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भारत के डर से पाकिस्तान ने भेजी थी सेना, 1948 में किया था सैन्यबल से कब्जा... बलूचिस्तान में संघर्ष की पूरी कहानी

बलूचिस्तान में जाफर एक्सप्रेस ट्रेन की हाईजैकिंग ने बलूचियों और पाकिस्तानी शासन के बीच पुराने संघर्ष को उजागर किया है. यह घटना बलूच लिबरेशन आर्मी की स्वतंत्रता की मांग का परिणाम है. पाकिस्तान की सरकार द्वारा संसाधनों का शोषण, जातीय पहचान की अनदेखी और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं ने बलूच अलगाववाद को बढ़ावा दिया है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर ने तनाव को और बढ़ाया है, जिसके चलते क्षेत्र में हिंसा और अस्थिरता बढ़ी है.

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के लड़ाके (फोटो - X) बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के लड़ाके (फोटो - X)
एम. नूरूद्दीन
  • नई दिल्ली,
  • 11 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 6:56 AM IST

बलूचिस्तान में लिबरेशन आर्मी द्वारा क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक करने की 11 मार्च की घटना ने, बलूच और पाकिस्तानी शासन के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों की यादों को एक बार फिर से ताजा कर दिया है. BLA लड़ाकों द्वारा किया गया ये अटैक और हाईजैक बलूचों की स्वतंत्रता की लगातार मांग का नतीजा है. यह लड़ाई आर्थिक उत्पीड़न, राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेले जाने, सांस्कृतिक भेदभाव और स्टेट स्पॉन्सर्ड दमन के आरोपों का भी अंजाम है, जो 1947 में पाकिस्तान की स्थापना के बाद से ही चल रहा है.

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बलूचिस्तान विवाद की जड़ें 1947 में भारत के विभाजन और उसके बाद पाकिस्तान के बलूचिस्तान पर जबरन कब्जे से जुड़ी हैं. बलूच लोग क्रॉस बॉर्डर पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान तक में फैले एक जातीय समुदाय हैं और इस समुदाय को इनकी सांस्कृतिक, क्षेत्रीय और भाषाई पहचान के लिए जाना जाता है. कहा जाता है कि ये लोग लंबे समय से अपने क्षेत्रों में हाशिए पर हैं.

ईरान में जैश अल-अद्ल जैसे बलूच अलगाववादी समूह एक्टिव हैं, जो ईरान में सिस्तान एंड बलूचिस्तान प्रांत की स्वतंत्रता की मांग करते हैं. ईरान इन समूहों के खिलाफ कई बार सैन्य कार्रवाई भी करता है, जबकि अफगानिस्तान पर स्वतंत्रता की मांग करने वालों को ट्रेनिंग और हथियार सहित सीक्रेट सपोर्ट देने के आरोप लगते हैं. अब, आइए जानते हैं - पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में संघर्ष की पूरी कहानी

बोलान, वो इलाका जहां BLA ने जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक किया है

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भारत के प्रभाव के डर से पाकिस्तान ने किया था जबरन कब्जा!

1947 में, जब भारत से अलग होकर पाकिस्तान ने अपनी स्वतंत्रता का ऐलान किया, तो बलूचिस्तान (कलात रियासत) के तत्कालीन शासक ने भी अपनी स्वतंत्रता का ऐलान कर दिया.

अब बलूचिस्तान के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय चार रियासतों में बंटा था, जिसमें एक को कलात के रूप में जाना जाता था. यहां के शासक को खान कहा जाता था. इनके अलावा तीन अन्य रियासतें खारन, लास बेला और मकरान के रूप में थीं, जिसने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया था.

इन रियासतों के पास कहा जाता है कि, भारत में भी विलय का ऑप्शन था, लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना के प्रभाव की वजह से ये संभव नहीं हो सका. हालांकि, 1876 में अंग्रेजों के एक एग्रीमेंट की वजह से कलात को ब्रिटिश राज से मुक्त अपनी इंटरनल ऑटोनॉमी हासिल थी.

बाद में भारत की आजादी के समय में इस मुद्दे पर दिल्ली में ब्रिटिश आखिरी माउंटबेटन के साथ मीटिंग भी हुई, अली जिन्ना ने यहां कलात की स्वतंत्रता का समर्थन किया था, और 5 अगस्त 1947 से बलूचिस्तान ने अपनी आजादी का ऐलान भी कर दिया था. वहीं, बाकी के तीन प्रांतों ने एक पूर्ण बलूचिस्तान बनाने का फैसला किया.

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जम्मू कश्मीर की तरह ही बलूचिस्तान के शासक भी अपनी रियासत की ऑटोनॉमी बनाए रखना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तानी शासन ने इसके स्वतंत्रता के सात महीने बाद ही भारत के प्रभाव के डर से... कि कहीं सेना ना भेज दे, मार्च 1948 को अपनी सेना भेज दी.

सैन्य बल की मदद से किए गए इस कब्जे के खिलाफ बलूच लोगों ने पाकिस्तानी शासन का कड़ा विरोध किया. यहीं से एक ऐसे विवाद की शुरुआत हुई, जो आज हिंसात्मक संघर्ष बन चुका है, जहां बम ब्लास्ट, सुसाइड अटैक और इस तरह की हाईजैकिंग के मामले समने आते रहते हैं.

पाकिस्तान का हाइपरनेशनलिज्म और बलूच समुदाय

बलूचों ने 1948, 1958-59, 1973-77 और 2004 के बाद से पाकिस्तान स्टेट के खिलाफ कई विद्रोह किए हैं. ये विद्रोह खासतौर से आर्थिक उत्पीड़न, राजनीतिक रूप से हाशिए पर डाले जाने और सांस्कृतिक भेदभाव सहित कई मुद्दों के विरोध में हुए. बलूच लोगों की डिमांड और उसे दरकिनार करने की पाकिस्तानी शासन की कार्रवाई से हालात और भी बिगड़े हैं.

बलूच की जातीय पहचान उस हाइपरनेशनलिज्म या अतिराष्ट्रवाद के बिल्कुल उलट है, जिसे पाकिस्तानी शासन कड़ाई से लागू करने की कोशिश करता है. अपनी अलग भाषा, संस्कृति और परंपराओं के साथ बलूच लोगों ने लंबे समय से पंजाबी-प्रधान पाकिस्तान की संस्कृति में आत्मसात होने का विरोध किया है. इससे बलूचों में अलगाव और हाशिए पर जाने की भावना पैदा हुई, जिन्हें लगता है कि उनकी पहचान और अधिकारों को पाकिस्तानी शासन द्वारा मान्यता या सम्मान नहीं दिया जाता.

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दूसरी तरफ, पाकिस्तान सरकार बलूच राष्ट्रवादी समूहों में से कई को "आतंकवादी" मानती है, जहां किसी भी विरोध या सुधार की मांग को सैन्य बल की मदद से दबा दिया जाता है. इसका नतीजा ये हुआ कि बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति दयनीय हो गई. मसलन, पाकिस्तानी सेना पर बलूच अक्सर ज्यूडिशियल किलिंग, जबरन गायब करने और यातनाओं के आरोप लगाते हैं.

सामाजिक-आर्थिक असमानताएं और संसाधनों का शोषण

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है, फिर भी यह सबसे गरीब और सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है. यह प्रांत प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, जिसमें प्राकृतिक गैस, कोयला, तांबा और अन्य खनिज पदार्थ शामिल हैं, और पाकिस्तानी शासन यहां अक्सर जबरन खुदाई और ड्रिलिंग करती हैं, और अब यहां चीन का प्रभाव काफी ज्यादा बढ़ा है - जिसका लिबरेशन आर्मी और अन्य हथियारबंद समूहों द्वारा विरोध किया जाता है.

मसलन, प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद बलूच लोगों की गरीबी और मुश्किलें कम नहीं हो रहीं. जैसे कि चीनी फंडेड ग्वादर मेगा-पोर्ट के निर्माण ने संकट को और बढ़ा दिया है. हालांकि, यह पोर्ट पाकिस्तान के लिए रणनीतिक रूप से अहम है, लेकिन बलूचिस्तान में होने के बावजूद बलूच लोग इसके डेवलपमेंट प्रक्रिया से बाहर हैं. ग्वादर के आसपास की जमीनों की अवैध बिक्री भी हुई है, जिससे पाकिस्तानी शासन पर आरोप लगते हैं कि स्थानीय बलूच आबादी की कीमत पर भारी मुनाफा कमाया जा रहा है.

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बलूचिस्तान में क्यों है अलगाववाद?

पाकिस्तानी शासन के दमन और राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेले जाने का नतीजा ही है कि बलूचिस्तान में लोग अलगाववाद में लिप्त हैं. इसके जवाब में पिछले कुछ वर्षों में कई बलूच अलगाववादी समूह उभरे हैं, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ राजनीतिक हिंसा को अंजाम दे रहे हैं. बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) सहित इन समूहों का टारगेट बलूचिस्तान के लिए अधिक पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करना है.

यह भी पढ़ें: पाक में बड़ा आतंकी हमला: बलूच लिबरेशन आर्मी ने 120 यात्रियों से भरी ट्रेन का किया अपहरण

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) सबसे बड़ा बलूच अलगाववादी समूह है और बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग करते हुए दशकों से पाकिस्तान सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रहा है. BLA को पाकिस्तान, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश "आतंकवादी संगठन" मानते हैं. यह समूह बलूचिस्तान में सुरक्षा बलों, सरकारी इमारतों और चीनी सेना और उसके वर्कर्स को टारगेट करते हुए कई हमले किए हैं.

हाल के वर्षों में जब से यहां चीन का प्रभाव बढ़ा है, तब से BLA ने हमले तेज कर दिए हैं. बीएलए, कई सुसाइड अटैक और बड़े हमलों के लिए भी जिम्मेदार रहा है. मजीद ब्रिगेड को BLA का सुसाइड स्क्वाड माना जाता है, जो कई हाई-प्रोफाइल हमलों में शामिल रहा है - जिसमें 2018 में कराची में चीनी दूतावास पर हमला और 2019 में ग्वादर में एक लग्जरी होटल पर हमला शामिल है.

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चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC)

चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC), एक मल्टी-बिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट है, और हाल के वर्षों में बलूचिस्तान में संघर्ष की प्रमुख वजहों में से एक है, जबकि पाकिस्तान सरकार CPEC को देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक गेम-चेंजर के रूप में बताती है, बलूच लोग इसे चीन द्वारा उनके संसाधनों का दोहन करने और उन्हें और भी ज्यादा हाशिए पर धकेलने के साधन के रूप में देखते हैं.

इन प्रोजेक्ट्स की वजह से समुदाय के बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हो गए हैं, क्षेत्र का सैन्यीकरण हो गया है और चीनी श्रमिकों की बड़ी संख्या यह रह रही है, जिससे पाकिस्तानी शासन के खिलाफ बलूचों का गुस्सा और बढ़ा है. BLA और अन्य बलूच अलगाववादी समूहों ने पाकिस्तान में चीनी गैस और अन्य प्रोजेक्ट्स के साथ-साथ चीनी श्रमिकों को भी तेजी से निशाना बनाया है. इन हमलों का उद्देश्य CPEC पर रोक लगाना और चीन को यह संदेश देना है कि बलूचिस्तान में उसकी भागीदारी का कड़ा विरोध जारी रहेगा.

बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति की गंभीरता के बावजूद, इंटरनेशनल लेवल पर संघर्ष को काफी हद तक नजरअंदाज ही किया जाता है. सोशल एक्टिविस्ट्स और नेताओं ने पाकिस्तान सरकार पर इस क्षेत्र में नरसंहार करने के आरोप लगाए हैं, लेकिन इन आरोपों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई खास ध्यान या कार्रवाई नहीं की गई है. मसलन, अब देखने वाली बात होगी कि हालिया ट्रेन हाईजैकिंग जैसी बड़ी घटना के बाद पाकिस्तानी शासन क्या रुख अपनाती है.

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