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पिछले पांच सालों में 590 लोगों की हत्या, चार गुना बढ़े हमले... पाकिस्तान बनने के साथ ही संकट बन गया था बलोचिस्तान

2015 और 2024 की तुलना में बलूच ग्रुप्स द्वारा किए गए हमलों की संख्या पिछले पांच वर्षों में चार गुना बढ़कर 2024 में 171 हो गई. इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक ‘पाक इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज’ (PIPS) के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में यह संख्या 32 थी, जो 2021 और 2022 में बढ़कर 71 हो गई.

(Representative image) (Representative image)
शुभम तिवारी/बिदिशा साहा
  • नई दिल्ली,
  • 13 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 7:19 AM IST

भारत के बंटवारे के साथ जब से पाकिस्तान बना है, बलूच लड़ाके पड़ोसी मुल्क की सुरक्षा में संकट बने हुए हैं. बीते एक दशक तक भले ही उनकी गतिविधियां भले ही थोड़ी शिथिल पड़ी रही हों लेकिन अब बलूच लड़ाके फिर से पांव पसारने लगे हैं और पाकिस्तान के लिए चिंता का सबब बन रहे हैं. बता दें कि बलूच लड़ाकों ने बलूचिस्तान में बड़े ट्रेन हाईजैक मामले को अंजाम दिया है.

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इंडिया टुडे ने इस मामले का विश्लेषण किया और जो आंकड़े सामने आए, उनके के अनुसार, बलूच लड़ाकों के आतंकी हमलों की संख्या साल 2015 के बाद से काफी बढ़ गई है. इसमें एक दिन पहले बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के लड़ाकों द्वारा किया गया ट्रेन हाईजैक भी शामिल है. 

2015 और 2024 की तुलना में, बलूच ग्रुप्स द्वारा किए गए हमलों की संख्या पिछले पांच वर्षों में चार गुना बढ़कर 2024 में 171 हो गई. इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक ‘पाक इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज’ (PIPS) के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में यह संख्या 32 थी, जो 2021 और 2022 में बढ़कर 71 हो गई. 2023 में यह संख्या 78 रही और 2024 में यह 171 के आंकड़े तक पहुंच गई. यह 2016 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है. पिछले पांच वर्षों में बलूच अलगाववादी हमलों में लगभग 590 लोग मारे गए हैं, जिनमें पाकिस्तानी सेना के जवान भी शामिल हैं.

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बलूच संकट का इतिहास
1948 में, पाकिस्तान के निर्माण के एक वर्ष बाद, बलूच लोगों ने विद्रोह छेड़ दिया था. उनका दावा है कि पाकिस्तान ने बलूचिस्तान का अवैध रूप से विलय कर लिया था. तब से, यह जातीय समूह स्वतंत्रता (कुछ मामलों में व्यापक स्वायत्तता) की मांग करता रहा है. वे अपने क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण, अपनी विशिष्ट पहचान और संस्कृति की रक्षा तथा व्यापक राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग करते रहे हैं.

बलूच अलगाववादियों का आरोप है कि विदेशी निवेश का मुख्य उद्देश्य बलूचिस्तान के संसाधनों को हड़पना है और इससे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पंजाबी भाषी मुस्लिम समुदाय को लाभ पहुंचाया जा रहा है. 

हाल के वर्षों में बलूच समुदाय की सबसे बड़ी शिकायत 'जबरन गायब किए जाने' (Forced Disappearances) की घटनाएं रही हैं. बलूच कार्यकर्ता और नागरिक समाज के लोग जो इस क्षेत्र के शोषण का विरोध करते हैं, उन्हें सुरक्षा बलों द्वारा जबरन गायब करने का आरोप है. पाकिस्तान सरकार की ‘कमिशन ऑफ इन्क्वायरी ऑन एनफोर्स्ड डिसअपीयरेंसेस’ के अनुसार, 2016 से 2024 के बीच 10,500 से अधिक जबरन गायब किए जाने के मामले सामने आए. 2021 में यह संख्या 1,460 थी, हालांकि, सरकारी रिपोर्टों में लापता लोगों की पहचान स्पष्ट नहीं की जाती, लेकिन अधिकांश मामलों में पीड़ित बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा से माने जाते हैं.

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बलूच अलगाववादियों के बढ़ते हमले
बलूच विद्रोही आमतौर पर पाकिस्तानी सुरक्षा बलों और गैर-बलूच श्रमिकों को निशाना बनाते हैं,. हालाँकि, हाल के वर्षों में उन्होंने चीनी नागरिकों पर भी हमले शुरू कर दिए हैं. अक्टूबर 2023 में, सबसे प्रमुख बलूच अलगाववादी संगठन BLA ने कराची में दो चीनी नागरिकों की हत्या कर दी थी। 2022 में इस संगठन ने पाकिस्तानी सेना और नौसेना अड्डों पर हमले किए, जिससे सुरक्षा एजेंसियों को गहरा झटका लगा.

पाकिस्तान के लिए क्यों जरूरी है बलूचिस्तान
बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां बड़े पैमाने पर चीनी निवेश और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं चल रही हैं. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) इस क्षेत्र से होकर गुजरता है, और यहां स्थित ग्वादर बंदरगाह इसका प्रवेश द्वार है. बलूचिस्तान खनन परियोजनाओं का भी केंद्र है, जिनमें से एक प्रमुख रेको डिक (Reko Diq) है. इसे खनन क्षेत्र की दिग्गज कंपनी बैरिक गोल्ड (Barrick Gold) द्वारा संचालित किया जाता है और इसे विश्व के सबसे बड़े सोने और तांबे के भंडारों में से एक माना जाता है. चीन भी इस क्षेत्र में सोने और तांबे की खदानों का संचालन करता है.

लगभग 1.5 करोड़ की आबादी वाला बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है (क्षेत्रफल के हिसाब से), लेकिन जनसंख्या के लिहाज से यह सबसे छोटा प्रांत है. इसका अरब सागर के किनारे लंबा समुद्री तट है, जो खाड़ी के स्ट्रेट ऑफ होर्मुज तेल शिपिंग लेन से अधिक दूर नहीं है.

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पाकिस्तान के लिए सुरक्षा चुनौती
बलूच अलगाववादियों की बढ़ती गतिविधियां पाकिस्तान के लिए एक प्रमुख सुरक्षा चुनौती बन गई हैं. CPEC और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान को अपने सैन्य संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग करना पड़ रहा है. इसके बावजूद, बलूच अलगाववादी समूह लगातार अपने हमले बढ़ा रहे हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक बलूच लोगों की मांगों को सही आवाज नहीं मिलेगी, तब तक इस क्षेत्र में अस्थिरता बनी रहेगी. पाकिस्तान सरकार के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह बलूच लोगों की राजनीतिक और आर्थिक शिकायतों का समाधान करे, अन्यथा यह संघर्ष और अधिक जटिल होता जाएगा.
 

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