
खालिस्तानी आतंकी निज्जर के मुद्दे ने कनाडा और भारत के रिश्तों में कड़वाहट घोल दी है. अमेरिका (United States) भी इस मसले पर डबल गेम करने से बाज नहीं आ रहा है. भारत से बेहतर संबंधों के बावजूद यूएस कूटनीतिक चालबाजियां दिखा रहा है. निज्जर पर कनाडा को सबसे पहले इनपुट अमेरिका ने ही Five Eyes (FVEY) ग्रुप के जरिए दिए थे.
इनपुट में क्या था यह तो सामने नहीं आया, लेकिन जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में भारत के खिलाफ बयानबाजी इनपुट मिलने के बाद ही की थी. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद अमेरिका ने कनाडा को खुफिया जानकारी मुहैया कराई, लेकिन कनाडा ने इसका मतलब कुछ और समझा, जिसके बाद ट्रूडो भारत पर निज्जर की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा दिया.
अमेरिकी राजदूत ने किया PoK का दौरा
अमेरिका का डबल गेम तब भी देखने को मिला, जब भारत और कनाडा में जारी तनाव के बीच पाकिस्तान में अमेरिका के राजूदत डोनाल्ड ब्लोम (Donald Blome) ने पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) का दौरा किया. ब्लोम पिछले हफ्ते चुपचाप पीओके के गिलगित बाल्टिस्तान गए थे. जानकारी सामने आई और विवाद बढ़ा तो भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी (Eric Garcetti) की सफाई आई. उन्होंने तर्क दिया कि G20 सम्मेलन में हमारा एक प्रतिनिधिमंडल बैठक के लिए कश्मीर भी गया था.
जब फ्रांस के साथ US ने खेला डबल गेम
मित्र मुल्क के साथ 'डबल गेम' करने का अमेरिकी इतिहास काफी पुराना है. इसका ताजा उदाहरण हाल ही में तब भी देखने को मिला था, जब अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने एक त्रिपक्षीय (Trilateral) सिक्योरिटी पार्टनरशिप करने के बाद ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां (nuclear-powered submarines) देने का ऐलान किया था. इस डील के बाद फ्रांस ने अमेरिका पर सख्त नाराजगी जताई थी, क्योंकि अमेरिंका और ब्रिटेन से डील के बाद ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ हुई डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन का कॉन्ट्रैक्ट तोड़ दिया था.
कनाडा भी बन चुका है अमेरिका का शिकार
जिस कनाडा के साथ खड़े होकर अमेरिका, भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है उस कनाडा को भी अमेरिका तगड़ा झटका दे चुका है. दरअसल, 2010 में अमेरिका और कनाडा के बीच तेल की पाइपलाइन का सिस्टम बनाने की डील हुई. इसका काम कनाडा की ऊर्जा कंपनी टीसी एनर्जी कॉर्पोरेशन ने संभाला. 2015 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के चलते इस प्रोजेक्ट में काफी देरी हो गई. इसके बाद डोनाल्ड ने अपने कार्यकाल में इसे फिर से शुरू करने की कोशिश की, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और कनाडा की कंपनी को यह प्रोजेक्ट ठोड़ना पड़ा. इस मु्द्दे को जस्टिन ट्रूडो ने जो बाइडेन के सामने भी उठाया था. प्रोजेक्ट रद्द होने के बाद कनाडा की मीडिया ने अमेरिका पर धोखा देने का आरोप तक लगाया था.
दबाव बनाकर वियतनाम में करवाया समझौता
वियतनाम युद्ध के दौरान भी अमेरिका का डबल गेम देखने को मिला था. दरअसल, इस जंग में अमेरिका ने पहले दक्षिण वियतनाम का समर्थन किया. उसे पैसे के साथ-साथ सैन्य मदद भी मुहैया कराई. लेकिन जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा उसका अमेरिका पर भी प्रभाव पड़ने लगा. इस जंग के खिलाफ घरेलू विरोध बढ़ने लगा और दबाव में आकर अमेरिका ने पेरिस में उत्तरी वियतनाम के प्रतिनिधिमंडल के साथ मीटिंग कर ली. इसके बाद एक समझौता हुआ और अमेरिका ने दोनों पक्षों पर इसे मानने का दबाव बनाया.