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वहां चीन का हित भी है, और अफगानी 'हाथ' भी... क्यों बलूचिस्तान की लड़ाई अब पाकिस्तान के कंट्रोल में नहीं?

बलूचिस्तान में जो कुछ हो रहा है अगर बात उसके निदान की आती है तो इससे चीन, अफगानिस्तान और कबीलाई पहचान रहने वाले बलोच और पश्तून विद्रोहियों को अलग नहीं किया जा सकता है. इन सभी के हित बलूचिस्तान से जुड़े हैं. पाकिस्तान लॉ एंड ऑर्डर और महज क्षेत्रीय तनाव की बात कर बलूचिस्तान की समस्या का समाधान नहीं कर सकता है.

बलोचिस्तान समस्या में चीन-अफगानिस्तान अहम फैक्टर हैं. (फोटो- आजतक) बलोचिस्तान समस्या में चीन-अफगानिस्तान अहम फैक्टर हैं. (फोटो- आजतक)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 13 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

'आप शांति को स्वतंत्रता से अलग नहीं कर सकते, क्योंकि कोई भी व्यक्ति तब तक शांति से नहीं रह सकता जब तक उसे उसकी आजादी हासिल न हो.' बलूचिस्तान में ट्रेन की हाईजैकिंग, दशकों से चली आ रही हिंसा के संदर्भ में अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता मैल्कम एक्स का ये कथन बलूचिस्तान को लेकर सटीक बैठता है. बलूचिस्तान में दशकों से शांति नही है क्योंकि यहां के लोगों को आजादी नहीं है. पाकिस्तान बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग का दमन 1947 से ही करता आ रहा है. ये तब की बात है जब जिन्ना ने जबरन सेना भेजकर कलात के नवाब से विलय पत्र पर लिया था. 

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बलोच लैंड की बगावत की चिंगारी जब पाकिस्तानी हुक्मरानों के नियंत्रण से बाहर होने लगी तो पाकिस्तानी हुक्मरानों, पाक आर्मी और  ISI ने निवेश का पैंतरा चला और अपने आका चीनियों को बुला लाएं. फिर शुरू हुआ निवेश के नाम पर बलोचिस्तान का बंदरबांट.

CPEC के नाम पर यहां के संसाधन लुटने शुरू कर दिए. CEPC अरबों डॉलर का एक ऐसा सौदा था जिससे पाकिस्तानी सियासतदां और जनरल दोनों ही मालामाल हो रहे हैं और इसकी बदौलत चीन को पाकिस्तान में सीधी एंट्री मिल गई है. 

बलूचिस्तान नाम के चेसबोर्ड में मोहरे सिर्फ चीन और पाकिस्तान ही नहीं है. यहां पड़ोसी अफगानिस्तान भी अहम किरदार है. काबुल की कुर्सी पर बैठने वाला हर शासक अपनी नीतियों के चश्मे से बलूचिस्तान को देखता है. 

इसलिए बलूचिस्तान की लड़ाई अब सिर्फ पाकिस्तान के दायरे की बात नहीं रह गई है. इसमें अब कई अंतर्राष्ट्रीय ताकतें काम कर रही हैं. आइए दक्षिण-पश्चिम एशिया में चल रहे इस सियासी खेल को समझते हैं.

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बलूचिस्तान में चीन का हित

 चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो चीन के शिनजियांग प्रांत को बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है. यूं तो चीन-पाकिस्तान इसे आर्थिक प्रोजेक्ट कहते हैं लेकिन ये एक रणनीतिक और सामरिक प्रोजेक्ट है जिसका मकसद आर्थिक विकास से कहीं ज्यादा है. 

2011 में BLA ने मजीद ब्रिगेड बनाकर ब्लूचिस्तान में कई हमले किए और पाक आर्मी को सीधी चुनौती दे दी. इस बीच पाकिस्तान सरकार ने बड़ा फैसला लिया और ग्वादर में निवेश के लिए आमंत्रित किया. अप्रैल 2015 में पाकिस्तान दौरे पर आए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजना की. चीन इस परियोजना में 60 अरब डॉलर निवेश कर रहा है. 

60 अरब डॉलर का पाकिस्तान के लिए क्या महत्व है इसे ऐसे समझा जा सकता है कि ये देश महज 1-2 अरब डॉलर का कर्जा लेने के लिए वर्ल्ड बैंक के कई चक्कर लगाता है. 

10 साल गुजरने के बाद अब ग्वादर पोर्ट ने काम करना शुरू कर दिया है और यहां  जहाजों की आवाजाही शुरू भी हो गई है. 

स्पष्ट है कि खनिज संसाधनों से भरपूर बलूचिस्तान की कोई भी सामरिक-रणनीतिक और राजनीतिक हलचल से चीन के हित भी प्रभावित होते हैं.  

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जान का नजराना देकर CEPC का विरोध कर रहे हैं बलोच विद्रोही

बलोच राष्ट्रवाद CPEC और बलूचिस्तान में दूसरी विदेशी शक्तियों का बेहद सख्ती से विरोध करती है. बलूच विद्रोही गुट CPEC को पाकिस्तानी राज्य के "औपनिवेशिक शोषण" का प्रतीक मानते हैं. उनका कहना है कि यह परियोजना बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों और भूमि का शोषण करती है, जबकि स्थानीय बलूच समुदाय को इससे कोई लाभ नहीं मिलता. बलूच विद्रोही समूहों का कहना है कि CPEC परियोजना, विशेष रूप से ग्वादर बंदरगाह और खनन परियोजना, बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों जैसे प्राकृतिक गैस, तेल, और खनिजों का दोहन कर रही हैं.

उनका आरोप है कि इन संसाधनों से प्राप्त लाभ पाकिस्तानी सरकार और चीन को जाता है, जबकि बलूचिस्तान की जनता को बुनियादी सुविधाओं, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखा जाता है. 

बलोची बागियों विद्रोहियों का आरोप है कि CPEC के कारण बलूचिस्तान में बाहरी लोगों की आमद बढ़ी है, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान और जनसांख्यिकीय संरचना को खतरे में डाल रही है. 

अपना विरोध दर्ज कराने के लिए बलोची संगठनों ने कई बार पाकिस्तान में चीनी प्रतिष्ठानों, चीनी इंजीनियरों पर आत्मघाती हमला किया है. पाकिस्तानी सैनिक तो इसके निशाने पर रहते ही हैं. इनमें प्रमुख हमले हैं-

2018 में कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला.

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2019 में ग्वादर के पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल पर अटैक.

2022 में कराची विश्वविद्यालय में कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट पर आत्मघाती हमला. 

अगस्त 2023 - ग्वादर में चीनी इंजीनियरों पर हमला.

मार्च 2024 - दासू में चीनी इंजीनियरों के काफिले पर फिदायीन अटैक. 

इन हमलों में कई फिदायीन तो मारे गए दर्जनों चीनी नागरिकों को भी जान गंवानी पड़ी.

हाल में बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी (BLA) ने जब जफ्फार एक्सप्रेस को हाईजैक किया तो BLA के एक कमांडर का वीडियो वायरल हुआ. इस वीडियो में ये कमांडर चीन को साफ-साफ धमकी देता सुनाई पड़ रहा है. इस वीडियो में ये कमांडर कहता है, "ये चीन और पाकिस्तान को एक स्पष्ट संदेश था, तत्काल बलूचिस्तान से निकल जाएं, हमारे लीडर जनरल असलम बलोच ने भी चीन को चेतावनी दी थी, लेकिन उन्होंने इसे सुनने से इनकार कर दिया."

आगे ये कमांडर कहता है, "चीन तुम यहां हमारी सहमति के बिना आए, हमारे दुश्मन को सपोर्ट किया... लेकिन अब बारी हमारी है, BLA तुम्हें गारंटी देती है कि CPEC बुरी तरह से फेल होगा, मजीद ब्रिगेड में ऐसे लोग हैं जो अपनी की हिफाजत के लिए जान देने को तैयार हैं. मजीद ब्रिगेड में एक स्पेशल यूनिट बनाया गया है जो चीनी अधिकारियों और चाइनीज प्रतिष्ठानों पर हमला करेगा. राष्ट्रपति शी जिनपिंग आपके पास अभी भी समय है, बलूचिस्तान छोड़ दो."

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चीन भी दखल देने को तैयार 

ग्वादर में चीन के लिए खतरनाक स्थिति है. उसके अरबों डॉलर फंस चुके हैं. हाल के हमले के बाद चीन ने ग्वादर में अपनी पकड़ और भी मजबूत करने का पैंतरा चला है. इसके लिए चीन ने जाफर एक्सप्रेस की हाईजैकिंग की आड़ ली है. 

बलूचिस्तान में जाफर एक्सप्रेस पर हुए हमले की निंदा करते हुए चीन ने बुधवार को कहा कि वह "पाकिस्तान के साथ आतंकवाद विरोधी और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने तथा क्षेत्र को शांतिपूर्ण, सुरक्षित और स्थिर बनाए रखने के लिए तैयार है."

चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, "हमने रिपोर्टों पर गौर किया है और इस आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हैं." उन्होंने कहा, "हम आतंकवाद का मुकाबला करने, एकजुटता और सामाजिक स्थिरता बनाए रखने और नागरिकों की सुरक्षा की रक्षा करने में पाकिस्तान का दृढ़ता से समर्थन करना जारी रखेंगे."

बलूचिस्तान की कहानी में अफगानिस्तान का हाथ

बलूचिस्तान की कहानी में एक दूसरा एंगल अफगानिस्तान का भी है. बलूचिस्तान में जो कुछ हो रहा है उससे अफगानिस्तान को अलग नहीं किया जा सकता है. बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के बीच 900 किलोमीटर से अधिक लंबी डूरंड लाइन सीमा है, जो बलूच और पश्तून जनजातियों को जोड़ती है. बलूचिस्तान के उत्तरी हिस्सों में पश्तून आबादी अधिक है, जो अफगानिस्तान के पश्तून समुदायों से सांस्कृतिक और पारिवारिक रूप से जुड़ी हुई है.  

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ये एक ऐसा इलाका रहा है जो विद्रोहियों और आतंकवादी समूहों के लिए एक महत्वपूर्ण गलियारा रहा है. बलूच और पश्तून समुदायों का पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ असंतोष दशकों पुराना है. ये दोनों ही समुदाय पाकिस्तान के खिलाफ एक दूसरे की मदद लेते हैं. 

बलूचिस्तान के उत्तरी हिस्सों और खैबर पख्तूनख्वा में पश्तून समुदाय भी पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ असंतोष रखता है. पश्तूनों के संगठन  PTM ने सैन्य दमन, जबरन गायब करने, और नागरिकों पर अत्याचार के खिलाफ आंदोलन चलाया है. यह आंदोलन अहिंसक है, लेकिन इसने पश्तून युवाओं में राजनीतिक चेतना को जन्म दिया है

बलूच और पश्तून समुदायों के बीच एक संभावित गठजोड़ पाकिस्तानी राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती है. अगर ये दोनों समुदाय एकजुट हो गए, तो विद्रोह और व्यापक हो सकता है.

पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों का दावा है कि बलूच विद्रोही समूह, जैसे बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA), अफगानिस्तान में अपने ठिकाने बनाते हैं. वे इन ठिकानों का उपयोग हमलों की योजना बनाने, हथियारों की तस्करी और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर हमले करने के लिए करते हैं. 

जाफर एक्सप्रेस की हाईजैंकिंग के खिलाफ शुरू हुए ऑपरेशन की जानकारी देते हुए हुए पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता डायरेक्टर जनरल ले जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने कहा कि हमलावर ऑपरेशन के दौरान सैटेलाइट फोन के जरिये अफगानिस्तान में अपने समर्थकों और मास्टरामाइंड के संपर्क में थे. 

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ऑपरेशन खत्म होने के बाद ISPR ने कहा कि "खुफिया रिपोर्टों ने स्पष्ट रूप से पुष्टि की है कि यह हमला अफगानिस्तान से संचालित आतंकवादी सरगनाओं द्वारा आयोजित और निर्देशित किया गया था, जो पूरी घटना के दौरान आतंकवादियों के साथ सीधे संपर्क में थे." उन्होंने अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार से ऐसे तत्वों के खिलाफ एक्शन की मांग की है. 

बलूचिस्तान की लड़ाई अब पाकिस्तान के कंट्रोल में नहीं

तालिबान की आंतरिक कमजोरियां, क्षेत्रीय शक्तियों के हित, और बलूच विद्रोहियों का दृढ़ संकल्प बलोचिस्तान के मुद्दे को और जटिल बनाते हैं. 

बलूच लैंड में इतनी क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ताकतों जुट गई हैं कि अब इस मुद्दे को सुलझाना सिर्फ पाकिस्तान के वश की बात नहीं रह गई. बलूच अलगाववादी पहले ही इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाते रहे हैं. यही नहीं 2016 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में भी बलोचिस्तान का जिक्र किया था.  

चीन का भारी भरकम निवेश, जटिल सुरक्षा स्थिति, पश्तून असंतोष और बलूच-पश्तून गठजोड़ से आंदोलन को मिले सामाजिक समर्थन ये बताता है कि इस मुद्दे को पाकिस्तान अब अकेले सुलझा नहीं सकता है. 

अगर इस मुद्दे पर पाकिस्तान बातचीत की टेबल पर बैठता है तो उसे अफगानी हितों, चीनी निवेश, पश्तून और बलोच विद्रोहियों के हितों का भी ध्यान रखना पड़ेगा.

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