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अमेरिका में गे कपल ने की शादी, 4 महीने का बच्चा गोद लिया, भारत आने के लिए नहीं मिल रहा वीजा, SC में लगाई गुहार 

अमेरिका में शादी करने वाले गे कपल को भारत आने के लिए वीजा नहीं मिल रहा है क्योंकि भारत में अभी सेम सेक्स मैरिज कानूनी मान्यता नहीं मिली है. इसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है.

फाइल फोटो फाइल फोटो
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 1:19 PM IST

अमेरिका के टेक्सास में साल 2012 से रिलेशनशिप में रहने वाले गे कपल वैभव और पराग ने साल 2017 में शादी की थी. उसके बाद उन्होंने चार महीने का बच्चा भी गोद लिया, लेकिन अब उन्हें भारत आने के लिए वीजा नहीं मिल रहा है, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है. 

गे कपल ने सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट गीता लूथरा के जरिए याचिका दायर की थी. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के जरिए मंगलवार को पेश हुए थे.  

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कपल की वकील लूथरा ने कहा कि टेक्सास के कानून समलैंगिक विवाह को मान्यता देते हैं. वे अन्य देशों में स्वतंत्र और समान हैं लेकिन भारत आने पर वे अविवाहित हो जाते हैं. कोविड के दौरान पति-पत्नी को अपने देश जाने के लिए वीजा दिया गया था, लेकिन इस जोड़े को मना कर दिया गया क्योंकि उनकी शादी को भारत में मान्यता नहीं मिली थी. सुप्रीम कोर्ट को FM अधिनियम को लैंगिक रूप से तटस्थ बनाना चाहिए ताकि उन्हें यहां अपनी शादी को पंजीकृत करने की अनुमति मिल सके. 

उन्होंने कहा, "विवाह, सबसे पुरानी सामाजिक संस्था है, जोकि कभी भी एक स्थिर अवधारणा नहीं रही है. अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाहों को पहले मान्यता नहीं थी. कुछ देशों ने अंतर-नस्लीय विवाहों को मान्यता नहीं दी, लेकिन एक संस्था के रूप में विवाह सामाजिक संबंधों में समानता लाने के लिए विकसित हुआ है." 

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जीडीपी भी होती है प्रभावित

टीओआई के मुताबिक, सीनियर एडवोकेट सौरव किरपाल ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता न मिलने की वजह से जीडीपी का 1.7 फीसदी हिस्सा प्रभावित होता है क्योंकि बुद्धिमान गे कपल विवाह की स्वतंत्रता के लिए देश छोड़ देते हैं.  

सीनियर वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि LGBTQIA+ समुदाय के सदस्य संसद का इंतजार नहीं कर सकते, जो विषमलैंगिक जोड़ों के समान विवाह के अपने अधिकार को मान्यता देने के लिए समय लेगी. उन्होंने कहा, "शादी का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जिसे इस आधार पर कम नहीं किया जा सकता है कि समलैंगिक जोड़ों में संतान पैदा करने की क्षमता नहीं है." 

दुनिया की 5-7 फीसदी आबादी LGBTQIA समुदाय से

सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि दुनिया भर में 5-7% आबादी खुद को LGBTQIA+ के रूप में पहचानती है. इसलिए भारत में लाखों लोग इस समुदाय के हैं और सरकार अदालत से यह नहीं कह सकती कि संसद द्वारा उनके मौलिक अधिकारों को मान्यता दिए जाने तक प्रतीक्षा की जाए. बीते 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले गुरुस्वामी ने कहा कि विवाह का अधिकार आंतरिक रूप से जीवन के अधिकार से जुड़ा हुआ है. 

 

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