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ब्लड डोनेट कर बचाई 20 लाख बच्चों की जान! इस शख्स के खून में ऐसा क्या था?

ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले जेम्स हैरिसन के खून में एंटी-डी नामक एंटिबॉडी की प्रचुरता थी. एंटिबॉडी नवजात बच्चे को एक खतरनाक बीमारी से बचाती है. हैरिसन ने रक्तदान कर अपनी पूरी जिंदगी में 20 लाख से अधिक बच्चों की जान बचाई.

जेम्स हैरिसन ने रक्त दान कर 20 लाख से अधिक अजन्मे बच्चों की जान बचाई (Photo- Australian Red Cross Lifeblood) जेम्स हैरिसन ने रक्त दान कर 20 लाख से अधिक अजन्मे बच्चों की जान बचाई (Photo- Australian Red Cross Lifeblood)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 11:40 AM IST

दुनिया के सबसे बड़े ब्लड डोनर्स में से एक माने जाने वाले जेम्स हैरिसन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. हैरिसन का खून सबसे दुर्लभ खून में से एक माना जाता है जिसकी वजह से 20 लाख से अधिक बच्चों की जान बचाई जा सकी. ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले हैरिसन को 'मैन विद द गोल्डन आर्म' के नाम से जाना जाता था जिनके रक्त में दुर्लभ एंटिबॉडी एंटी-डी की मौजूदगी थी.

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रक्त के प्लाज्मा में पाए जाने वाले एंटी-डी से गर्भवती महिलाओं के लिए दवा बनाई जाती है. यह दवा उन गर्भवती महिलाओं को दी जाती है जिनके खून से उनके अजन्मे बच्चे पर हमले का खतरा हो सकता है.

सोमवार को जेम्स हैरिसन के परिवार ने बताया कि 17 फरवरी को हैरिसन ने नींद में ही दम तोड़ दिया. वो 88 साल के थे. ऑस्ट्रेलियन रेड क्रॉस ब्लड सर्विस ने बताया कि हैरिसन जब 14 साल के थे तब उनकी छाती में बड़ी सर्जरी हुई थी और उन्हें काफी मात्रा में खून चढ़ाया गया. इसी दौरान उनके खून में दुर्लभ एंटिबॉडी का पता चला था जिसके बाद उन्होंने तय किया था कि वो रक्तदान करेंगे.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने 18 साल की उम्र में ब्लड प्लाज्मा डोनेट करना शुरू किया और 81 साल की उम्र तक हर दो हफ्ते पर वो रक्तदान करते रहे. 2005 में उनके नाम सबसे अधिक रक्तदान करने का रिकॉर्ड बना जो 2022 में जाकर टूटा. 2022 में यह रिकॉर्ड एक अमेरिकी शख्स के नाम दर्ज हुआ.

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हैरिसन की बेटी ट्रेसी मैलोशिप ने बताया कि उनके पिता ने लाखों जानें बचाई और उन्हें हमेशा इस बात की खुशी रही.

खुद हैरिसन की बेटी मैलोशिप को एंटी-डी की दवा दी गई थी. हैरिसन के दो पोते-पोतियों की जान भी एंटी-डी दवा से ही बचाई गई थी.

क्या है एंटी-डी एंटिबॉडी?

एंटी-डी की खुराक जन्मे बच्चों को Haemolytic नामक बीमारी जिसे HDFN भी कहा जाता है, से बचाती है. यह जानलेवा ब्लड डिसऑर्डर है जो भ्रूम के लिए बेहद खतरनाक होता है. यह स्थिति गर्भावस्था के दौरान तब पैदा होती है जब मां के खून की लाल रक्त कोशिकाएं उसके बढ़ते हुए भ्रूण की रक्त कोशिकाओं के साथ मेल नहीं खातीं.

तब मां का इम्यून सिस्टम भ्रूण की लाल रक्त कोशिकाओं को एक खतरे के रूप में देखता है और उन पर हमला करने के लिए एक एंटिबॉडी रिलीज करता है. यह एंटिबॉडी भ्रूण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है जिसमें अजन्मे बच्चे में खून की कमी, हार्ट फेल जैसी बड़ी दिक्कत होती है और यहां तक कि उसकी मौत भी हो सकती है.

एंटी-डी दवा को 1960 के दशक में बनाया गया था. इससे पहले HDFN बीमारी को दो शिशुओं में पता चला था जिनमें से एक की मौत हो गई थी.

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हैरिसन के खून में एंटी-डी की अधिकता की वजह क्या?

इस बात का पता नहीं चल पाया है कि हैरिसन के खून में इतनी अधिक मात्रा में एंटी-डी की उपलब्धता की क्या वजह थी. लेकिन कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि 14 साल की उम्र में हैरिसन को जब अधिक मात्रा में रक्त चढ़ाया गया था, शायद उसी दौरान उनके शरीर में एंटी-डी की प्रचुरता हो गई थी.

ऑस्ट्रेलियन रेड क्रॉस ब्लड सर्विस, जिसे लाइफब्लड भी कहा जाता है, का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया में 200 से भी कम एंटी-डी डोनर्स हैं लेकिन इनकी वजह से हर साल लगभग 45,000 माओं और उनके अजन्मे बच्चों की जान बचाई जाती है.

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