
बात 281 ईसा पूर्व की है, जब पोंटस (आज का तुर्की) के राजा मिथ्रिडेट्स V को किसी दुश्मन ने खाने में जहर दे दिया. उनके बाद राजा बनी संतान मिथ्रिडेट्स VI को हरदम यही डर रहने लगा कि वे भी जहर से मारे जाएंगे. राजवैद्य की सलाह से इस राजा ने बेहद खौफनाक रास्ता अपनाया. वो रोज अपने खाने के साथ थोड़ा-थोड़ा जहर भी खाने लगा. इतना कि मौत न हो. धीरे-धीरे जहर की मात्रा बढ़ाई जाने लगी और राजा का शरीर पूरी तरह से जहरीला हो गया. जहर खाकर जहरीला बनने के इस तरीके को आज भी मिथ्रिडेटिज्म के नाम से जाना जाता है.
सिकंदर को भी किया गया था आगाह
बाद में बहुत से राजाओं ने यही तरीका अपनाकर खुद को हर तरह के जहर के लिए मजबूत बना लिया. ये तो हुआ विदेशी किस्सा, लेकिन हिंदुस्तान में भी तरीका काफी पुराना माना जाता है. कहा जाता है कि सिकंदर जब दुनिया जीतने निकला तो उसके गुरु अरस्तू ने उसे यहां की विषकन्याओं के बारे में सचेत किया था. इसके बाद सिकंदर तो सिकंदर, उसकी सेना ने भी ध्यान रखा कि वे कम से कम युवतियों के संपर्क में आएं.
अरस्तू की कही हुई बातों पर आधारित सीक्रेट सीक्रेटोरम में गुरु के अपने शिष्य को सचेत करते हुए पत्र हैं. मूलतः ग्रीक में लिखी इस बातों का अरबी तक में Sirr al-Asrar नाम से अनुवाद हुआ था.
कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी इसका जिक्र
मौर्य शासक चंद्रगुप्त के शासनकाल के दौरान उनके गुरु चाणक्य ने विषकन्याओं की जरूरत पर जोर दिया. ये एक तरह का हथियार होती थीं, जो जासूसी भी कर सकती थीं और दुश्मन की जान भी ले सकती थीं. विषकन्याओं के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी यहीं मिलती है, हालांकि संस्कृत साहित्य में भी कहीं-कहीं इसका जिक्र मिल जाएगा.
कैसे तैयार होती थी विषकन्या
आमतौर पर ये वो बच्चियां होती थीं, जो राजसी लोगों के उनके नौकरों से हुए संबंध से आती थीं. दासियों की ये बच्चियां अच्छी-खासी आकर्षक हुआ करतीं. इन्हें शुरुआत से ही दूसरे बच्चों से अलग कर दिया जाता. इसके बाद ट्रेनिंग शुरू होती, जिसके तहत बच्ची को राजसी तौर-तरीके सिखाए जाते थे. वो कैसे खाए, किस तरह से बात करे, इसकी ट्रेनिंग ऐसे मिलती कि कोई भी आकर्षित हो जाए. साथ में नृत्य-संगीत भी सिखाया जाता.
ट्रेनिंग का खास हिस्सा था ये
यह तो हुई ऊपरी ट्रेनिंग, जिससे बड़ी होकर वे अपने संपर्क में आने वाले प्रभावशाली लोगों को ट्रैप करेंगी, लेकिन इसकी असल तैयार अलग थी. इसके तहत उनके खाने में रोज जहर की हल्की मात्रा दी जाती. साथ में वैद्य भी होते, जो उसपर नजर रखते थे. वक्त के साथ जहर की खुराक बढ़ाई जाती. कई तरह के जहर का मिश्रण भी दिया जाता ताकि बच्ची बेहद घातक बन जाए. इस दौरान बहुत सी बच्चियों की मौत हो जाती, लेकिन प्रयोग चलता रहता था.
कहीं-कहीं ये भी जिक्र मिलता है कि किसी परिवार में बच्ची के जन्म के बाद अगर ज्योतिष उसके भाग्य में विधवा होने की बात कह दें तो परिवार खुद उसे विषकन्या बनाने के लिए राजाओं के हवाले कर देता था ताकि वे किसी काम आकर मरें.
यकीन जीतकर करती थीं वार
प्यूबर्टी तक पहुंचते हुए बच्ची बेहद खूबसूरत और जहीन युवती में बदल जाती, जो अंदर से उतनी ही घातक होती. उसके खून से लेकर थूक तक में जहर होता. ऐसी लड़की से संबंध बनाना जानलेवा साबित होता. उसे ही राजा, अपने दुश्मनों को मोहकर जानकारियां निकलवाने या मारने के लिए इस्तेमाल करते. विषकन्याएं जाकर पहले दुश्मन का यकीन जीततीं, फिर प्रेम के जरिए उसे खत्म कर देती थीं. हनी ट्रैप इसी का मॉडर्न अवतार है.
मॉर्डन समय का नया अवतार
कैंब्रिज डिक्शनरी में हनीट्रैप का मतलब बताया है- कोई सीक्रेट जानकारी निकलवाने के लिए किसी आकर्षक शख्स (युवती) का इस्तेमाल. आमतौर पर ये शख्स महज एक जरिया होता है, जो किसी राजनैतिक पार्टी या ताकतवर शख्स के लिए काम करता है. महिला जासूस भी हनीट्रैप का काम करती आई हैं. माना जाता है कि हर देश की इंटेलिजेंस एजेंसी के पास इस तरह की फीमेल स्पाई होती हैं, जो अपने आकर्षण और चालाकी से दुश्मनों से काफी सारी जानकारियां निकाल लेती हैं.
पाकिस्तान अक्सर ही हनीट्रैप के आरोपों में फंसा
बात करें पाकिस्तान की, तो वहां से लगातार भारतीय सुरक्षा तंत्र में घुसपैठ की कोशिश होती रही. हनीट्रैप भी इसी घुसपैठ का एक हिस्सा है. सोशल मीडिया इस ट्रैप का नया जरिया बना हुआ है. बीते कुछ सालोमें भारतीय सेना के कुछ जवानों और अफसरों के भी इसका शिकार होने की खबरें चर्चा में रहीं. अब सेना दुश्मन सेनाओं की इस वर्चुअल लड़ाई से बचने के लिए सख्त नियम बना चुकी, जिसके तहत अपनी लोकेशन, पोस्ट न बताने से लेकर अपनी प्रैक्टिस की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर डालने से बचना शामिल है.
साइंस है जहरीला बनने-बनाने के पीछे
जिक्र चल ही पड़ा तो बता दें कि जहरीला बनाने की प्रक्रिया में ध्यान दिया जाता था कि जहर वही लिया जाता था, जो बायोलॉजिकली कॉम्पलेक्स कंपाउंड वाला हो. एक बार उस जहर के शरीर में जाने के बाद दोबारा जाने पर इम्यून सिस्टम एक्टिव हो जाता है और लिवर इतना एंजाइम पैदा करता है कि वो पच जाए. इसे आसान तरीके से समझें तो सेब में बीज में हाइड्रोजन सायनाइड नामक जहर होता है, लेकिन हमारा शरीर उसे आसानी से पचा पाता है क्योंकि लिवर इसका आदी हो जाता है. वैसे कई लोग गलती से सेब का बीज खाने के बाद पेटदर्द या सिरदर्द की शिकायत करते भी दिख जाएंगे.