
अफगानिस्तान में तालिबान के खौफ के बीच भी अफगानियों के दिल में भारत के लिए मोहब्बत का जज्बा बहुत ज्यादा है. आजतक की टीम तालिबान के कब्जे वाले इलाकों से होते हुए अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर जलालाबाद पहुंची है, जहां हर अफगानी के मन में हिंदुस्तान बसता है.
दुनिया देख रही है कि अफगानिस्तान में तालिबान ने कैसा आतंक मचाया है. लेकिन उसी अफगानिस्तान में एक अफगानिस्तान और भी है, जहां ना तालिबानी गोलियों की तड़तड़ाहट है, ना खूनी संघर्ष की दास्तानें. ये भी अफगानिस्तान है जहां आम लोगों के दिलों में भारत से दोस्ती के फूल खिलते हैं.
जलालाबाद कहीं ना कहीं कई मायनों में कश्मीर और लद्दाख से मिलता है. पीछे पानी के झरने हैं और उसके बीच नंगे पहाड़ हैं. अफगानिस्तान के लोगों का भारत की फिल्मों पर इतना दीवानापन क्यों है भी हमने जानने की कोशिश की.
जलालाबाद में हमें खालिद मिले. उन्होंने कहा, 'इंडिया के जो फिल्म हैं. वो बहुत क्यूट हैं, मेरे को बहुत पसंद है. इंडिया के जो लिबास है. बहुत प्यार करता हूं इंडिया से. अभी मुश्किल हैं, तो नहीं जा सकता इंडिया. इधर पार्टी करने आए हैं. हम जा रहे हैं, लाहमान, उधर पार्टी करेंगे फिर वापस आ जाएंगे अपने घर.'
उन्होंने आगे कहा कि वह टाइगर श्राफ को जानते हैं, सलमान को जानते हैं. इतना ही नहीं, उनके फोन में इनकी फिल्में भी थीं. हीरोइन में खालिद को कैटरीना कैफ पसंद हैं.
जलालाबाद में तालीबान का खौफ नहीं
ये जलालाबाद है. अफगानिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा शहर, जहां कुछ युवा पार्टी करने निकले हैं. उनकी आंखों में तालिबान का कोई खौफ नजर नहीं आता, नजर आती है तो दीवानगी. इंडिया के लिए, इंडिया की फिल्मों के लिए. हमने कुछ और लोगों से वहां बात की. उन्होंने कहा कि वे लोग सलमान, शाहरूख सबको जानते हैं. उनके गाने-फिल्में भी देखते हैं. वहां मौजूद वसीम ने कहा, 'इंडिया से प्यार करता हूं. फिल्में पसंद हैं, सनी देओल का जब हम जवां होंगे, जाने कहां होंगे गाना अच्छा लगता है.'
खान अब्दुल गफ्फार खान को बादशाह मानते हैं अफगानी
अफगानिस्तान और भारत को दोस्ती के धागे में पिरोने का काम बॉलीवुड ने किया है. भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों की फिल्म में खान अब्दुल गफ्फार खान की शख्सियत भी किसी करिश्माई हीरो से कम नहीं है. भारत रत्न खान अब्दुल गफ्फार खान 20वीं सदी के पख्तूनों के सबसे करिश्माई नेता था. उनका जन्म पेशावर में हुआ, जो जिंदगी भर गांधी के पदचिन्हों पर चले. भारत के स्वाधीनता आंदोलन में अपना योगदान दिया और भारत के बंटवारे का विरोध किया था. इसकी वजह से अंग्रेजों ने उन्हें सीमांत गांधी का नाम दिया लेकिन अफगानिस्तान में प्रशंसक उन्हें अपना बादशाह मानते हैं और बादशाह खान पुकारते हैं. बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि आजादी की लड़ाई में गांधी के साथ मौजूद खान अब्दुल गफ्तार खान का मकबरा जलालाबाद में हैं.
सिखों ने गर्मजोशी से किया स्वागत
आजतक की टीम जब जलालाबाद पहुंची तो वहां मौजूद सिखों ने गर्मजोशी से स्वागत किया. जलालाबाद में पहुंचकर हमें अहसास हुआ कि आम अफगान नागरिक भारत से किस कदर प्यार करते हैं. आजतक की टीम जब यहां सदियों से रहते आए सिख और हिंदू परिवारों के बीच पहुंची तो सरहद की दूरियां मिट गईं. लेकिन इसके बाद जलालाबाद के सिख समुदाय ने तालिबान और पाकिस्तान की ज्यादतियों की जो हकीकत बयां की वो बेचैन कर देने वाली थी.
कभी जलालाबाद में सैकड़ों सिख परिवार रहते थे. पुश्तैनी काम करते थे लेकिन अब यहां गिने-चुने सिख परिवार बचे हैं. वो भी अब अफगानिस्तान में रहना नहीं चाहते और वजह सिर्फ एक है - तालिबान का आतंक, जिसका गवाह है जलालाबाद का 500 वर्ष पुराना गुरुद्वारा, जिसपर हमला हुआ था.