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अमेरिका ने भारत को रूस से दूर करने के लिए उठाया बड़ा कदम

अमेरिका लगातार ये कोशिश कर रहा है कि रूसी हथियारों पर भारत की निर्भरता कम हो और वह भारत का अहम सहयोगी बन सके. रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिका इस दिशा में एक बहुत ही बड़ा कदम उठाने वाला है.

पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 मई 2022,
  • अपडेटेड 2:02 PM IST
  • भारत अमेरिका के बीच होने वाला है सैन्य सौदा
  • भारत को लुभाने की कोशिश में लगा अमेरिका
  • बनना चाहता है विश्वसनीय रक्षा भागीदार

रूस पर भारत के रुख से निराश अमेरिका अब भारत के साथ अपने रक्षा सहयोग को मजबूत करने में लग गया है. अमेरिका रक्षा क्षेत्र में भारत के साथ एक बड़ा सौदा करने वाला है. मामले से वाकिफ लोगों ने जानकारी दी है कि अमेरिका भारत की रूसी हथियारों पर निर्भरता कम करने के लिए सैन्य सहायता पैकेज तैयार कर रहा है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मामले से परिचित एक सूत्र के अनुसार, विचाराधीन पैकेज 500 करोड़ डॉलर तक का हो सकता है. इजरायल और मिस्र के बाद भारत अमेरिका से इस तरह की सहायता प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा देश बन जाएगा. हालांकि, अभी ये स्पष्ट नहीं है कि इस सौदे की घोषणा कब की जाएगी या सौदे में किन हथियारों को शामिल किया जाएगा.

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एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी के अनुसार, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की भारत ने निंदा नहीं की है, बावजूद इसके राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन की तरफ से ये एक बड़ा प्रयास किया जा रहा है ताकि भारत को एक दीर्घकालिक सुरक्षा भागीदार बनाया जा सके.

भारत का विश्वसनीय भागीदार दिखना चाहता है अमेरिका

अधिकारी ने कहा कि अमेरिका भारत का एक विश्वसनीय भागीदार बनना चाहता है. जो बाइडेन प्रशासन फ्रांस सहित अन्य देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के पास सभी जरूरी सैन्य उपकरण हो. 

अधिकारी ने कहा, भारत भी पहले से ही ये प्रयास कर रहा है कि वो अपने सैन्य उपकरणों के लिए रूस पर निर्भरता कम करे और अमेरिका मदद कर रहा है ताकि ये काम जल्द से जल्द हो सके.

अधिकारी ने कहा कि अमेरिका के लिए ये एक बड़ी चुनौती होगी कि वो भारत को लड़ाकू जेट, नौसैनिक जहाज और युद्धक टैंक जैसे प्रमुख हथियार कैसे उपलब्ध कराए. अमेरिका इनमें से किसी एक क्षेत्र में भारत को पूर्ण रूप से मदद करना चाहता है.

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अधिकारी ने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच जिस वित्तीय पैकेज की बात हो रही है, वो इस तरह के सिस्टम को बनाने के लिए काफी कम है. इस तरह के सिस्टम को बनाने में दसियों अरब डॉलर तक का खर्च आ सकता है. लेकिन अमेरिका ये पैकेज देकर भारत के प्रति समर्थन का एक प्रतीकात्मक संकेत देना चाहता है.

इस सौदे को लेकर ब्लूमबर्ग ने जब भारत के विदेश मंत्रालय से टिप्पणी के लिए संपर्क किया तो किसी तरह का कोई जवाब नहीं मिला.

भारत रूसी हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार

भारत रूसी हथियारों का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है. हथियारों की खरीद-बिक्री का डेटा रखने वाले स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, पिछले एक दशक में, भारत ने अमेरिका से 4 अरब डॉलर और रूस से 25 अरब डॉलर से अधिक के सैन्य उपकरण  खरीदे हैं.

भारत अपने पड़ोसियों चीन और पाकिस्तान के खिलाफ हथियारों के लिए रूस पर निर्भर है. विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार इस एक वजह से यूक्रेन युद्ध में राष्ट्रपति पुतिन की आलोचना से बच रही है. जहां एक तरफ अमेरिका, यूरोपीय देश, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत रूस से रियायती दरों पर तेल खरीद रहा है.

मोदी सरकार को मिल रही तवज्जो

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अमेरिका और उसके सहयोगी देश भारत के इस रुख को लेकर शुरू में तो बेहद नाराज हुए लेकिन बाद में उन्होंने भारत के रुख को समझा और अब ये देश भारत के साथ सहयोग बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. मोदी अगले हफ्ते दक्षिण कोरिया में बाइडेन के साथ शिखर वार्ता में शामिल होंगे. बैठक में क्वॉड के नेता शामिल होंगे. क्वॉड अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक समूह है जिसे चीन को काउंटर करने की कोशिश के तौर पर देखा जाता है. मोदी को अगले महीने जर्मनी में सात नेताओं की बैठक में शामिल होने का निमंत्रण भी मिला है.

चीन के खिलाफ भी अमेरिका सहित ये देश भारत का समर्थन कर रहे हैं. अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने अप्रैल में विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीन को लेकर बात की थी.

ऑस्टिन ने कहा था, 'हम ये सब इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अमेरिका इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में भारत को शांति सुनिश्चित करने वाला मानता है. वहां जिस तरह की चुनौतियां हैं, हम उन्हें समझते हैं. चीन अपने हितों के लिए क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को बदलना चाहता है.

पिछले दो दशकों में अमेरिका और भारत के बीच संबंध लगातार गहरे हुए हैं. दोनों पक्षों के बीच कई सैन्य समझौते भी हुए हैं. फिर भी, यह देखा जाना बाकी है कि भारत अमेरिकी सैन्य सहायता को स्वीकार करने में कितना आगे जाता है. 

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