
भारत और जर्मनी के बीच एक ऐसा मामला सामने आया है जिसके कारण दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ता उलझता जा रहा है. इसी साल जून में बर्लिन की एक अदालत ने 2.5 साल की बच्ची पर से इंडियन कपल के माता-पिता के अधिकारों को समाप्त कर दिया. इंडियन कपल दीया और उनके पति अमित (बदला हुआ नाम) पर आरोप है कि जब बच्ची सिर्फ सात महीने की थी, तब उन्होंने उस बच्ची का यौन उत्पीड़न किया.
जिसके बाद भारत के दर्जनों सांसदों ने जर्मन राजदूत फिलिप एकरमैन को बच्ची को भारत वापस लाने के लिए एक पत्र लिखा है. यहां तक कि एक नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि अगले महीने जब जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज दिल्ली आएंगे तो उनके सामने भी इस मुद्दे को उठाया जाए.
ऐसे में समझते हैं कि क्यों और कैसे 2.5 साल की बच्ची के इर्द-गिर्द भारत और जर्मनी का डिप्लोमेटिक रिश्ता उलझता जा रहा है.
इंडियन कपल पर बाल शोषण का आरोप
ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2023 में बर्लिन की एक अदालत ने इंडियन कपल दीया और उनके पति अमित का उनकी 2.5 साल की बेटी पर से माता-पिता के अधिकारों को खत्म कर दिया और बच्ची की कस्टडी यूथ वेलफेयर ऑफिस (जुगेंडमट) को सौंप दी है. साथ ही अदालत ने बच्ची को वापस भारत भेजने की मांग को भी खारिज कर दिया. दीया और उनके पति ने इसे sham trial कहा है और अपील दायर की है.
रिपोर्ट के मुताबिक, अमित को बर्लिन में नौकरी मिली थी, जिसके बाद दीया और अमित 2018 में बर्लिन चले गए. बर्लिन में ही 2 फरवरी 2021 को बेटी का जन्म हुआ. सात महीने की उम्र में एक दिन एक्सिडेंटली बच्ची के प्राइवेट पार्ट में चोट लग गई और अस्पताल ले जाने पर अमित और दीया पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा.
अदालती दस्तावजों के अनुसार, जर्मनी के अधिकारियों और कपल के बीच विवाद का मुख्य कारण बच्ची की जेनिटल इंजरी (genital injury) है. डॉक्टर का कहना है कि उन्होंने किसी भी शिशु के प्राइवेट पार्ट में इतनी गंभीर चोट पहले कभी नहीं देखी थी. इसे ठीक करने के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ी थी.
जिसके बाद जर्मनी के चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विस उस बच्ची को यह कहते हुए अपने साथ ले गई कि उन्हें यौन शोषण का संदेह है. जबकि परिवार ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया. परिवार का कहना है कि बच्ची को लगी चोट एक्सिडेंटल है.
जिस अस्पताल में बच्ची का इलाज किया गया था. उस अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि यौन शोषण बताने के लिए कोई सबूत नहीं है. जिसके बाद पुलिस ने बिना चार्जशीट फाइल किए केस को बंद कर दिया था.
बच्ची अपने घर पर सुरक्षित नहींः जर्मन बाल संरक्षण कार्यालय
पुलिस की ओर से अदालत में सौंपी गई रिपोर्ट में भी कहा गया कि यह संभव है कि बच्ची को चोट किसी दुर्घटना के कारण लगी हो. इसकी संभावना नहीं है कि माता-पिता ने पहले बच्ची को जानबूझकर चोटें पहुंचाई और फिर उसे डॉक्टर के पास ले गए.
हालांकि, रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अगर बच्ची का और टेस्ट (invasive examinations) किया जाता तो उसकी चोटें और भी गंभीर हो सकती थी. लेकिन बाल संरक्षण अधिकारियों ने अदालत में दलील दी कि उन्हें नहीं लगता कि बच्ची अपने घर पर सुरक्षित रहेगी. अदालत इस दलील से सहमत हुई और बच्ची की कस्टडी यूथ वेलफेयर ऑफिस (जुगेंडमट) को सौंप दी.
लगभग पिछले दो साल से बच्ची चाइल्ड प्रोटेक्शन सेंटर में रह रही है. उसके माता-पिता का कहना है कि उससे मिलने की भी बहुत कम अनुमति दी गई है. यहां तक कि अदालत द्वारा नियुक्त मनोवैज्ञानिक ने भी यह सिफारिश की थी कि माता-पिता में से किसी एक को बच्ची की देखभाल की जिम्मेवारी दी जानी चाहिए. दीया का आरोप है कि उन्हें वीडियो कॉल करने की अनुमति भी नहीं दी गई है. उन्होंने आगे कहा कि हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि उसकी देखभाल कौन कर रहा है. हमारी बेटी से जुड़ी गोपनीयता पूरी तरह से विचित्र है.
मिसकम्यूनिकेशन की वजह से बच्ची को छीनाः बच्ची के माता-पिता
दीया का आरोप है कि जर्मन अधिकारियों ने सांस्कृतिक मतभेदों और मिसकम्यूनिकेश (सही संवाद नहीं स्थापित होना) की वजह से बच्ची को हमसे छीन लिया. दीया का कहना है कि वह जर्मन नहीं बोल सकती हैं और उसे जो अनुवादक दिया गया था, वह हिंदी तो बोलता था लेकिन गुजराती नहीं जानता था.
अदालत के फैसले के बाद भारत और जर्मनी दोनों देशों में इस मामले ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. कई भारतीय शहरों के अलावा जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट और डार्मस्टाट में भी भारतीय प्रवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया है और दीया और अमित का समर्थन किया है.
पीएम मोदी से मदद की गुहार
अपनी बेटी को जर्मनी से वापस लाने की लड़ाई लड़ने के लिए दीया फिलहाल भारत आई हुई हैं. दीया ने दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की और दर्जनों सांसदों से मदद की गुहार लगाई. जिसके बाद दर्जनों सांसदों ने जर्मन राजदूत फिलिप एकरमैन को बच्ची को वापस भारत लाने के लिए एक पत्र लिखा है.
वहीं, एक अन्य नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि अगले महीने जब जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज दिल्ली आएं तो उनके सामने इस मुद्दे को भी उठाया जाए. दीया भी प्रधानमंत्री मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है. दीया का कहना है कि अगर पीएम मोदी इसमें हस्तक्षेप करें तो मेरी बेटी वापस आ सकती है.
बच्ची की भारत वापसी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध ः विदेश मंत्रालय
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने जून में जर्मनी से आग्रह किया था कि 20 महीने से अधिक समय से बर्लिन के फोस्टर केयर में रह रही बच्ची को वापस भारत लौटने दिया जाए. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बयान जारी करते हुए कहा था कि बच्ची के लिए भाषाई, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक वातारण में रहना जरूरी है.
अरिंदम बागची ने कहा था कि हम बच्ची की भारत वापसी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और जर्मन अधिकारियों से जल्द से जल्द बच्ची को भारत भेजने का आग्रह करते हैं, जो भारतीय नागरिक होने के नाते उसका अधिकार भी है.
11 अगस्त को भी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि हम बच्ची की शीघ्र भारत वापसी के लिए जर्मन अधिकारियों पर दबाव डालना जारी रखेंगे.
हमें अदालत के फैसले का पालन करना होगाः भारत में जर्मनी के राजदूत
भारत में जर्मनी के राजदूत डॉ फिलिप एकरमैन का कहना है कि द्विपक्षीय संबंध अदालत के फैसले से तय नहीं होने चाहिए क्योंकि अदालत सरकार का हिस्सा नहीं है.
अंग्रेजी वेबसाइट 'दिप्रिंट' से जून 2023 में बात करते हुए बच्ची की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पृष्ठभूमि की रक्षा के संबंध में भारत सरकार की ओर से जताई जा रही चिंताओं पर उन्होंने कहा था, "जब बच्ची की बात आती है तो हम कई लोगों की चिंता को देखते हैं. बच्ची ने गंभीर और असहनीय दर्द का अनुभव किया है. हम बच्ची की भारतीयता की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए विदेश मंत्रालय (भारतीय) के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा कि मैं यह जानता हूं कि यह एक कठिन काम है. यहां आस्था रखने वाले कई लोगों को लगता है कि यह स्वीकार्य नहीं है लेकिन हमें अदालत के फैसले का पालन करना होगा. उन्होंने कहा कि बच्ची पर क्या गुजरी है, यह सुनकर आप चौंक जाएंगे.
नार्वे ने एक साल बाद लौटाया था वापस
2.5 साल की बच्ची को लेकर भारत और जर्मनी के बीच डिप्लोमेटिक टकराव ने एक बार फिर 2011 के एक ऐसे ही मामले की यादें ताजा कर दी हैं. 2011 में भी नार्वे में दो भारतीय बच्चों पर से उनके माता-पिता के अधिकार खत्म कर दिया गया था. हालांकि, एक साल बाद उन्हें वापस भारत लौटा दिया गया था.
पूर्व वकील और एक्टिविस्ट सुरन्या अय्यर ने उस वक्त नार्वे में भारतीय परिवार की मदद की थी. इस बच्ची के माता-पिता को भी वही मदद कर रही हैं. बीबीसी से बात करते हुए सुरन्या ने कहा कि ऐसे मामले असामान्य नहीं हैं. यह एक बड़ी समस्या है. लोगों के मन में यह धारणा बन गई है कि यही इसका बेहतरीन समाधान है और इस पर चर्चा की जरूरत नहीं है.
यूरोपीय संसद ने भी की है आलोचना
परिवारिक विवादों में यूथ वेलफेयर ऑफिस की भूमिका की यूरोपीय संसद ने भी आलोचना की है. 2018 की एक रिपोर्ट में यूरोपीय संसद ने संगठन पर भेदभाव करने, प्रवासियों के बच्चों के साथ अन्याय करने और माता-पिता और बच्चों दोनों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था.
मई 2023 में जारी लेटेस्ट रिपोर्ट में भी यूरोपीय संसद ने कहा है कि उसकी याचिका समिति को अभी भी यूथ वेलफेयर ऑफिस (जुगेंडमट) के बारें में शिकायतें मिल रही हैं. यूथ वेलफेयर ऑफिस की भूमिका और कार्यों को दूरगामी के रूप में देखा जाता है. लेकिन विदेशी माता-पिता जर्मन माता-पिता की तुलना में वंचित महसूस करते हैं.