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अमेरिकी सीनेटर ने उठाया सिख दंगों का मुद्दा, सीनेट में कहा- 1984 आधुनिक भारतीय इतिहास का काला साल

अमेरिका की सीनेट में 1984 के सिख दंगों का मुद्दा उठा. अमेरिकी सीनेटर पैट टूमी ने साल 1984 को आधुनिक भारत के इतिहास का काला साल बताया. पैट टूमी ने सिख दंगों के दौरान सिखों पर अत्याचार के साथ ही अमेरिका के विकास और कोरोना काल में सिखों के योगदान की चर्चा की.

पैट टूमी (फाइल फोटोः रॉयटर्स) पैट टूमी (फाइल फोटोः रॉयटर्स)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 7:47 AM IST

साल 1984 के सिख दंगे की गूंज सात समंदर पार अमेरिकी संसद में भी सुनाई दी है. अमेरिकी सीनेटर पैट टूमी ने सिख दंगो का जिक्र करते हुए कहा है कि साल 1984 आधुनिक भारत के इतिहास के सबसे काल में से एक है. उन्होंने कहा है कि सिख समुदाय के लोगों पर हुए अत्याचार को याद रखने की जरूरत है जिससे जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सके.

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सीनेट में पैट टूमी ने कहा कि दुनिया ने देखा कि भारत में जातीय हिंसा की कई घटनाएं हुईं जिनमें से कई में सिख समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक उन्होंने ये भी कहा कि हम आज उस त्रासदी को याद कर रहे हैं जो भारत सरकार और पंजाब सरकार के बीच तनाव के कारण एक नवंबर 1984 को शुरू हुई थी.

अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर टूमी ने कहा कि भविष्य में मानवाधिकारों का हनन रोकने के लिए हमें उसके पिछले रूप पहचानने होंगे. उन्होंने आगे कहा कि सिख धर्म की जड़ें भारत के पंजाब क्षेत्र में करीब 600 साल पुरानी हैं. दुनियाभर में सिख धर्म को मानने वाले लोगों की तादाद करीब तीन करोड़ है. अमेरिका में ही करीब सात लाख सिख हैं.

अमेरिकन सिख कांग्रेसनल कॉकस के सदस्य सीनेटर टूमी ने कहा कि हमने सिखों की भावना को व्यक्तिगत रूप से महसूस किया है. समानता, सम्मान और शांति पर आधारित सिख परंपरा को बेहतर ढंग से समझा है. उन्होंने आगे कहा कि सिखों ने देश की समृद्धि में बड़ा योगदान दिया है. टूमी ने कोरोना महामारी के दौरान सिखों की ओर से की गई सामुदायिक सेवा के कार्यों का भी सीनेट में उल्लेख किया.

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अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को लेकर प्रकाशित हुआ विज्ञापन

अमेरिकी सीनेटर ने सीनेट में सिख दंगों का मुद्दा उठाया तो वहीं न्यूयॉर्क टाइम्स में गांधी जयंती के एक दिन पहले नौ संगठनों की ओर से एक विज्ञापन प्रकाशित कराया गया. एक पेज के विज्ञापन में भारत में अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और मॉब लिंचिंग के आरोप लगाए गए थे. सभी नौ संगठनों की ओर से इस विज्ञापन के लिए एक-एक हजार अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया गया था.

जिन संगठनों की ओर से ये विज्ञापन प्रकाशित कराए गए थे, उनमें अमेरिकन मुस्लिम इंस्टीट्यूशन, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मुस्लिम ऑफ अमेरिका हॉवर्ड कैन, आईसीएनए काउंसिल फॉर सोशल जस्टिस, दलित सॉलिडेरिटी फोरम, हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स, इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर पीस एंड जस्टिस और अमेरिकन सिख काउंसिल शामिल हैं.

 

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