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अफगानिस्तानः आजादी के 102 साल के इतिहास में 18 बार बदला गया झंडा, पढ़ें, बदलाव की पूरी कहानी

राष्ट्रीय ध्वज की जगह तालिबानी अपना झंडा लाना चाहते हैं और अफगानिस्तान (Afghanistan) में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब उसका झंडा बदला हो. अंग्रेजों से आजादी मिले अफगानिस्तान को 100 से ज्यादा साल हो चुके हैं और इस दौरान उसका झंडा 18 बार बदला गया.

2013 में आखिरी बार अफगानिस्तान के झंडे में बदलाव हुआ था (फाइल-पीटीआई) 2013 में आखिरी बार अफगानिस्तान के झंडे में बदलाव हुआ था (फाइल-पीटीआई)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 10:51 PM IST
  • 1926 में गणतंत्र घोषित, झंडे से तलवारें हटा दी गईं
  • 1929 में अफगानिस्तान को मिला पहला रंगीन झंडा
  • 2013 में आखिरी बार देश के झंडे में बदलाव हुआ था

अफगानिस्तान में तालिबान के खौफ से लोगों के देश छोड़ने की तस्वीरें पूरी दुनिया देख रही है, लेकिन उसी अफगानिस्तान में एक आवाज तेजी से जोर पकड़ रही है. वो आवाज है अफगानिस्तान की अवाम की. जो कह रही है, तालिबानियो, अफगानिस्तान छोड़ो.

19 अगस्त यानी गुरुवार को अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस था. ब्रिटिश गुलामी की बेड़ियों से आजाद होने के 102 वर्ष बाद अब एक बार फिर अफगानिस्तान खुद को गुलामी की जंजीरों में जकड़ता हुआ महसूस कर रहा है. अबकी बार ये जंजीरें तालिबानी हैं जिसके खिलाफ अब अफगानिस्तान की अवाम ने स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया है. 

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अफगानिस्तान (Afghanistan) में जो कुछ हो रहा है, वो विचारों की लड़ाई भी है और अफगानिस्तान में लोकतंत्र के प्रतीक राष्ट्रीय झंडे (national flag) की लड़ाई भी है. तालिबानी अपने जिस काले-सफेद झंडे तले अफगानिस्तान को झुकाना चाहते हैं. उसका सीधा मुकाबला अफगानिस्तानी अवाम के हजारों-लाखों हाथों में लहराते राष्ट्रीय ध्वज से है.

राष्ट्रीय ध्वज की जगह तालिबानी अपना झंडा लाना चाहते हैं और अफगानिस्तान में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब उसका झंडा बदला हो. अंग्रेजों से आजादी मिले अफगानिस्तान को 100 से ज्यादा साल हो चुके हैं और इस दौरान उसका झंडा कम से कम 18 बार बदला गया है.

ब्रिटिश हुकूमत के दौरान 1901 से पहले तक अफगानिस्तान का झंडा सादे काले रंग का होता था, लेकिन 1901 में गहरे काले रंग के झंडे में एक मुहर लगाई गई. जिसमें एक दूसरे को पार करती हुई तलवारों के ऊपर एक मस्जिद दिखाई देती है.

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दो तलवारों का साइज छोटा

1919 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद 1921 में अफगानिस्तान के झंडे के केंद्र में मस्जिद नजर आती थी जिसके नीचे दो तलवारों का साइज छोटा कर दिया गया.

लेकिन 1926 में अफगानिस्तान को गणतंत्र घोषित किया गया तो उसके झंडे में तलवारें हटा दी गईं. 1929 में अफगानिस्तान को इस्लामिक अमीरात घोषित किया गया तो एक नया झंडा पेश हुआ जो अफगानिस्तान का पहला रंगीन झंडा था.

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1929 में ही एक बार फिर अफगानिस्तान में गणतंत्र की घोषणा हुई तो तीन रंग के झंडे के बीच में मस्जिद दिखने लगी. 1933 में झंडे में मस्जिद के साथ गेहूं की बालियों का डिजाइन जोड़ा गया जो अफगानिस्तान की समृद्धि का प्रतीक बना.

झंडे के कोने में बाज की एंट्री

1973 में सैन्य तख्तापलट के बाद एक बार फिर झंडे में बदलाव किया गया, लेकिन ये बदलाव मामूली था. 1974 में झंडे के डिजाइन में बदलाव कर लकीरों को तिरछा किया गया. झंडे के कोने में एक बाज को दिखाया गया.

1978 में अफगानिस्तान का पूरा झंडा लाल रंग का हो गया. गेहूं के ढेर से घिरे डिजाइन में एक शब्द लिखा है, खल्क यानी लोग.

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1979 में अफगानिस्तान में USSR की एंट्री हुई तो 1980 में झंडा और मुहर फिर बदल गई. नए झंडे में एक लाल कम्युनिस्ट स्टार दिखाया गया. इसके बाद 1986, 1992 और 1994 में भी अफगानिस्तान के झंडे में कई बदलाव हुए.

तालिबान का तालिबानी झंडा (पीटीआई)

फिर आया साल 1996. तालिबान ने दो साल की लड़ाई के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया और अफगानिस्तान को एक इस्लामी अमीरात घोषित कर दिया. वही झंडा लहराया गया जो आज लहराया जा रहा है.

2002 में अफगानिस्तान में जब हामिद करजई राष्ट्रपति बने तो झंडा फिर बदला गया. 2013 में आखिरी बार अफगानिस्तान के झंडे में बदलाव हुआ था.

और अब अफगानिस्तान के लोग इसी झंडे को हाथों में लेकर तालिबानी झंडे का विरोध कर रहे हैं. झंडा किसी भी देश का चेहरा होता है. उसे जब मन आए तब बदल देना, एक तरह से राष्ट्र की पहचान के साथ एक मजाक है.
(आजतक ब्यूरो)

 

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