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EU के प्राइस कैप के बाद भी भारत को सस्ते दाम में कच्चा तेल क्यों बेच रहा है रूस?

यूरोपीय यूनियन ने पांच दिसंबर को रूस के क्रूड के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद G-7 देशों कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका ने रूस के तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की प्राइस कैप लगा दी थी. इसकी वजह रूस की अर्थव्यवस्था पर भारी चोट करना है.

पुतिन और मोदी पुतिन और मोदी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:56 PM IST

तेल पर यूरोप के बैन के बाद इस महीने रूस ने भारी छूट पर अपना कच्चा तेल बेचा है. पश्चिमी देशों के रूस के तेल पर लगाए गए 60 डॉलर के प्राइस कैप के बाद बेहद कम कीमत पर यूराल क्रूड (Ural Crude) तेल भारत को बेचा गया है.

यूरोपीय यूनियन ने पांच दिसंबर को रूस के क्रूड के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद G-7 देशों कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका ने रूस के तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की प्राइस कैप लगा दी थी. रूस के तेल पर यह प्राइस कैप लगाने के पीछे मंशा रूस की अर्थव्यवस्था पर भारी चोट करने की थी.

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लेकिन इसका तोड़ निकालते हुए रूस ने अपना रुझान वैकल्पिक बाजारों विशेष रूप से एशिया की तरफ बढ़ा दिया है. रूस का लक्ष्य वैकल्पिक बाजारों के तौर पर एशिया को भुनाना और प्रतिदिन की दर से लगभग 10 लाख बैरल तेल बेचना है.

फैसले पर रूस की दो टूक

हालांकि, रूस का कहना है कि वह इस प्राइस कैप को स्वीकार नहीं करता है. रूस ने दो टूक कहा है कि वह इस प्राइस कैप के अनुसार अपना तेल नहीं बेचेगा, फिर बेशक उसे अपना तेल उत्पादन ही कम क्यों ना करना पड़े. पश्चिमी देशों के इस फैसले से रूस बेहद कम कीमतों पर अपना तेल बेच रहा है.

इस साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से भारत, रूस के कच्चे तेल के सबसे बड़ा खरीदार बनकर उभरा है. 

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माल ढुलाई की लागत बढ़ी

मौजूदा स्थिति से रूस के पश्चिमी बंदरगाहों पर दबाव बढ़ा है क्योंकि जहाजों की कमी से माल ढुलाई लागत बढ़ गई है. ढुलाई लागत 11 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 19 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है जबकि फरवरी में यह तीन डॉलर प्रति बैरल से कम ही था. 

भारत एशिया में रूस के तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है और वह युद्ध शुरू होने के बाद से रूस से भारी छूट पर तेल खरीद रहा है. 

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