखी के 10 दिन का त्योहार आज से शुरू हो रहा है. कोरोना के खतरे के बावजूद वाघा बॉर्डर के जरिए 815 भारतीय सिख पाकिस्तान में मौजूद पंजा साहिब गुरुद्वारे में दर्शन करने पहुंचे हैं. ये गुरुद्वारा सिखों के लिए बहुत महत्व रखता है.

फसल पकने की खुशी में भी मनाया जाता है बैसाखी. (फाइल फोटो-PTI) फसल पकने की खुशी में भी मनाया जाता है बैसाखी. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • लाहौर,
  • 13 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 8:40 AM IST
  • पंजा साहिब गुरुद्वारे में दर्शन करेंगे भारतीय सिख
  • बैसाखी मनाने वाघा बॉर्डर से पाक पहुंचे हैं भारतीय

सिखों का खास त्योहार बैसाखी आज से शुरू हो रहा है. बैसाखी का त्योहार फसल पकने के प्रतीक के रूप में भी बनाया जाता है. इस महीने खरीफ फसल पूरी तरक पककर तैयार हो जाती है और पकी हुई फसल को काटने की तैयारी भी शुरू हो जाती है. बैसाखी के इसी त्योहार को मनाने के लिए 815 भारतीय सिख पाकिस्तान के लाहौर पहुंचे हैं. वो यहां स्थित पंजा साहिब गुरुद्वारे का दर्शन करेंगे. माना जाता है कि इस गुरुद्वारे का निर्माण 16वीं सदी में किया गया था. 

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इवेक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) के प्रवक्ता आमिर हाशमी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि सोमवार को 815 भारतीय वाघा बॉर्डर के जरिए पाकिस्तान आए हैं. वाघा बॉर्डर पर ही इन्हें सिख परंपराओं के हिसाब से लंगर कराया गया. उन्होंने बताया कि सभी भारतीय सिख गुरुद्वारा पंजाब साहिब के दर्शन करेंगे. बैसाखी के दिन यहां खास कार्यक्रम होता है. हालांकि, 14 अप्रैल को यहां बड़ा कार्यक्रम है. ये सभी भारतीय अगले 10 दिन तक पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारों के दर्शन करेंगे और 22 अप्रैल को वापस भारत लौट आएंगे. वहीं, पाकिस्तान हाई कमीशन ने बैसाखी मनाने आ रहे 1,100 से ज्यादा भारतीय सिखों को पाकिस्तान का वीजा जारी किया है.

क्यों खास है गुरुद्वारा पंजा साहिब?
गुरुद्वारा पंजा साहिब सिखों के महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है. ये गुरुद्वारा लाहौर से 350 किलोमीटर दूर स्थित है. ऐसी मान्यता है कि सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव इस स्थान पर आए थे. यहां एक पहाड़ी थी. इसी पहाड़ी पर एक फकीर वली कंधारी रहा करता था. गुरु नानकजी पहाड़ी के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए. तभी वली कंधारी ने पहाड़ी से गुरु नानकजी पर एक बड़ा सा पत्थर लुढ़का दिया. तभी गुरु नानकजी ने अपने पंजे से उस पत्थर को रोक दिया. उस पत्थर पर गुरुजी के पंजे के निशान छप गए. बताते हैं कि आज भी गुरुद्वारे में वो पत्थर रखा हुआ है. पंजे से पत्थर रोकने के कारण ही गुरुद्वारे का नाम पंजा साहिब पड़ा. इस गुरुद्वारे को 16वीं सदी में बनाया गया था.

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इसलिए मनाया जाता है बैसाखी का त्योहार
13 अप्रैल 1699 के दिन सिख पंथ के 10वें गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था. इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया. इसके बाद सिख धर्म के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना मार्गदर्शक बनाया. आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है. 

इसी तरह बैसाखी नाम के पीछे भी एक वजह है. दरअसल, बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है. विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाखी कहते हैं. कुल मिलाकर, वैशाख माह के पहले दिन पहले दिन को बैसाखी कहा गया है. इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है. 

 

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