
बांग्लादेश में हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शन के कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हटना पड़ा. इस घटना के बाद पड़ोसी देश में पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है. इस दौरान बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार और हमले के मामले भी देखे गए, जिसमें मंदिरों पर हमला और हिंदू समुदाय की संपत्तियों की लूट शामिल है. बांग्लादेश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बचाव और राहत कार्यों के दौरान अंतरिम सरकार पर उनकी अनदेखी करने का आरोप लगने पर अल्पसंख्यकों के लिए स्थिति और भी खराब हो गई है. भारत के पड़ोसी देश में बाढ़ के कारण कई जिले बुरी तरह प्रभावित हैं.
राहत और बचाव अभियान सेना, स्थानीय पुलिस और कई संगठनों चला रहे हैं. हालांकि बांग्लादेश में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें हिंदू समुदाय का एक व्यक्ति हिंदू बहुल क्षेत्रों में बचाव और राहत कार्यों के दौरान प्रशासन की अनदेखी और पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगा रहा है.
वीडियो में एक व्यक्ति अपने इलाके के बारे में बता रहा है, जो बांग्लादेश के फेनी जिले में कालीदाह संघ के वार्ड नंबर 8 में चेओरिया, तुलाबरिया है. उसने कहा, हमें राहत के लिए एक भी व्यक्ति नहीं मिला है. हमारा गुनाह सिर्फ इतना है कि हम हिंदू हैं. उस तरफ नोआखली और बारिसल के लोगों को राहत मिल रही है, लेकिन हमें देखकर वे चले जा रहे हैं, इस तरफ नहीं आ रहे हैं. हम किसी पार्टी से नहीं जुड़े हैं, लेकिन गुनाह सिर्फ हिंदू होने का है. वीडियो में दिख रहा व्यक्ति कहता है कि हमारी सिर्फ यही गलती है कि हम हिंदू हैं.
वीडियो का लिंक- https://www.facebook.com/share/r/LpEj5rDgw8RqjNTF/?mibextid=Ls6BEq
हिंदू समुदाय के कई सदस्यों ने इंडिया टुडे को बताया कि उन्हें कई इलाकों से ऐसी रिपोर्ट भी मिल रही हैं, जहां हिंदुओं की मदद नहीं की जा रही है और इसके बजाय कई अन्य मंदिर सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित इलाकों में हिंदू परिवारों को शरण दे रहे हैं और राहत सामग्री वितरित कर रहे हैं.
पूरे भारत से लेकर अलग-अलग जिलों के स्थानीय हिंदू समुदाय के कई संगठन भी मैदान में हैं, जो बचाव और राहत के काम में लगे हैं और बोर्ड और दूसरे माध्यमों से राहत सामग्री वितरित कर रहे हैं.
जमात-ए-इस्लामी से प्रतिबंध हटा
बांग्लादेश में अंतरिम सरकार आने के बाद पुरानी सरकार के कई फैसले पलट दिए गए हैं. इन्हीं में से एक फैसला जमात-ए-इस्लामी पार्टी पर से प्रतिबंध हटाना भी है. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने शासन के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के दौरान उस पर प्रतिबंध लगा दिया था. हसीना सरकार ने पार्टी को 'उग्रवादी और आतंकवादी' संगठन बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया था और उसकी छात्र इकाई और अन्य संबद्ध संगठनों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था को लेकर आंदोलन भड़काने का दोषी ठहराया था.
संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, हिंसक विरोध प्रदर्शनों और हसीना सरकार की कार्रवाई में 600 से अधिक लोग मारे गए. गृह मंत्रालय ने बुधवार को पार्टी पर से प्रतिबंध हटा दिया, जिससे उसे अपनी गतिविधियां फिर शुरू करने का रास्ता मिल गया. चुनाव लड़ने के लिए उसे निर्वाचन आयोग में रजिस्टर्ड कराना होगा.
पार्टी के नेतृत्व की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. जमात-ए-इस्लामी पर 2013 से चुनावों में भाग लेने पर रोक है, जब आयोग ने उसका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था और हाई कोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार रखा था. अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि पार्टी ने धर्मनिरपेक्षता का विरोध करके संविधान का उल्लंघन किया है.
बांग्लादेश के विधि मामलों के सलाहकार आसिफ नजरुल ने कहा कि हसीना सरकार का प्रतिबंध राजनीति से प्रेरित था और किसी विचारधारा पर आधारित नहीं था. हसीना की प्रतिद्वंद्वी पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने भी प्रतिबंध के लिए पूर्ववर्ती सरकार को दोषी ठहराया.