
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर 9 महीने बाद धरती पर वापस लौट आए हैं. बुधवार तड़के स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के जरिए फ्लोरिडा के तट पर उनकी सफल लैंडिंग हुई. उनका अंतरिक्ष मिशन 5 जून 2024 को शुरू हुआ था, जो केवल आठ दिनों का था. लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण वे 9 महीने तक अंतरिक्ष में फंसे रहे. अंतरिक्ष में इतना लंबा समय बिताने के बाद उनके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि आखिर अंतरिक्ष से वापसी के बाद सुनीता विलियम्स को कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
हड्डियों और मांसपेशियों पर बुरा असर
सबसे चिंता की बात हड्डियों और मांसपेशियों का कमजोर होना है. ISS में अंतरिक्ष यात्री माइक्रोग्रैविटी में तैरते हैं, जो उनके शरीर पर असर डालता है. पृथ्वी पर हमारे शरीर को हमेशा गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ काम करना पड़ता है, जिससे हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को लगातार व्यायाम मिलता है. लेकिन अंतरिक्ष में इस प्रतिरोध के बिना, मांसपेशियों की ताकत और हड्डियों का घनत्व घटने लगता है, क्योंकि शरीर को अपना वजन सहने की आवश्यकता नहीं होती.
अंतरिक्ष यात्री हर महीने अपनी हड्डियों का 1% हिस्सा खो सकते हैं. विशेष रूप से कमर, कूल्हे और जांघ की हड्डियों में. इससे पृथ्वी पर लौटने के बाद हड्डी टूटने का खतरा बढ़ जाता है. इसे कम करने के लिए अंतरिक्ष यात्री ISS में कड़ी कसरत करते हैं.
वहीं, अंतरिक्ष में यात्री 1-2 इंच लंबे हो सकते हैं क्योंकि उनकी रीढ़ की हड्डी लंबी हो जाती है. हालांकि, यह ऊंचाई पृथ्वी पर लौटने के बाद समाप्त हो जाती है.
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अंतरिक्ष में तैरते हुए, यात्रियों के पैरों पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ता, जिससे उनके पैरों के संपर्क से उत्पन्न होने वाली कठोर परतें मुलायम हो जाती हैं. इसके कारण उनके पैरों की त्वचा संवेदनशील हो जाती है और छिलने लगती है, जैसे नवजात शिशु के पैरों की त्वचा. इस प्रक्रिया को ठीक करने के लिए अंतरिक्ष यात्री धीरे-धीरे अपनी मांसपेशियों और त्वचा को मजबूत करने के लिए पुनर्वास करते हैं.
लंबे समय तक आईएसएस में रहने से अंतरिक्ष यात्री के हार्ट पर भी असर पड़ता है. पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण रक्त, पानी और लसिका द्रव को नीचे की ओर खींचता है, जिससे वे शरीर में समान रूप से वितरित होते हैं. लेकिन माइक्रोग्रैविटी में, गुरुत्वाकर्षण नहीं होता, जिससे द्रव ऊपरी हिस्से की ओर खिसक जाते हैं. इससे चेहरे की सूजन, नाक में जाम और सिर में दबाव बढ़ सकता है. साथ ही, निचला शरीर कमजोर और पतला दिखने लगता है. इसे "पफी-हेड बर्ड-लेग सिंड्रोम" कहा जाता है.
दरअसल, माइक्रोग्रैविटी में हार्ट को ब्लड पंप करने में उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, जितनी पृथ्वी पर करनी पड़ती है. इस कमी के कारण हृदय का आकार बदल जाता है. शोधों से पता चला है कि अंतरिक्ष यात्रियों के हृदय का आकार लगभग 9.4% अधिक गोल हो जाता है.
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लंबे समय तक दिखेंगे ये प्रभाव
अंतरिक्ष में उच्च-ऊर्जा कॉस्मिक रेडिएशन से कोई सुरक्षा नहीं होती. अंतरिक्ष यात्री सूर्य से उच्च स्तर की रेडिएशन का सामना करते हैं, जो पृथ्वी पर हर दिन एक सीने का एक्स-रे लेने के बराबर होता है. 9 महीने में, सुनीता विलियम्स ने लगभग 270 एक्स-रे के बराबर रेडिएशन का सामना किया. लंबे समय तक इस रेडिएशन के संपर्क में आने से प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो सकता है. कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.
पृथ्वी पर लौटने के बाद हड्डी का घनत्व पूरी तरह से ठीक होने में सालों लग सकते हैं. इससे ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी टूटने का खतरा बढ़ सकता है.
अंतरिक्ष में महीनों बिताने से मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. ISS पर वातावरण पृथ्वी से बहुत अलग होता है. ISS हर 90 मिनट में पृथ्वी का चक्कर लगाता है, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर की आंतरिक घड़ी (सर्केडियन रिदम) प्रभावित होती है और नींद की समस्या हो सकती है.
अंतरिक्ष यात्री अकेलेपन और बंद कमरे में रहते हैं. उन्हें सीमित स्थान और सीमित साथियों के साथ महीनों बिताने होते हैं. इस वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. कई अध्ययन बताते हैं कि लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशन से अंतरिक्ष यात्रियों की सोचने की क्षमता, प्रतिक्रिया समय और मानसिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है. हालांकि, अंतरिक्ष यात्री मानसिक रूप से सबसे मजबूत और शारीरिक रूप से फिट इंसान होते हैं. वो इन परिस्थितियों के लिए ट्रेंड होते हैं. ( श्रीजन पाल सिंह की रिपोर्ट)
कौन हैं श्रीजन पाल
श्रीजन पाल सिंह एक लेखक हैं. वह भारत के 11वें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नीति और प्रौद्योगिकी सलाहकार थे. वह डॉ. कलाम सेंटर और होमी लैब के संस्थापक और सीईओ हैं. उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद से स्नातक किया है.