
बांग्लादेश में 7 जनवरी को आम चुनाव होने हैं. प्रधानमंत्री शेख़ हसीना लगातार चौथी बार पीएम पद के लिए चुनाव लड़ रही हैं. उनकी जीत तकरीबन तय मानी जा रही है. वजह है आम आम चुनावों से विपक्षी पार्टियों का बहिष्कार. विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और उनके सहयोगियों ने शेख हसीना से प्रधानमंत्री पद छोड़ने और एक न्यूट्रल और अंतरिम सरकार की देखरेख में देश में चुनाव कराने की मांग की है. उनका कहना है कि हमें इस बात का बिल्कुल भरोसा नहीं है कि मौजूदा सरकार देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाएगी.
बांग्लादेश के आम चुनाव में भारत की भूमिका पर चर्चा
विपक्ष की इन मांगों के बीच बांग्लादेश में भारत की भूमिका को लेकर भी खूब चर्चाएं हो रही हैं. दरअसल, शेख हसीना ने भारत से हमेशा करीबी रिश्ते रखे हैं. साल 2022 में अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश को भारत उसकी सरकार, लोगों और सशस्त्र बलों को याद रखना चाहिए. इन्होंने ही 1971 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमारी मदद की थी. तब शेख हसीना के इस बयान की विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने खूब आलोचना की थी.
बांग्लादेश के विपक्षी दल का भारत पर ये आरोप
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता रुहुल क़बीर रिज़वी ने बीबीसी से बातचीत में आम चुनावों को डमी चुनाव बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि भारत शेख हसीना का समर्थन कर रहा है और बांग्लादेश के लोगों को अलग-थलग कर रहा है. भारत को किसी विशेष पार्टी नहीं बल्कि बांग्लादेश का समर्थन करना चाहिए, लेकिन भारत के पॉलिसी मेकर्स यहां लोकतंत्र नहीं चाहते. वहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय इन आरोपों को बांग्लादेश का अंदरूनी मामला बताकर आरोपों पर जवाब देने से इनकार कर दिया और कहा कि भारत चाहता है कि बांग्लादेश में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हों.
उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए बांग्लादेश से दोस्ताना संबंध अहम
बता दें कि बांग्लादेश की आबादी तकरीबन 17 करोड़ है. यह तीन तरफ से भारत से घिरा है. भारत के उत्तर पूर्व के राज्य इससे सटे हुए हैं. जब-जब शेख हसीना प्रधानमंत्री रही हैं तब भारत और बांग्लादेश के रिश्ते काफी अच्छे रहे हैं. भारत निश्चित तौर पर चाहेगा कि शेख हसीना एक बार फिर बांग्लादेश की सत्ता संभालें. भारत के उत्तर पूर्व के राज्यों की सुरक्षा के लिहाज से ऐसा होना काफी अहम है. शेख हसीना प्रधानमंत्री बनने के बाद इन इलाकों में स्थिरता भी आई थी. 2009 में सत्ता में आने के बाद शेख हसीना में उन इन इलाकों में काम करने वाले नस्लीय विद्रोही गुटों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी. ये गुट बांग्लादेश में रहते थे और भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों को निशाना बनाते थे.
बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के उभार की आशंका?
भारत की एक चिंता ये है कि अगर शेख हसीना की जगह बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी की सरकार आने पर बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों का उभार हो सकता है. साल 2001 और 2006 में वहां गठबंधन की सरकार आने पर ऐसा देखा गया था. यह स्थिति भारत के सीमावर्ती इलाकों के लिए सही नहीं होगी. बांग्लादेश में भारत के राजदूत रहे पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने बीबीसी को बताया कि जब साल 2001 और 2006 की गठबंधन सरकार थी तो जिहादी समूह सक्रिय हुए थे. इनका उपयोग आपराधिक कामों के लिए किया जाता था. साल 2004 में शेख हसीना की हत्या की कोशिश इसी का हिस्सा थी.
भारत हमेशा बांग्लादेश की करता रहा मदद
1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में भारत की भूमिका अहम रही थी. दोनों देशों के बीच तबसे सांस्कृतिक और भाषाई स्तर पर करीबी रिश्ते हैं. बांग्लादेश भारत के ऊपर कई खाद्य पदार्थों को लेकर भारत पर निर्भर रहता है. चावल, दालों और सब्जियां समेत कई चीजें भारत से बांग्लादेश पहुंचाई जाती है. साल 2010 से भारत बांग्लादेश के विकास परियोजनाओं के लिए सात अरब डॉलर से ज्यादा की लाइन ऑफ क्रेटिड भी दे चुका है. हालांकि, बीते दशक में दोनों देशों के बीच जरूर खटास दिखी है. नदी के पानी के बंटवारे को लेकर दोनों देशों की तरफ से खूब आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए गए थे.
ढाका में सेन्टर फ़ॉर पॉलिसी डायलॉग में फेलो देबप्रिय भट्टाचार्य के मुताबिक, ऐसा इसलिए हो रहा है कि बांग्लादेश में भारत की छवि में गिरावट आई है. वहां लोगों के मन में यह बैठ गया है कि अच्छा पड़ोसी होने के बाद भी बांग्लादेश को भारत से उतना कुछ हासिल नहीं होता है, जितना होना चाहिए.
उत्तर-पूर्व राज्यों के लिहाज से भी बांग्लादेश भारत के लिए अहम
बांग्लादेश के साथ भारत सड़क, नदी और ट्रेन मार्ग से जुड़ा है. इन मार्गों का इस्तेमाल बांग्लादेश से व्यापार के साथ-साथ वह अपने पूर्वोत्तर के राज्यों में जरूरी सामान पहुंचाने के लिए भी करता है. ऐसे में बांग्लादेश में दोस्ताना सरकार होना भारत के लिए और भी अहम हो जाता है. बता दें कि भारत को अपने पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ जोड़ने के लिए एक 20 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर है , इसे चिकेन्स नेक कहते हैं. यह नेपाल, बांग्लादेश और भूटान के पास से होकर निकलता है.
बांग्लादेश के चीन के करीब जाने पर भारत को होगा नुकसान
भारत को इस बात की चिंता है चीन बांग्लादेश में पैर पसारना चाहता है. इसके लिए उसने कोशिशें भी शुरू कर दी है. ऐसे में तनाव की स्थिति में रणनीतिक रूप से अहम 20 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर और उससे सटे अहम इलाके खतरे में पड़ सकते हैं. यही वजह है जब पश्चिमी देशों की सरकारें कथित मानवाधिकार उल्लंघनों और एक्स्ट्रा-जूडिशियल हत्याओं को लेकर बांग्लादेश के अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाना चाहती हैं तो भारत इस कदम का विरोध करता रहा है. दरअसल, अगर बांग्लादेश सरकार पर इसको लेकर ज्यादा दबाव बनाया गया तो वह चीन से हाथ मिला सकता है, जो भारत के लिए रणनीतिक और सामरिक दोनों ही दृष्टि से बहुत नुकसान देगा.