Advertisement

'मुजीबियत को दफ्न करने की कसम', 'हसीना की पार्टी का खात्मा'! बांग्लादेश में तैयार हो रहा है जुलाई विद्रोह का आधिकारिक दस्तावेज

बांग्लादेश का नया निजाम बंग बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की छांव से मुक्त होना चाहता है ताकि संविधान में मनमाफिक बदलाव किया जा सके. इसके लिए वहां के नये नवेले कट्टरपंथी छात्र नेता मुजीबुर्रहमान को दोषी ठहरा रहे हैं और उनकी विरासत को दफ्न करने की कसमें खा रहे है.

बांग्लादेश तैयार कर रहा जुलाई विद्रोह का दस्तावेज (फोटो- आजतक) बांग्लादेश तैयार कर रहा जुलाई विद्रोह का दस्तावेज (फोटो- आजतक)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 17 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 10:17 AM IST

बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार 'जुलाई विद्रोह' का आधिकारिक दस्तावेज जारी करने की तैयारी कर रही है. इस दस्तावेज को जुलाई विद्रोह घोषणा (July uprising proclamation) कहा जाएगा. पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने वाले छात्र नेता इस घोषणा में बंग बंधु मुजीबुर्रहमान और शेख हसीना के लिए बेहद तल्ख और सख्त शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

Advertisement

कट्टरपंथी तत्वों की मिलीभगत से शेख हसीना को सत्ता से हटाने के बाद छात्र नेताओं की मांग है कि बांग्लादेश में 'मुजीबियत' यानी कि मुजीबुर्रहमान की विरासत का नामोनिशान मिटा दिया जाए. इसके लिए छात्र नेताओं ने 'दफ्न करने' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है. इसके अलावा कथित आंदोलनकारी छात्रों का ये गैंग शेख हसीना की पार्टी को सदा-सदा के लिए खत्म कर देना चाहते हैं. 

शेख हसीना के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले छात्रों का आक्रामक रुख देखकर अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस भी बैकफुट पर आ गये हैं. उन्होंने कहा है कि मुल्क का आगे का रास्ता 'एकता' है. मोहम्मद यूनुस 'जुलाई विद्रोह' की घोषणा तैयार करने के लिए राजनीतिक दलों को आंमत्रित किया है. लेकिन इसके लिए हसीना की पार्टी अवामी लोग को न्योता ही नहीं भेजा गया है. 

Advertisement

क्या होता है Uprising proclamation?

Uprising Proclamation एक आधिकारिक घोषणा है जो किसी देश, समुदाय या समूह द्वारा जारी की जाती है, जिसमें वे अपने अधिकारों और स्वतंत्रता की मांग करते हुए अपने विचारों को उग्र, प्रखर और स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं. इसमें भविष्य के लिए एक नई दिशा और लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए लोगों से आह्वान किया जाता है. 

बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को सत्ता परिवर्तन हो चुका है. अब इस बदलाव के इतिहास को अपने तरीके से लिखने के लिए यूनुस सरकार चर्चाएं कर रही है. लेकिन ये हास्यास्पद है कि जिस शेख मुजीबुर्रहमान को बांग्लादेश का जनक कहा जाता है, अंतरिम सरकार उनके ही विचारों को तिलांजलि देना चाहती है. 

मुजीबियत को दफ्न करने की हसरत

छात्र नेता दिसंबर से ही 'जुलाई विद्रोह' की घोषणा तैयार करने पर जोर दे रहे हैं. 30 दिसंबर 2024 को छात्र नेता हसनत अब्दुल्लाह ने कहा था, "उसी स्थान पर जहां एक सूत्री आंदोलन की घोषणा की गई थी, वहीं पर 1972 के मुजीबियत वाले संविधान की कब्र खोदी जाएगी - हम चाहते हैं कि मुजीबिस्ट संविधान को दफना दिया जाए."

हसनत अब्दुल्लाह ने कहा था कि Uprising Proclamation यह साफ करेगी कि मुजीब के संविधान ने किस प्रकार लोगों की आकांक्षाओं को नष्ट किया है और हम इसे किस प्रकार प्रतिस्थापित करना चाहते हैं. गौरतलब है कि बांग्लादेश की नई सरकार ने मुजीबुर्रहमान की तस्वीरें सरकारी इमारतों से हटा दी है.

Advertisement

छात्रों के इस गुट के अनुसार उन्हें उम्मीद है कि यह घोषणा बांग्लादेश में नाजी-जैसी अवामी लीग को अप्रासंगिक बना देगी. 

यही वजह है कि सरकार ने जब इस तख्तापलट के बारे में घोषणा तैयार करने के लिए राजनीतिक दलों की मीटिंग बुलाई तो अवामी लीग को न्योता ही नहीं दिया गया. 

भारत विरोधी रवैया रखने वाले छात्र नेता हसनत अब्दुल्लाह ने कहा था कि  1972 के संविधान के आधारभूत सिद्धांतों ने भारतीय दखल को बढ़ावा दिया है. 

यूनुस ने निजी पहल कहा

छात्रों की इस घोषणा से बांग्लादेश में राजनीतिक तनाव पैदा हो गया है और यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने इस घोषणा से खुद को दूर कर लिया और इसे “निजी पहल” कहा. 

लेकिन बाद में एक आश्चर्यजनक घोषणा में, यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि सरकार ने "जुलाई विद्रोह की घोषणा" तैयार करने का निर्णय लिया है, जिसमें भेदभाव-विरोधी छात्र आंदोलन सहित सभी भाग लेने वाले छात्रों, राजनीतिक दलों और हितधारकों के विचार शामिल होंगे.

दरअसल बांग्लादेश की इस्लामिक ताकतें संविधान को बदलना चाहती है और बांग्लादेश को इस्लामिक राज्य बनाना चाहती है. 

शेख मुजीबुर्रहमान की विरासत से छुटकारा जरूरी

यूनुस सरकार द्वारा नियुक्त किये गये बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज़्जमां ने तर्क दिया है कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्द बांग्लादेश की सही तस्वीर पेश नहीं करते हैं, क्योंकि इस देश की 90 फीसदी आबादी मुसलमान है.

Advertisement

बांग्लादेश को लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसे तत्वों से दूर करने के लिए जरूरी है कि इस देश को शेख मुजीबुर्रहमान की विरासत से दूर किया जाए. छात्र नेताओं समेत बांग्लादेश के कट्टरपंथियों की इस कोशिश को ऐसे ही देखा जाना चाहिए.  

गौरतलब है कि 1972 के संविधान को बांग्लादेश की आज़ादी के एक साल बाद 469 सदस्यों वाली निर्वाचित संविधान सभा ने मंजूरी दी और अपनाया. इस संविधान के आधारभूत सिद्धांत चार स्तंभों पर आधारित थे. ये सिद्धांत थे- समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और बंगाली राष्ट्रवाद.

बांग्लादेश की मौजूदा अंतरिम सरकार अपने हितों को देखते हुए इन्हीं कट्टरपंथियों के सामने झुकने लगी है.   

गुरुवार को घोषणा का दस्तावेज तैयार करने के लिए आयोजित मीटिंग में मोहम्मद यूनुस ने कहा कि अंतरिम सरकार ने वार्ता का आह्वान तब किया जब विद्रोह का नेतृत्व करने वाले छात्रों ने उन्हें बताया कि एक घोषणा की जाएगी और उन्होंने यूनुस से इसका हिस्सा बनने पर जोर दिया. 

हालांकि मोहम्मद यूनुस ने यह भी कहा कि उन्होंने यह समझने की कोशिश की है कि वे क्या घोषणा करने जा रहे हैं. मैंने उनसे कहा कि ऐसा नहीं होगा. इसके बाद मोहम्मद यूनुस ने छात्रों को सलाह दी कि वे जुलाई क्रांति से जुड़े सभी तत्वों को शामिल करते हुए घोषणा करें. यूनुस ने कहा कि अगर घोषणा को लेकर एकमत नहीं हो पाता है तो फिर इसकी जरूरत ही नहीं है. 

Advertisement

सूत्रों के अनुसार भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन और यूनुस के अंतरिम मंत्रिमंडल के सदस्य महफूज आलम ने बुधवार को कहा कि सरकार ने जुलाई घोषणा का मसौदा तैयार कर लिया है. लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया है. इसे सार्वजनिक करने से पहले सरकार, छात्र गुटों, राजनीतिक दलों और गैर सरकारी संगठनों का मूड समझना चाहती है. 

बांग्लादेश के दो प्रमुख समाचार पत्रों प्रोथॉम आलो और डेली स्टार के अनुसार तीन पन्नों के मसौदे में भारतीय उपमहाद्वीप के 1947 के विभाजन के बाद से स्वतंत्रता के लिए लोगों के दशकों पुराने संघर्ष का बैकग्राउंड है, इसमें “रक्तरंजित 1971 के मुक्ति संग्राम” का उल्लेख है. 

इसमें जुलाई अगस्त के आंदोलन का भी जिक्र है. जिसकी वजह से शेख हसीना सरकार से बाहर हो गई है. 

घोषणा के इस मसौदे में यह भी लिखा है कि अंतरिम सरकार 1972  के संविधान को बदलने या फिर पूरी तरह से खत्म करने की भी सोच सकती है जिस संविधान की वजह फासिज्म और तानाशाही को बढ़ावा मिल रहा है.  

संविधान बदलने के लिए दो तिहाई बहुमत जरूरी

बीबीसी के अनुसार बांग्लादेश के संविधान के अनुसार संविधान के किसी भी प्रावधान को संविधान संशोधन के द्वारा ही बदला जा सकता है. संविधान में संशोधन के लिए इसे बांग्लादेश की संसद से दो-तिहाई बहुमत से पारित कराना आवश्यक है.
 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement